पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३२०

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अप्रतीयमान २५७ अप्रयोन सदा । अप्रतीयमान-वि० [१०] जो प्रतीपमान वा निश्चित न हो । अनिश्वत । अप्रमय-पिं० [मं०] १. अनिश्वर ( प्रतीग । प्रमेय (०] । अप्रतुन्न-जि० [H०] १ जिनही चुनना भी मान न हो सके । वेहद । अप्रमाद्धा पो० [सं०] ४ मा का न होना । भ्रात ज्ञान य० । २ अनुपम । वेजोड़ । अप्रमाण'----दि० [सं०] । जो प्रमाणप न हो । अन्नानि । २ अप्रतुन्न’---- ज्ञा पुं॰ [१०] १. वजन या मार का प्रभाव । २ प्रभाव । विना सयुत । क्षीरहिन । ३. नधिकृत । ज्य' । | अवश्यक [८] । ४. अगम । अपरिभि ० ।। प्रत्त-वि० [सं०] जी प्रदान न किया गया हो । न लौटाया प्रमाण-गन्ना ० १ ज प्रमाण न च राहैः । २ प्रानगिर { । हुग्रा [को०] ।। अप्रमाद'- वि० [सं०] प्रमादरहित । अनवरत । उ०——चानी भी श्या- अप्रत्ता-जा स्त्री० [सं०] कुमारी । कन्या जिसका विवाह न हुग्रा मल घाटी में निनित माप में अप्रमाद ---मानापन, हो यनै०] । पृ० १६७ ।। अप्रत्यक्ष--वि० [म०] १ जो प्रत्यक्ष न हो । परो । २. छिपा ।। अप्रमाद-संज्ञा पुं० सावधानता। ततांना । जगमतY [2] । गुग्न । ३ अज्ञान (को०] । ४ अनुपस्थित [को॰] ।। अप्रमित--वि० [सं०] १ मैनाप । अगीमित । ३ अधिकारी द्वार हैं। | अप्रत्यनी–ज्ञा पुं० [सं०] वह काव्यानकार जिसमें शत्रु वे जीतने प्रमाणित न हो (मो०)। के मामयं नै कारण 3ामे मध रहनेवानी वस्तुओं का तिर- अप्रमेय-वि० [मं०] जो गापा न जा गरे । अपरिमित । अगर । पार न किया जाय । जैसे-नृप यह पीटत है परहि, नहि पर अनत । उ०-१ ने अन्य वाण पच्छ अभैप ले ननदान । प्रजा मुरार । राहु शशी को गमन है, नह तारन जु निहार प्राइ यो रणभूमि में पारि अन्नमय प्रमान ऊI -- म २०, (शब्द॰) । पृ० १३३ । अप्रत्यय-ज्ञा पुं० [सं०] १ अधिएवम्त । भरने का अभाव । २. अप्रमोद-मज्ञा पुं० [सं०] १ प्रमग्नना का प्रभाव । २ Tष्टनिवारण (व्याकरण में) वह जो प्रत्यय न हो [को०] । की अक्षमता [को०] । अप्रत्यय-वि० १ बिश्वामरहि। अविश्याम । २ ज्ञान हीन । वोध- । अप्रयत्न'--वि० [८०] प्रयत्नहींन । इन्गाहहीन । उदासीन । [२] । रहित । ३ (मरण) प्रत्यय न्य को॰] । अप्रयत्न-मता पुं० [सं०] प्रयत्न हा अपि । काहि तपन । प्रोदा- अप्रत्याशित-वि० [सं०] जिनकी आशा न रही हो । असमायित ।। सोन्य [को०] !' अचानक । अकि#िमक । उ०---उममे दिप्रगति के साथ अप्र- | अप्रयुक्त-वि० [म०] जिनका प्रयोग न दृप्रा । । जो माग में न जाये। गया हो । अन्य पहूत । उ०—-fदी में प्रयुनः मम्न श ा त्याणित दिकाम होना चाहिए ।---म० शास्त्र, पृ० १८२ । अग्रदुग्ध-वि० पूरी तरह ही हुई । दुग्धरहित [को॰] । प्रयोग भी उनकी मापा की प्राई को पढ़ाने में ही मदद परता अप्रवान'–वि० [सं०] जो प्रधान व मुरुप न हो । गौण । माधारण । है !-रामच० (५०), पृ० ३८ । २ अप्रचति । ३ गव्दादि मामान्य । का अन्यथा या गनन प्रयोग । ४ दुनैम या विरत प्रयोग र ०] । अप्रधान-सज्ञा पुं० गौण कार्य [को०] । अप्रयुक्तत्व-ज्ञा पुं० [H०] वह शब्द जो योगगत प्रौर शुद्ध होते हुए अप्रवृप्प-वि० [सं०] जिने दयाया या हटाया न जा सके । अजेप[] मी व्यवहृत न हो । अप्रव–गा पुं० [सं० अप्रेयन्व] प्रधि का अभाव । अव्यवस्था । । विशेप--:म प्रकार के शब्दों का प्रयोग नापिन्द्र ने कुप्रवध । उ०-ऐसे अप्रवध, फूट और स्वेच्छाचार की देवा । माना गया है। चली कि जोग मापन में कट मरे --श्रीनिवान ग्रं॰, पृ॰ ३३३ । श्रप्रयोग-रज्ञा पुं० [सं०] १ प्रयोग का प्रभा । २. दुष्प्रयोग । ३. अप्रवल-वि० [हिं०] ० 'अपवन' । उ०—पाणी मार्दै प्रजनी भई अव्यवहार [को०] । अप्रवन ग्रागि । यह मनि TT रहि गई मठ है जन्न त्यागी । अप्रलव-वि० [म० अप्रनम्य] pना । गनः । नन्तर (2] । पवीर प्र ० पृ० १२ ।। | अप्रवर्तक-वि० [म०] १ कार्य है त्रिचे प्रेरणा न ३73।। निन् । अप्रवल--वि० [सं० प्र+प्रयल] जो प्रवन न हो । दुबैन । कमजोर। २ अटूट । ग्रनिच्छि ” [२०] । अप्रभ----दि०[३०] 1 कानि । तेजस्विताहीन । हतप्रभ । २ तुन्छ। अप्रवर्ती-वि० [न० अप्रवतिन्] ६० 'प्रश्नपतं' । नाच को० ।। अश्वानी -वि० [-० + प्रमाण, प्रा० प्रमाण, अप० पा+ई अप्रभु-वि० [१०] १ अधिकार या प नावहीन । २. अमर्य । (प्रत्य०)] अप्रमेर । मय । ३०-- नई :, ।। प्रयोर [६] ।। रामुभन । न पर्ज विनगे ना उन २५न। । इर पत्र भनि--स। ग् [१०] म्वर प्रयास [ो०] । में ०, १० २०० ।। अप्रमत्त-वि० [३०] परमाद व गरजाही से रहित । सावधान ! ऋग्रवीन -पि० [५० अप्रवीण] जो प्रवीन न है । र । २० -- न% [३:०) । --7)प नमभी जानी है मटर, मात्र गर्ने मौर ऊ। | प्रीति रि मोरिय म । न यो न ?

    • ।--गुदा, पृ० ११ ।

हुनत नमुभन T3 एम गरे । उ ५ ।। 1 । । ६ । अन्ननः-- [१०] 9, 1ोन । 'पा': । दिए । 'उने [२] १६ ४६ ।