पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३२

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और कोशो की सपन्न परपरा है। मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा १८२५ ई० बहूत विशाल बंगला-इगलिशु कोश बनाला था । ईस्ट इंडिया तमिल का एक विशाल कश तैयार हुआ है जो अनेक जिल्दो में कपनी की शोर से १८३३ ई. में बैंगला सस्कृत-इगलिश-डिक्शनरी प्रकाशन है। इसकी पब्दियोजना तमिल वर्णमाला के अनुसार हैं। तैयार करवाई गई थी। हाउ टर और रामकमल सेन का 'बँगलाइसकी भूमिका में तमिल-काश-परपरा के विकास का विस्तृत विवरण इगलिश कोण भी अत्यंत प्रसिद्ध है। पादरी केरे के बँगला अग्रेजी दिया गया है ।। कोश में ८०००० शब्द थे । इनके अतिरिक्त भी अनेक छोटे बड़े बैंगला अग्रेजी कोण भी बने । केवल वैगला लिपि र भाषा में ही ज्ञानेंद्रइनके अतिरिक्त प्राचीन और अवचीन काल में अनेक तमिल । मोहन दास का बैंगला भापार अभिधान ( द्वितीय सस्कर १९२७ ) कोश निमित हुए। इनमें अनेक नवीन कोश ऐसे हैं जिनमें तमिल और पाँच जिल्दोवाला हरिचरण वद्योपाध्याय द्वारा निर्मित वगीय में अर्थ दिया गया है, कुछ में अग्रेजी द्वारा शब्दार्थ बताया गया शब्दकोश दोनो उत्कृष्ट रचनाएँ मानी जाती हैं। बैंगला में उन्नीसवी है---जैसे तमिल लेक्सिकन' र कुछ नए कोश ऐसे भी हैं जिनमें । नाब्दी से आजतक छोटे व शब्दकोशो के निर्माण की परपरा चली | भारतीय भाषाओं का अर्यवोधन के लिये अश्रय लिया गया है। इन्हीं आ रही हैं । छ ? कोशो में चलतिका अत्यंत लोकप्रिय है। सैकहो अन्य में एकाध तमिल हिंदी कोश भी हैं । कोण भी साज तक रचे गए और प्रकाशित हो चुके है। श्री योगेणचद्र दक्षिण की अन्य हविड भापों में भी १६वी माती के पूवधिं राय का बैग ला शब्दकोश में प्रसिद्ध रचना है। इस ग्रंथ में अनेक । से ही कोश की रचना चली आ रही है । इन भाषाओं में अाज अाधारिक और सहायक ग्रंथो की चर्चा है। उनमे वेगला से सवद्ध भनेक उत्तम प्रौर विशाल कोश प्रव (शित हैं या हो रहे हैं । तेलगू नि । निम्नाकित कोशो के नाम उपलब्ध हैंके त्रि भावी कोश की ऊपर चर्चा हुई है । चाल्र्स फिलिप्स ब्राउन (१) डिक्शनरी भाद् बगाली लैंग्वेज ( स० कैरे--१८२५ ई० ) द्वारा १८५२ ई० में अग्रेजी तेलगु कोज नि मत होकर छापा गया । (२) ए डिक्शनरी व् बगाली लैग्वेज ( स० जॉन सी० मार्शए तेलगू-इग्लिश डिक्शनरी का १६०० ई० में निर्माण पी० मैन--१८२७ ई० ) । शकरनारायण ने किया । १९१५ ई० में अक्सफोर्ड युनिवसिटी प्रेस से भी एक तेलगू कोश प्रकाशित किया गया। विलियम ऐडर्सन ने (३) बगली वोकै व्यूलरी (स० एच० पी० फास्टर-१७९६ ई०) इससे भी बहुत पहले ही, अर्थात् १८१२ ई० मे अग्रेजी-मलयालम का (४) वगाली वोकॅब्यूलरी ( मोहनप्रसाद