पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३२६

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२६३ अवर - - = = अबर -वि० [सं० अपर, b० प्रवर] अन्य । और। दूसरा । उ०- खलता हुया सफेद र ग हो। उ०-~-अवनक अवरम सखी मरिता सिंधु अनेक प्रवर सखी विलमत पति महज सनेह । सिरीजी । चौधर चाल समुद सेव तीजी ।जायसी (शब्द०)। सुर० (राधा०) २७६७ ।। अवरस-वि० सब्जे से कुछ खुलता हुआ सफेद रंग का । अवर --वि० [म० अवर] अश्रेष्ठ । अव्यग्य । अधम । उ०— अबरा-सझा पु० [फा० अधरह, ] १. अस्तर का उलटा । दोहरे | इ उधाह वाक्य ते अवर काव्य होता है ।---भिखारी ग्र० वस्त्र के ऊपर का पल्ला । उपल्ला । उपल्ली । भा० मी० २, पृ० २४४ । क्रि०प० ।--घढाना ।—देना ।—लगाना । || अवर --सज्ञा पु० [फा० अय, मं० अभ्र] बादल । उ०--अगर यो २ खुलनेवाली गाँठ । उलझने । जान जिंदगानी । अवर प्रौला घुले पानी --तुलसी०.०, अबरा+--वि० [सं० प्रबल] बलहीन । कमजोर । निर्वल । | पृ० ३१ । । यौ०--अबरा दुबरा= शक्तिहीन । कमजोर 1 दुबला पतला । अवरक-सज्ञा पुं० [सं० अभ्रक] १ एक धातु। अभ्रक । भोडल । अवरी- सज्ञा स्त्री॰ [फा अग्र+ई (प्रत्य॰)] १ एक प्रकार का भोडर। मुखल । चिकना कागज जिसपर वादल की सी धारियाँ होती हैं । यह विशेष—यह खान से निक नती है और बड़े वडे ढोको मै तह पर पुस्तकों की दफ्ती पर लगाया जाता है और कई रग का होता तह जमी हुई पहाडो पर मिलती है। साफ करके निका हैं । २ पीले रग का एक पत्थर, जो पच्चीकारी के काम लने पर इसकी तह काँच की तरह निकलती है । अवरक आता है । यह जैसन मेर में निकलता है । इसलिये इसको के पत्तर कदीन आदि मे लगते हैं तया विलायत में भी जैसलमेरी भी कहते हैं । ३ एक प्रकार की नाह की रगाई भेजे जाते हैं। वहाँ ये कोच की टट्टी की जगह किवाड के जो रगविरगे बादलों के छीटो की तरह होती है । पल्लो में लगाने के काम अाते हैं। यह धातु अगि से नहीं प्रबरी २१-सज्ञा स्त्री० [सं० अवार] गडढे या नदी के पानी से मिला जलती और लचीली होती है। वैज्ञानिक यत्रो में भी इसका हुआ किनारा ।। प्रयोग होता है। यह दो रंग की होती है—सफेद और प्रवरू-सज्ञा पुं० [फा०1 मह । भ्र. । उ०--- आगे बढ़ी चढ थे। काली। भारतवर्ष में बगाल, राजस्थान, मद्रास प्रादि की - अवरू खमदार --कुकुर०, पृ० ३१ ।। पहाडियो में मिलती है । वैद्य लोग इसके भस्म को वृष्य मानते मु०- अबरू में बल पड़ना= नाराज होना । अव पर मेल न हैं और प्रौपधियों में इमका प्रयोग करते हैं। भस्म बनाने में | आनी = विकार न आना । काले रम का अवरक अच्छा समझा जाता है । निश्चद्र अर्थात् अवर्ज -सज्ञा पुं० [म० अवर+ज] अनुज । छोटा भाई ।- अभारहित हो जाने पर भस्म बनता है। अनेकार्य, पृ० ८७ । २ एक प्रकार का पत्थर जो खान से निकलता है। भ्रवर्त---सज्ञा पुं० [सं० आवर्त] पानी का भंवर। चक्कर । विशेप--यह पत्थर बर्तन बनाने के काम आती है । यह बहुत कला होता है। इसकी बकनी चीजों को चमकाने के लिये अवर्नर-वि० [हिं०] दे० 'अवर्ण' । उ०—सुदर ब्रह्म अबर्न है। पालिश या रीगन बनाने के काम में आती है। व्यापक अग्नि अवर्न !-—सु दर ग्र०, पृ० ७८१ । अवरख-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अवरक' । अवयं -सझा पु० [सं० अवयं] दे० 'अवर्य' । उ०—-अदर अवरखी--वि० [हिं० अवरक] १ अवरक के रग की । २ अभ्रक का । घटत अब को, जहाँ बन्यं के जोर 1-मूपण ग्र० पृ०२६ । अवरखी+--मज्ञा स्त्री० अभ्रक की बुकनी । अवल-वि० [म०] निर्व न । कमजोर । ३०-- कैसे निवहे अवल अवरन'G-[म० अवयं] जिसका वर्णन न हो सके। अकथनीय । जन करि सबनन सो वैर ।- समावि० (शब्द॰) । उ०—(क) नंबरन को का वर निए मॅपे लेख्या न जाइ । अवन' सञ्चा पु० १ व हानता । २ वरुण नामक वृक्ष । अपना बाना वाहिया कहि कहि थाके माइ । कबीर० ग्र०, अवली -सच्चा नी० [म० अवलि] १ पक्ति। समूह । कतार । पृ० ६१ । (ख) भजि मन नद नदन चरन । सनक सकर उ०-ग्रतर नीलवर अब अाभरण अगि अगि, नग नग उदित । ध्यान ध्यावत निगम अबरन बरन ।--सुर० (शब्द०)। --वेलि०, दू० ११६ । अवरन --वि० [सं० अयण] १ विना रग का । बर्णशून्य । उ०-- अवलक-वि० [अ०अबलक] दे० 'अबलख' । उ०—जो अवनक अलख अल्प अवरन सौ करती। वह सव सो, सव धहि मौ घोडा अमुके रग की हों तो तो घोडा उपर चढि के श्रीनाथजी बरता ।—जायसी (शब्द०)। २ एक रग का नही । भिन्न । द्वार जाइए ---दो मी बावन पृ० १६३ । उ०--इद छोड बेहद भया अवरन किया मिनाने । दाम अवलक-सञ्ज्ञा पुं० एक प्रकार के वर्ण का आश्व । अबलख । कवीरा मिल रही सो कहिए रहमान -कवीर (शब्द०)। अवलख-वि० [अ० प्रवलक] १ कुवरा। दो रगा। सफेद और अवरन -संज्ञा पुं० [सं० आवरण] ३० 'आवरण' । काला अथवा मफेद और लाल रग का । अबरन्य--सज्ञा पुं० [सं० अवय] दे० 'अवयं'। उ०—कहू' अबर- अवलख-सज्ञा पुं० १ वह घोडा जिमका रंग सफेद और काला हो । न्यन को कहते भूपन बरनि विवेक ।-भूपण ग्र०, पृ० ६१ । उ०—-अव नव प्रवरस लखी सिराजी । चौतर लाने समुद मब अवस--सज्ञा पुं० [अ० अवरश] १ घोडे का एक रग जो सब्जे से ताजी। जायसी (शब्द०) । २ बहू वै । जिस का रग मफेद कुछ खुनता हुआ सफेद होता है। ३ घोड़ा जिसका सब्जे से कुछ और काला हो । वरा वैल ।