पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३२५

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३६६ मुहा०—अव = इस समय की 1 आधुनिक । अबकी = इसे वार अबट(५)- सज्ञा पु० [सं० अ + वाट ] दुर्गम रास्त: । हीन मार्ग । अब की बात अव के हाथ= समय के अनुसार कार्य करना । जो विपथ । उ०-~-नर तेथ निभाणा, निलजी भारी, अकबर गाहक बात बिगडी नही है उसे सपन्न करना । अब के लोग = वट अवट । वेलि० (मू०), पृ० ३१ ।। आधुनिक जन । अब जाकर इतनी देर पीछे। उ०—महीनो अवटन--सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'उबटन' । से इस काम में लगे हैं, अब जाकर खतम हुअा है। अब तच अवड धवड ---वि० [अनु॰] वेतरतीब । असगत । जल्दबाजी। करना = हीला हवाली करना । अव तब लगना या होना = अवतर-वि० [ ० अन्तर ] [ सज्ञा अवतरी ! १ बुरा । रद । मरने का समय निकट होना । उ०—जब वैद्य आया तब उसका खराव । २ गिरा हुआ। विगडी हुआ । उ०-अफसोम ऐ सनम अब तब लगा था । अव न तवे = न इस समय न फिर कभी । तुम ऐसे हुए हो अवनर । मि नते हो गैर में जा हमसे रुखाइयां अव भी = (क) इस समय भी। (ख) इतने पर भी । हैं ।—कविता कौ०, मा० ४, पृ० ६६ ।। उ०—इतनी हानि उठाई अव भी नहीं चेतते । अव से = इस अबतरी--संज्ञा स्त्री० [अ० अब्तरी] १ घटाव । विगाड । क्षय । समय से 1 अागे । भविष्य में । उ०—अब से मैं ऐसा कार्य भूल- अवनति । २ बुराई । खरावी । कर भी न करूंगा। अबदार--वि० [फा० आबदार] दे० 'विदार' उ०---पति ची अवसझा पु० [अ०] बाप । पिता [को०] । प्रीत धारिया पूरी, हेमराज अवदार हजूरी |–० सू०, अवक -सज्ञा पुं॰ [ अ+हृि० वक ] अनुचित बात । अकथ्य । पृ० ३१६ । । उ०—राखो ग्रागै रसण, राघव नाम रसाल । मुख माँझल अबद्ध"--वि० [सं०] १ जो बँधा न हो । मुक्त । २ स्वेच्छद । निर आणिो मती, गिरेंग प्रवक ज्यू गाल ।-वकीदस ग्र०, भा० कुश । ३ असवद्ध । निरर्थक । ३, पृ० ७६ । । यौ--अवद्ध वाक्य = वह असवद्ध वाक्य जिसमे अन्वयबोध की अवका-सा पुं० [ फिलि० अबुका, स० अवका= सेवार ] एक पौधों योग्यता न हो अर्थात् जिससे कोई अभिप्राय न निकले । जैसे- जिसकी डठल की छान रेशेदार होती है। कोई कहे कि मैं जन्म मौन हूँ, मेरा बाप वह्मचारी, माता विशेष—यह पौधा फिलिपाइने देश का है। अब इसकी खेती बध्या और पितामह अपुत्र था। अबढ़मुख = जिसके मुख मैं अडमान टापू और अराकान की पहाडियो में भी होती है । लगाम न हो । अडवड बोलनेवाला । अबद्धमूल = जिसकी जड खेती इस प्रकार की जाती है-इसकी जड से पेड के चारो शोर पुष्ट न हो । पौधे भूफोह निकलते हैं। जब वे तीन तीन फुट के हो जाते हैं अबद्ध-सज्ञा पुं॰ अस मव या असामान्य बस्तु [को॰] । तव उन्हें उखाडकर खेतो मे ८-९ फट की दरी पर लगाते हैं। अबद्धक-- वि० [सं०] ६० 'अवद्ध' [को० ।। इसकी फसल तैयार होती है तब इसे एक एक फुट ऊपर से काट । अबध -वि० [स०अबाध्य] जो रोका न जा सके । अवाध्य । लेते है । इठलो से इसकी छाल निकाल ली जाती है और साफ निर्वाध । उ०—भरे भाग अनुराग लोग कई राम अवध चितवन करके रम्सी अादि बनाने के काम आती है। इसकी खेदड का चितई है ।—तुलसी (शब्द॰) । में निला पेपर बनता है। अबध –वि०[स० अबध्य] जिसे मारना उचित न हो। उ०-- अवक्र--- वि० [सं० अ +वक्र] टेढा नही । सीधा । उ०---पुनि । तौकौं अवध कहत सब कोऊ तातै सहियत बात । विना प्रयास स्वाधिष्ठान मु द्वितीय चक्र । नही पट्दल पट् अक्षर अवक्र । । मारिह ताक, अाजु रे नि के प्रति ।—सूर (शब्द॰) । सुदर ग्र०, पृ० ४६ । अवधू -वि० [सं० अवोध, पुं० हि० अवघ] अज्ञानी । अवोध । अवखरा- संज्ञा पुं० [अ० अब्खर (बुखार का बहुत्र०) 1 भाप । मूर्ख । उ०—(क) अवधू छोडो मन विस्तारा |-- कबीर वाष्प । | (शब्द॰) । (ख) अवधू कुदरत की गति न्यारी --कबीर क्रि० प०—उठना । चढ़ना । (शब्द॰) । अबखोरा-सझा पु० [हिं०] ६० ‘अावखोरा' ।। अबघू –सशा पु० [सं० अवघूत] त्यागी । सन्यासी । विरागी । अवगत..---वि० [म० अविगत १ जो जाना न जाय। अज्ञात । अवधूत । सत । साधु । उ०—जिन अवधु गुरु ज्ञान लखाया । २ अनिर्वचनीय । ३ नित्य (ईश्वरबोधक) । उ०—नही वाप ताकर मन तहई लै धाया ।—कबीर (शब्द॰) । ना माता भाए। अवगत से ही हुम चल आएकवीर | अवधूत--सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अवधूत' ।। अ५१७ सा०, पृ० ६२५ ।। अबध्य–वि० [सं०] [वि० सी० अबध्या] १. न मारने योग्य । जिसे अवगति --वि० [हिं०] दे० 'अवगत' । । मारना उचित न हो। २ जिसे मारने का विधान न हो। जिसे अर्बचन –वि० [सं० अ + वचन] दुर्वचन । अपशब्द । उ०--बचम शास्त्रानुसार प्राणदेड़ ने दिया जा सके । जैसे--स्त्री, ब्राह्मण । प्रवचन रहित सोई जानिये ।—सुदर ग्र०, भा० २, पृ० ६२५ । वालक आदि । ३ जो किसी से न मरे । जिसे कोई मा अवजरवेटरी-सच्चा स्त्री० [अ० वजरवेटरी] वह स्थान जहाँ ग्रहो न सके । इतनी+सा सी० [हिं०] दे० 'अवनि' । ३०--इह अनि में की गति, ग्रहण, ग्रहयुद्ध, अादि खगोल सवधी घटनाग्रो का भि । भोजन करायौ।-पोद्दार अभि० अ०, पृ० ४८३ । निरीक्षण किया जाता है। वेधायल । बेघशाला । वेधम दिर। अवर@--वि० [सं० अ+बल] अबुल । निर्मल ३० मान मंदिर । पीर जवर सब बिन मरू' |--तुलसी= श, पृ० ५१ हाँ तक, अब कोऊ लारना उचित अवधू' घटनाग्रो का अवनी-सी है। वैधायल । बेधी