ठाकुर--१८१० ई० ) कोश बनाया था । जान गैरेट को अग्रेज़ी कर्नाटकी ( कनारी ) कोण (५) डिक्शनरी झाबु बगाली लैंग्वेज ( स० डब्ल्यू० मार्टन--- १८६५ ई० में प्रकाशित हुआ। बाद में भी एफ० कितल द्वारा १८२८ ई० ) । सपादित ( १८६४ ई० में ) कन्नड का भी एक कोश छपा। (६) ए डिक्शनरी व् वगाली ऐड इगलिश ( स० ताराचंद (ख) आर्यभाषाएँ चक्रवर्ती–१८२७ ई० )। हिंदी के अतिरिक्त अाधुनिक प्रार्यभापा के काशो में बैंगला (७) शब्दसिंधु ( अमरकोश के सस्कृत शब्दो की अकारादिवर्णाऔर मराठी का कणसाहित्य कदाचित् अत्यतं सपन्न कहा जा नुक्रमानुसार योजना तथ। बैंगला व्याख्या--१८०८ ई० ) सकता है। इन भापाय के अलावा अन्य प्रायंभापा में भी ग्लासरी व जुडिशल ऐड रेवेन्यू ट्रम्र्स नामक जानसन के अग्रेजी आधुनिक कथा की कमी नहीं है । पजावी मे बहुत से पुराने कोश बैंगला कोश का टाड सस्करण १८३४ ई० में प्रकाशित हुआ एच० एच० है। उहिया, गुजराती, नेपाली, काश्मीरी, असमिया आदि में भी विलसन का जो कोश १८५५ ई० में प्रकाशित हुआ उसमे अरवीं कोश बने हैं। पर बंगला, मराठी और मजावी की चर्चा ही यहाँ फारसी हिदी, हिंदुस्तानी, उडिया, मराठी, गुजराती, तेलगू, कर्नाटकी उदाहरण रूप में की जा रही है । ( कनारी ), मलयालम् अादि के साथ साथ बँगला के शब्द भी थे । श्रीतारानाथ का शब्दस्तोममहानिधि भी अच्छा को कहा बँगला कोश जाता है। बैंगला के फोगा की परपरा--बैंगला भापा का विकास होने मराठी को । के बाद से---वरावर चल रही हैं। अधूिनिक ढग के कोशो में प्रकृतिवाद अभिधान नामक विशाल बैंगला कोश उल्लेखनीय है जिमको मराठी भाप मे को शनिर्माण की परपरा सभवतः उस यादबकाल सपादन धाय मल विद्याल कार ने किया । १८११ ई० में पद्द से प्रारंभ होती है जब महाराष्ट्र प्राफ़त के अनतर अघुिनिक मराठी प्रकाशित हुआ। यह शब्दकोश वस्तुत सस्कृत वेगली शब्दकोश है। का स्वतंत्र भापा के रूप में विकास हुआ और वह प्रौढ हो गई। इमको पूर्णत परिशोधित श्रीर परिर्वाधत सम्करण १६११ ई० में उस युग में कुछ को बनाए गए थे। हेमाद्रि पंडितों द्वारा रचित श्रीशरच्चंद्र शास्त्री द्वारा संपादित होकर प्रकाशित हुआ। इसका पष्ठ अनेक कोशों का उल्लेख मिलता है। संत ज्ञानेश्वर ने अपनी कृति सस्वरण तक देखने को मिला है। कदाचित् इससे भी पहले ज्ञानेश्वरी के दिलष्ट शब्दो की-अकारादि ऋम से अनुक्रमणिका बनाते वगली पुर्तगाली शिनरी वन चुकी थी । पादरी मेनुअल ने बँगला हुए उसी के साथ सरल मराठी में पर्याय पाव्द दिए हैं। इसी के व्याकरण के साथ बंगला-पुर्तगाली तथा पुर्तगाली-बमला कोश (संभवत') द्वारा मराठी से सर्व १२वी शजी के उन कोशो का सकेत मिलता है। बेनाए थे। कहा जाता है कि रामपुर के पादरी केरे साहब ने जो आज अनुपलब्ध हैं। बिवाजी द्वारा भी उनके समय में ‘राज