पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३२४

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अफवाज अफबाज-सज्ञा स्त्री० [अ० फौज को नईव० 'अफवाज मेना। फौज । नींद आती है। विशेषं मात्रा में यह विषैली श्रीर प्राणघातक उ०—१ जूनो परणे नवी, अमुरारी अफवाज |-- वाँकीदास हो जाती है । इसके लेप से पीड़ा दूर होती है और सूजन उतर ग्र०, मी २, पृ० १ ० ० । जाती है । इसका प्रयोग सग्रहणी, अतिसारादि में होता है । अफवाह-मज्ञा पुं० [अ० अफवाह]१ उडती खबर । बाजारू सबर । बीर्यस्तभन की औपधियो में भी इसका प्रयोग होता है । इसके किंवदती। २ मिथ्या ममाचार । गप्प । खानेवाले झपकी लेते हैं और दूध, मिठाई आदि पर बडी रुचि मु०–अफवाह उडा= निराधार ममाचार फैलान, अफवाह रखते हैं । यह नजले को दूर करती है । और वद्धावस्या में फुर्ती उडाना या फैलाना = १ झूठी वात प्रचारित करना। २, वद लाती है। नाम करना। अफीमची–सशा पु० [हिं० अफीम +पु० ची (प्रत्य०') ] अफीम अफश–सज्ञा स्त्री० [फा० अफश १, बादले के छोटे छोटे टुकड़े अथवा खानेवाला । वह पुरुष जिसे अफीम खाने की लत हो । मूनला या रूपहला चूर्ण जो स्त्रियों के मुख पर शोभा के लिये अफीमी-संज्ञा पुं० [हिं० अफीम +इ (प्रत्य॰) 1 अफीम खानेवाला । छिडके जाते हैं। उ०—-कलानिधि के अमर ललाट पर अफीमची ।। अफशां ।—प्रेमधन, भा॰ २, पृ० १७ । अफीर-सज्ञा पुं० [अ० अफोर] प्रतिवेशी । पडोसी । उ०—-चले साथ अफशा—संज्ञा पुं० [फा० अफशा प्रकाश । प्रकट । जाहिर ।। | ले मर्दु माने अफोर |--कदीर ग्र०, पृ० १३१ ।। यौ॰—अफशायराज = गुप्त मत्रणा का प्रकाश । छिपी वात को प्रफुल्ल--वि० [म०] अविकसित । जो खिला न हो। वेखिला । खोल देना। अपू-संज्ञा स्त्री? [हिं०] दे॰ 'अफीम' । अफसतीन-सझा पु० [यू०] श्री पध के कार्य में प्रयुक्त एक कडग्री और प्रफेन–वि० [सं०] जिसमें फेन न हो । फेनरहित । बिना झाग का । | नशीला पौधा । । अफेन --संज्ञा पुं० [स० अहिफेन] अफी म । । विशेप--यह पौधा काश्मीर में ५००० मे ७००० फुट की ऊँचाई अफोट--वि० [सं० अ+स्कोट] विदारित। खंडित । उ०—-रम्य पर होता है। इससे हरे या पीले रंग का तेल निकाला जाता अरम्य करी सु धरन्निय । रहे मठ कोट अफोट करन्निय ।-- है जो झारदार तया कडा होता है । विशेष मात्रा में प्रयोग पृ० रा०, १॥३६० ।। करने से यह तेल विपैला हो जाता है। इसकी पत्ती विशेषकर अपफना)---क्रि० स० [म० अर्पण पा० अप्पण] दे देना, सौंपना । यूनानी दवाग्रो के काम आती है । ।। अपित करना । उ०—-पुन्नीम पुत्र अपफ पहुमि, इमि च्यतनु अफसर-संज्ञा पुं॰ [ अ० आफिसर ] [ सशा अफसरी ] १. प्रधान । मन मह करिय |--पृ० पृ० ० (उद०), पृ० २११ ।। मूखियाँ । अधिकारी ३ २, हाकिम । प्रधान कर्मचारी। अफ्शा-वि० [फा०अफशा ]०'अफगा' । उ०—–अव जिद करने से राज अफ्शा होती है । मगर क्या करं।--श्रीनिवास ग्र ०,१० ३६ । यौ०–अफसरे आला= प्रधान अधिकारी । सर्वोच्च अधिकारी। | अबछी)---वि० [सं० अवाछित] अनचाहा । अनिच्छित । उ०—- अफसरी--सज्ञा स्त्री० [हिं० अफसर + ई (प्रत्य॰)] १ अधिकार।। सदर तृष्णा करिने जाइ समुद्रही बीच । फटे जहाज अचानक प्रधानता । २ हुकूमत । शामन । होइ अबछी मीच । --सुदर अ ०, पृ० ७१३ ।। क्रि० प--करना 1--जतानी । अबड----वि० [स० अबण्ड] जो अगहीन या पगु न हो। अफसाना--मज्ञा पुं० [फा० अफसातह,] किस्मा। कहानी। कथा । अवघ----वि० [सं०] १ जो किसी वधन में न हो । अबद्ध वधनहीन । अाब्यायिका । निरकुण । उ०---विधानो में अबध विधान विचरते हो सुर क्रि० प्र०--छिडना --छेडना |--रह जाना ।—सुनना --सुनाना माया कर ---गीतिका, पृ॰ ६० । यौ०–अफमानगो = कहानी कहनेवाला ।। अधवन--वि० [स० अबधन] अबघ । मुक्त [को०] । अफसानानवीन, अफसानानिगार--१ कहानीकार कथालेखक। अबधु'---संज्ञा पुं० [सं० अवघु] अमित्र । शत्रु । उ०----वधु, अवधु २. उपन्यासलेखक ।। हिये मॅह जाने । ताकर लोग विचार बखानै ।----राम च०, अफ’----संज्ञा पुं० [फा० + असू] जादू टोना। अभिचार । माया- पृ० १५१ । कर्म । इद्रजान्न [को॰] । अवधु-वि० १ मित्रविहीन । एकाकी । अकेला । २ अनाथ । जिसके अफसोस--सज्ञा स्त्री॰ [फा० अफ पोस] १ शोक । रज । २. पश्प्ता- कोई न हो (को०)। २ वधे या सीमाहीन । असीम । अपार । ताप । खेद । पछतावा । दु ख । उ०---जिन युवको के मणिबधो मे अवध वल इतना भरा था क्रि० प्र०---करना ।—होना ।। जो उलटता घातनियो को । लहर, पृ० ६७ ।। अफीडेविट---संज्ञा स्त्री० [अ० ऐफीडेविट] १ हनफ। शपथ । २ अबध्य---वि० [स० अन्व्य] [स्त्री० अवध्या] १ दे० 'अवघ' । २ हलफनामा । |, सफल, । अव्यये । । अफीम--सज्ञा स्त्रो' [यू० श्रोपियन, अ० अफवून, फा० प्रफ्यून] प्रौपघ अवव्या:--सञ्ज्ञा स्त्री० [स ० प्रबन्ध्या] वह जो वोझ न हो। सतान- | और नशे के रूप में प्रयुत हो नेवानी पोते की केंद्र की गोद । वाली स्त्री । विशेष--यह काछ कर इकट्टी की जाती है। यह कडवी, मादक अव'.--क्रि० वि० [सं० अथ, प्रा० अह, अपवा स ० अध] इस समय । और स्तमक होती है। इसके खाने से कोष्ठबद्ध होता है और इस क्षण । इस घड़ी।