पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३२१

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अप्रवृत्त मप्राप्तकात अप्रवृत्त--वि० [१०] १ जो क्रियारत न हो। निष्क्रिय । २ अप्रस्तुतप्रशंसा–सझा [स०] वह अर्थालंकार जिसमें प्रस्तुत के कयन | असनद्ध (को०) । द्वारा प्रस्तुत का बोध कराया जाय ।। अप्रवृत्तवध-वि० [सं०] कौटिल्य के अनुसार जिसकी अोर से अत्रि विशेष—-इसके पाँच भेद है--(क) कारणनिबधना-जहाँ प्रस्तुत मण न हुआ हो । वा इप्ट कार्य का बोध कराने के लिये अप्रस्तुत कारण का अप्रवृत्ति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ प्रवृत्ति को प्रभाव । चित्त का झुकाव कथन किया जाय । जैसे- लीनो राधा मुय रचन, विधि ने न होना। २ किसी सिद्धात वा सूत्र का न लगना। किसी सारः तमाम । तिहि मग होये प्रकाश यह राशि में दीखत विचार का प्रयुक्त स्थान पर न खपना । ३ अप्रचार । ४ श्याम ।—मतिराम (शब्द॰) । (ख) कार्य निबंधना--जहाँ कोष्ठबद्धता [को॰] । कारण इष्ट हो और कार्य का कथन किया जाय । जैसे—तु पद अप्रवेश्य–वि० [स०] प्रवेश न करने योग्य । जिसमे प्रवेश न हो सके। नख की दुति कछुक, गइ घोवन जन माथ । तिहि कन मिलि उ०—विदा होय | मेरे सुदर, अप्रवेश्य सा अधकारमय हुआ दधि मयन में चद्र भयो है नाय |–मतिराम (शब्द०)। अाज यह मेरा घर |–कुणाल, पृ० १४ । (ग) विशेषनिब धना—जहाँ सामान्य इप्ट हो और विशेष का अप्रशसनीय–वि० [स०] निंदनीय । निदो के योग्य । कथन किया जाय । जैसे--लालन मुरतम् धनद हैं, गनहितकारी अप्रशस्त---वि० [स०] १ जो प्रशस्त न हो । नीच । कुत्सित । बुरी । होय । तिनहू' को अादर न हूँ, यो मानत बुध लोय |–मति- २ क्षीण (को०) । ३ अविहित । निषिद्ध (को॰] । राम (शब्द॰) । (घ) मामान्यनिवधना--जहाँ विशेष कहना अप्रशिक्षित--वि० [सं०] जिसे किसी कार्य की विशेष शिक्षा न मिली इष्ट हो पर सामान्य का कथन किया जाय । जैसे-सीख न हो । जो प्रशिक्षित न हो। मानै गुरन की, 'अहितहि हिन मन मानि । सो पछतावे तासु अप्रसंग-सज्ञा पुं० [स० अप्रसङ्ग] १ आसक्ति, प्रयोजन या संवध का फन, ललन भए हित हानि ।--मतिराम (शब्द०)। (च) | अभाव । २ बेमौका (को०) । सारूप्यनिबधना--जहाँ अमीप्ट वस्तु का बोध उसके तुल्य बस्तु अप्रसग–वि० १ मवघरहित । २ प्रसगहीन । वेमौका ।। के कयन द्वारा कराया जाय । जैसे-बक धरि धीरज कपट अप्रसक्त- वि० [स०] १ जो अशक्त न हो । धेलगाव । २. असंबद्ध। तजि, जो बनि रहे मराल । घरै अत गुन्नाव कवि, अपनी ३ निर्वाघ । विना रोक टोक (को०] । वोननि चान |--गुलाव (शब्द॰) । अप्रसक्तिसज्ञा श्री० [सं०] अनुराग या प्रवृत्ति का अभाव । आसक्ति- अप्रहृत---वि० [म०] १ को (कपडा) । जो (वस्त्र) पहना ने गया हीनता (को०] । हो । २ जो (भूमि) जोवी न गई हो । बजर । ३ ३ अक्षत । अप्रसन्न–वि० [सं०] जो प्रसन्न न हो । असनुष्ट। नाराज । २ अछूता (को०)। ४ जो मारा था नष्ट न किया गया हो। खिन्न । दुखी । उदास । विरक्त । ३ पकिन । कीचड से युक्त। यथावत् ।। अप्रसन्न—सा पुं० छपाई हुई गाय का सात दिन के बाद दध । अप्राकरणिक-वि० [भ][वि॰ स्त्री० अप्राकरणिका, अप्राका अप्रसन्नता--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ नाराजगी । असतोप । २ रोप । । विषय या प्रकरण जिसको लगाव न हो । असगत [को०] । कोप । ३ खिन्नता । उदासी । अप्राकृत--वि० [म ०] १ जो प्राकृत न हो । सस्कृन । २ अस्वा- अप्रसाद-संज्ञा पुं० [सं०] प्रसन्नता, कृपा या अनुकूलता का अभाव । माविक । ३ असामान्य । असाधारण । ४. जो प्राकृत भाषा [को०) । का या उससे सयट्स न हो [को०] । अप्रसिद्ध--वि० [सं०] १ जो प्रसिद्ध न हो। अविख्यात । जिसको अप्राकृतिक--वि॰ [न०] स्वभाव था कृति के विरुद्ध । अस्वाभा। लोग न जानते हो। २ गुप्त । छिपा हुआ। तिरोहित । अतीकिक कौ] । अप्रसिद्धि- मशा स्त्री० [स०] ख्याति वा प्रसिद्धि का अभाव। उ०—- अप्राय--वि० [सं०] मुम्प नही । गौण । साधारण फो] | अप्रसिद्धि मात्र उपमा का कोई दोष नही 1-रस०, पृ० ३४६। अप्राचीन--वि० [सं०] १ जो प्राचीन न हो। आधुनिक । २ पवान् अप्रसूत–वि० संततिविहीन । सतानरहित (को०) । | नही । पाश्चात्य (को॰] । अप्रसूता-ज्ञा स्त्री० [सं०] स्त्री, जिसे बच्चा न हुआ हो । बध्या नारी। अप्राज्ञ अप्राज्ञ-वि० [म०] अज्ञानी । अशिक्षित । प्रज्ञाहीन [ो०] । वाँझ ।। अप्राण-वि० [सं०] १. बिना प्राण का । निर्जीव। मृत । २ ईयर अप्रस्ताविक-वि० [म०][वि० सी० अप्रस्ताविको] जो मूल विपया का का एक विशेपण ।। था उससे संबद्ध न हो । अप्रास्ताविक [को०] । अप्राण-सज्ञा पुं० ईश्वर । अप्रस्तुत--वि० [सं०] १ जो प्रस्तुत वा मौजूद न हो । अनुपस्थित । अप्राप्त--वि० [म.] १ जो प्राप्त न हो । जो मिला न हो । अनब्ध। २. जो प्रसगप्राप्त न हो। अप्रासगिक । जिसकी चर्चा में आई दुर्लभ । अलभ्य । २ जिसे प्राप्त न हुआ हो । जैसे—अप्राप्त हो । ३ जो तैयार न हो। जो उद्यत न हो । ४ गौण । अप्र- वयस्क, अप्राप्तयौवना, अप्राप्तव्यवहार । ३ अप्रत्यक्ष । परकिं । वान । उ०—-इन धात का ध्यान रखना चाहिए कि अप्रस्तुत अप्रस्तुत । ४ अनागत जो शाया न हो । ५ जिसकी उम्र ।। (उपमान) भी उमी प्रकार के भाव का उत्त’जक हो ।—रस०, विवाह के योग्य न हो (को०)। अप्राप्तकाल—सा पु० [म०] १ जानेवाना समय । पृ० ३४६ । अनवसर। उपयुक्त समय के पहले का समय । ३. न्याय में