पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३२३

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अप्सरातीर्थ अफव विशेष—इसलिये अप्सरा कहलाती हैं कि समुद्र मंथन के समय | अफनाइ रजपूती सर्व, उतरी हमारी सारी माहिं कफनाइगी।- | उसमे से निकली थी । रत्नाकर, म ० २, पृ० ८ ।। अप्सरातीर्थ--संज्ञा पुं० [स०] अप्सराओ के स्नान का पवित्र तालाव अफयें संज्ञा स्त्री० [अ० अफयून] अफीम । अफयून । ३०-- या स्थल (को०) ।। अफ्यू' मदक चरम के व चडू के बदौनन । थारो के सुदा अप्सरि--सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'अप्सरा' । उ०-कभी स्वर्ग की थी रहते हैं रुग्वसार वसेती ।---मारतेंदु ग्र , भा॰ २, पृ० ७६२। तुम अप्सरि, अव वसुधा की बाल।---गूजन, पृ० ८७ ।। अफयून--संज्ञा स्त्री० [अ० अफयून] दे० 'अफीम' । अप्सरी)-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'अप्सरा'। अफयूनी--वि० [अ० अफयून] ० 'अफीमची' । अप्सु--वि० [सं०] १ आकार या विग्रहहीन । अरूप । २ कुरूप । अफरेन-–मझा रही० [हिं०] अफरना । पेट का फूना। अफरना---क्रि० अ० [म ० * *फार:=प्रचुर] १ पेट भरकर वान । असुदर कि० ।। भोजन से तृप्त होना । अथाना । उ०--प्रगट मिले चिनु मावते अप्सुक्षित-मज्ञा पु० [सं०] स्वर्ग एवं पृथ्वी के बीच अतरिक्ष निवासी कैसे नैन अधात । भूखे अफरत हु मुने, मुरति मिठाई बात - देवता को०) । रसनिधि (शब्द०)। २ पेट का फूलना। ३० (क) लेइ विचार अप्सुचर-वि० [स०] पानी का जतु । जलचर । लागा रहे दादू जरती जाये । कबहू पेट न अफरई 'भावइ तेता अप्सुप्रवेशन--सज्ञा पुं॰ [सं०] कौटिल्य के अनुसार एक प्रकार का खाय |--दादू (शब्द०) । (ख) अफी बीवी ६ मारी (रोटी) । दड जिम में अपराधी जल में डुबाकर मारा जाता था। ३ ॐबनी। उ०—हम उनकी यह नीला देव्रते देखते अफर गए अप्सुयोनि-वि० [म ०] जल से उत्पन्न [को॰] । (मान्द॰) । अप्सुयोनि--संज्ञा पुं० [स०] १ अरव । घोडा । २ बॅन या | अफरा--सहा पुं० [स० अ +स्फार= प्रचुर] १ फूचना । पेट फूलना। नरकुर [को०] । २ अजीर्ण या वायु से पेट फूउने का रोग । अफंड-सज्ञा पुं० [म ७ अ + स्पन्द, अप० फड] १ वैखेडी । फेरफदं । अफरा तफरी--सज्ञा क्षी० [अ० प्रफरा तफरी १ उनटफेर । गड- अडगा । उ०—-(क) महाजनो ने चैनसुखदास को मिलाकर यह बड । लुटपोट । २ जल्दी । हडबडी । वदवासी । मारी अफडे खड़ा कर दिया।—सुदर प्र ०, पृ० १८६ । अफराना)---क्रि० अ० [हिं० अफरना या म० म्फार] पेट भरने से अफगन--वि० [फा० अफगन] गिरनेवाला । जैसे शेर अफगन । संतुष्ट होना । अघाना । उ०-गदहा थोरे दिन में बूद खाई अफगान--संज्ञा पुं० [फा० अफगान] अफगाननिस्तान की रहनेवाला इतरात । अफरान्यो मारन करयो एराकी को लात !- गिरिधर व्यक्ति । काबुली । पठान ।। (शब्द॰) । अफगानिस्तान-स० [फा० अफगानिस्तान] भारत के पश्चिमोत्तर- अफराव--सज्ञा पुं० [हिं० अफरना] पेट फूलने की स्थिति, क्रिया या | स्थित एक प्रदेश जिसकी राजधानी काबुल है । भाव । अफगानी–वि० [फा० अफगान+ई (प्रत्य॰)] अफगानिस्तान की। अफरीदी-मज्ञा पुं० [फा० अफरीद] पठान की एक जाति जो पेशावर अफगानिस्तान से सवद्ध ।। के उत्तर की पहाडियों में रहती है। अफगार--वि० [फा० अफ्गार] घायल । जख्मी। उ०---दिल किसके अफन'- वि० [म०] १ जिसमें फल न हो। विना फन का । फन्नहीन । हाथ दीजे, दिल अफगार कहाँ है ?--कवीर अ ०, पृ० ३२३ । निष्फन्न । ३ व्यथ । निष्प्रपोजन । थ०-परमारथ स्वार अफजल-वि० [अ० अफजल ] १ वहुत वढिया। उत्तमतर । ३ साधन भय अफल सकल, नाहि मिद्धि सई हैं ।—तुलसी । | वहुत अधिक । वहुत ज्यादा किो०] । पृ० ५२८ । ३ वाझ । वघ्या । अफज -सज्ञा पुं० [फा० अफजू] वृद्धि । अधिकता ।। अफल---सज्ञा पु० १ झाऊ का वो 1 २ बकरा । अफला----भज्ञा स्त्री० स०] १ भम्यामुनी । भह आंवला । अफजू-वि० अवशेप । फाजिल । जो अावश्यकता से अधिक हो । घृतकुमारी। चीक्कार । | उबरा हुआ । पर्च से बचा हुआ । अफलातून--सुज्ञा पुं॰ [फा० अफसातून] १ युनान का एक प्रसिद्ध अफताव—सज्ञा पुं० [हिं०] २० ‘ग्राफताब'। उ०—(क) झरत जहें विद्वान् और दार्शनिक जो अरस्तू का गुरु और सुकरात का नूर जहूर अममान लौं रूह अफताव गुरु कीन्ह दया । शिष्य था। २. वडप्पन की शेखी करनेवाला व्यक्ति । भीखा ग्र०, पृ० ६३ ।। मु०---अफलातून के नाती= दोखी करनेवाला । तीसमार बनने अफतावा--संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अफताव' । | वा ना 1 डीग मारनेवाला । अफतावी---सज्ञा स्त्री॰ [हिं०] २० 'ग्राफतावी' ।। अफलित ---वि० [स०] १ जिसमें फन न लगे । फलहीन । २ निष्फन । अफतार--सझा पुं० [अ० ईपतार, फा० अफ्तार] रोजा खोलना । परिणमिरहित । रोजा खोलने के लिये कुछ खाना पीना [को०] । अफला---वि० [सं०] उत्पादक । लाभदायक । जो फल्गु या सा अफतालो)---सज्ञा पुं० [फा० अफताल] अगले पड़ाव पर पहुंचकर | न हो [को०] । टहरने की व्यवस्था करनेवाले कर्मचारी या सेवक । । अफवा----सज्ञा स्त्री० [हिं०] १० 'अफवाह' । उ०' इत्री तरह यह अफनाना- क्रि० अ० [ म ० उत् +स्फार, स्फाल, हिं० उफनाना ] सव वाते अफवा की जहरी हवा में मिलकर चारो ओर उडन | उवात खाना । उत्त जित होना । घबराना। उ०-द्रौपदी कहत लगी ।—श्रीनिवास ऋ०, पृ० ३६१ ।