पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३२२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अँप्राप्तयौवन तर्क के समय क्षोभ के कारण प्रतिज्ञा, हैतु और उदाहरण अप्रियकर--वि० [सं०]जों रुचिकर न हो । अहितकर । अमैत्रीपूर्ण [को०] । अादि को यथाक्रम न कहकर अडवड कह जाने की दोप। अप्रियकारक–वि० [सं०] दे॰ 'अप्रियकर' ।। ४ कमसिन (को०] । अप्रियकारी-वि० [सं० अप्रियकारिन्][वि० स्त्री० अप्रियकारिणी 124 अप्राप्तयौवन---वि० [स०] [वि० ली० अप्राप्तयौवना] जिसकी युवास्था 'अप्रियकर' [को०] । अभी न अाई हो । जो जवान न हो । किशोर [को०] । अप्रियता सच्चा स्त्री० [सं० अप्रिय +ता (प्रत्य०)] बुराई । उ०—हां अप्राप्तवय--वि०[स० अप्राप्तवयस्]१ नाबालिग । १ कानून की दृष्टि अायें प्रिय की अप्रियता करने को कहती हो तुम ।—साकेत, ने मामाजिक जिम्मेदारी के अयोग्य । १६ बर्ष के पूर्व का। | पृ० ३८४ । विशेष-अव उम्र की यह अवधि पुरुपो के लिए १८ अौर स्त्रियों अप्रियभागी--वि० [स० अप्रियभागिन्] [वि० सी० अप्रियभागिनी] के लिए १६ वर्ष मानी जाती है केब न मतदान के लिये दुर्भाग्यग्रसित । अभागा । २१ वर्प है। अप्रियवादी--वि० [सं० अप्रियवादिन्][वि॰ स्त्री० अप्रियवादिनी कडवी अप्राप्तव्यहार-वि० [म०] १६ वर्ष के भीतर का बालक जिसे | वात कहनेवाला । कटुवादी। कठोरवक्ता [को॰] । धर्मशास्त्र के अनुसार जायदाद पर स्वत्व न प्राप्त हुआ हो। नावालिग । अप्रिया--सज्ञा स्त्री० [सं०] शृ गी मत्स्य [को॰] । अप्रीति--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ स्नेह वा प्रेम का अमाव । चाह का न अप्राप्ति-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ उपलब्धि या लाभ का अभाव । २ होना । २ अरुचि । ३ विरोध । बर।। नियम कानून से ग्रसिढ़ । ३ अनहोनी । ४, जो लागू न हो । अप्रीतिकर-वि० [सं०] वि० जी० अप्रीतिकारी] १ अप्रिय । नाप- अनुपपत्ति [को०] । अप्राप्तिसम-सज्ञा पु० [सं०] न्याय में जाति या असत् उत्तर के चौवीस सद । २. कट । कठोर अननुकूल [को॰] । भेदो में से एक । अप्रटिस–सच्चा पु० [अ० ऐप्रटिस ]वह पुरुप जो किसी कार्य मे कुशलता विशेष--यदि किसी के उत्तर में कहा जाय–'तुम्हारा हेतु अौर प्राप्त करने के लिये किसी कार्यालय में बिना वेतन निये बा साध्य दोनो एक आधार में वर्तमान हैं या नहीं ? यदि वर्तमान । । अल्प वेतन पर काम करे। उम्मेदवार । हैं तो दोनो बराबर हैं। फिर तुम किने हेतु कहोगे और किसे अप्रत--वि० [सं०] ने गया हुआ । गत । मृत नही [को०] । साध्य ?' तो इसे प्राप्तिसम कहेगे । और यदि साथ ही इतना । अप्रतराक्षसी-सच्चा स्त्री॰ [स०] तुलसी का पौधा [को०)। और कहा जाय --'यदि दोनो एक अाधार में नहीं रहते तो । अप्रैल----स) पुं० [अ० एप्रिल] एक अगरेजी महीना जो प्राय चैत मे तुम्हारा हेतु साध्य का साधन कैसे कर सकता है ?' तो इसे पडता है । यह महीना ३० दिन का होता है ।। अप्राप्तिसम कहेगे । अप्रलफुल-सज्ञा पुं० [अ० एप्रिलफूल] जो अप्रैल महीने के पहले अप्राप्य---वि० [सं०] जो प्राप्त न हो सके। जो मिले न । अलभ्य । दिन हँसी मे बेवकूफ बनाया जाय । उ०—जो यो निज प्राप्य छोड़ देंगे । अप्राप्य अनुग उनके । विशेप--इस दिन योरपवाले हँसी दिल्लगी करना उचित लेंगे |--साकेत, पृ० १४७ ।। | मानते हैं। अप्रामाणिक----वि० [स०][वि॰ स्त्री० अप्रामाणिकी] १ जो प्रमाणसिद्ध अप्रोक्ष---वि० [स० अपरोक्ष] जो परोक्ष न हो। प्रत्यक्ष । दूर न | न हो। ऊटपटांग । २ जिसपर विश्वास न किया जा सके। हो । उ०—देहई क व व मोक्ष देहुई अप्रोक्ष प्रोक्ष ।—सदर अप्रामाण्य सज्ञा पुं० [सं०] प्रमाण या सबूत का अभाव को०)। ग्र०, भा॰ २, पृ० ५९२ । अप्रावृत–वि० [सं०] जो ढंका या परिच्छिन्न न हो । अनावृत । खुला अप्रोषित--वि० [सं०] जो चला न गया हो । जो अनुपस्थित न हो। हुआ [को॰] । जो उपस्थित हो [को॰] । अप्राशन--संज्ञा पुं० [स] प्रहार ग्रहण न करना । अनशन [को०]। अप्रौढ- वि० [सं० अप्रौढ़] १ जो पुष्ट न हो। कमजोर २. कच्ची उम्र अप्रासगिक-वि० [सं० अप्रासङ्गिक] जो प्रसगप्राप्त न हो। प्रसग का । नाबालिग । ३. अप्रगल्भ । अनुद्धत [को॰] । विरुद्ध । जिसकी कोई चर्चा न हो। अप्रौढा–सशी जी० [सं० अप्रौढ़ा] १ कन्या । कुमारी। २. विवाहिता अप्रास्तविक–वि० [सं०] दे॰ 'अप्रस्ताविक' (को०] । किंतु अरजस्वला कन्या । अप्रियवद-वि० [सं०] कटुभापी । कठोर शब्द कहनेवानी [को०] । अप्लव-वि० [सं०] १.जलयानहीन । २. जो तैरता न हो । ने अप्रिय-वि० [सं०] [वि० सी० अप्रिय] १ जो प्रिय न हो । अरुचि- तैरनेवाला [को]। कर । जो न अचे। जो पसंद न हो । उ०-~-सत्य कहहु अरु अप्सर पति-सया पुं० [सं०1 अप्सराओं के नाय । इद्र (को०)। प्रिय कहहु अप्रियं सत्यं न भाखा --श्रीनिवास ग्र०, पृ० १८७॥ २ जो प्यारा न हो । जिसकी चाह न हो । उ०--सुनि राजा अप्सर'-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'अप्सरा' । अति अप्रिय बनी।---मानस १।२०६ । ३. शत्रुतापूर्ण । अमित्र अप्सर–सी० पुं० [सं०] जलजंतु । जलचर [फो]। यो मात्रुवत् को०)। अफरा-सज्ञा स्त्री० [म० अप्सरस्] १. अदुकण । वप्पण। २. भप्रिंय-सा पुं० [सं०] १ वैरी । शत्रु । २. वैत । बेतस । निचुले । वेश्याग्रो ने एक जार ३. स्वर्ग की वेश्या । इंद्र की स मा मो०---अप्तिम भद्र। झप्रियकर । अप्रियकारी । अप्रियवाद । में तीननेवानी देनाभन । परी । = = = पेशा हो । अप्सर । अनि