पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३१८

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अप्रकाश २५५ अप्रतिपत्ति अप्रकाश'--"शा पु० [सं०] १ प्रकार का प्रभाव । प्रश्न कार । २ . गुप्न अप्रचोदित--दि० [सं०] अनिदिष्ट । अवान्छित । अप्रेरित कि । | वात । रहस्य (को०)। अप्रच्छन्न-वि० [सं०] १. जो प्रच्छन्न न हो । खुला हुग्रा। अनावृत । अप्रकाश” --वि० १ प्रकाशहीन । अधकारपूर्ण । २ अप्रकट । गुह्य । २ स्पष्ट । प्रकट । ३ स्वत प्रकाशित किो०] । अप्रच्छिन्न--वि० [स०] जो पृथक् न हुआ हो । अविभक्त को०] । अप्रकाशिन--वि० [सं०] १ जिसमें उजाला न किया गया हो। अप्रछन्न -वि० [हिं०] १० 'अप्रच्छन्न' । उ०—-इम केत देवि अप्रे- अँधेरा ! २ जो प्रकट न हुआ हो। गुग्न । छिपा । ३ जो च्छन्न हो ।—पृ० रा०, ६४।७२ । सर्वसाधारण के सामने न रखा गया हो। जो छापकर प्रवजित अप्रज-वि० [२०][वि० ली० अप्रजा] १ सततिहीन । निस्सतान ।२. न किया गया हो । | अजन्मा । ३ जनहीन [को०] । अप्रकाश्य---वि [सं०] जो प्रकाश या प्रकट करने योग्य न हो। गोप्य 1 | अप्रजे --वि० [हिं०]दे० 'अपराजेय' । उ०—-भाण मणि भुजे ऊटियो gm.a, । अप्रकृत--वि० [सं०]१ अस्वा5भाविक । २ वनावटीं । कृत्रिम । गढा श्रप्रजे --० ९०, पृ० २७० ।। हुआ। ३ झुठा । ४ गौण। अप्रामगिक [को॰] । ५ अाकस्मिक । अप्रज्ञ'—वि० [म०] मदबुद्धि । बुद्धिहीन मतिहीन । प्रज्ञाशून्य (को०] । | [को०] ।। अप्रज्ञ”–सज्ञा पु० मूर्ख या पुरुप [को०] । अप्रकृत’---मज्ञा पुं० १ उपमान । २ पागल व्यक्ति [को०]। अप्रकृताश्रितलेप-सज्ञा पुं० [सं०] श्लेप नामक गव्दाल कार का एक अप्रतक्त्र-वि० [सं०] जिसके विषय में तर्क वितर्क न हो सके। जो तर्क | द्वारा निश्चित न हो सके ।। भेद जिनमे प्रस्तुत और अप्रस्तुत का लेप हो । जैसे-तिय तो अप्रति -वि० [स०] १. प्रतिम । वे जोड | अद्वितीय । २ जिसका ऐमी चंचलता, जीवन सुखद समन्छ । वसति हृदय घनश्याम कोई विरोधी, शत्रु या प्रतिद्वद्वी न हो (को०] । के बर माग सुप्रच्छ । विशेष –ह दो शब्दो को भग अर्थात् अक्षरों को कुछ इधर अशा अप्रतिकर—वि० [सं०] विश्वसनीय । विश्वासपात्र । विश्वम्न [को०)। उधर कर देने से,स्त्री और विजनी दोनों पर घटता है। स्त्री पक्ष | अप्रतिकार—सा पुं० [स][वि० अप्रतिकारी] १ उपाय का अभाव । में अर्थ करने में सखी नायिका मे कहती है कि तेरे समान दूमी । तदवीर का न होना । २ वदने का न होना। स्त्री जीवनमुखदायिनी और कम नयनी धनश्याम के हृदय में | अप्रतिकार--वि० १ जिसका उपाय या तदबीर न हो सके । लाइ- अप्रातकार'--वि० १ जिसका उपाय या तदबीर न । वसती है। विजल पक्ष लेने से यह अर्थ होता है कि है, स्त्री । लाज २ जिसका वदना ने दिया जा मके ।। तेरे समान विजती है जो जीवन अर्थात ज न देनेवाली है, अप्रतिकारी--वि० [स ० अप्रतिकारिन्] [वि० झी० प्रतिकारि] १ इत्यादि । इन दोनों पक्षो में दूसरी स्त्री और विजली दोनो । —उपाय या त दवीर न करनेवाला । २ बदला न लेनेवाला । शप्रस्तुत हैं। ' वदला न देने वाला। अप्रकृति--सा झी० [सं०] १ प्राकृतिक या स्वाभाविक स्यिति का अप्रतिगृहय--वि० [सं०] जिमका दान या उपहार ग्रहण न किया जा अभाव । विकृति । २ साम्य के अनुसार कार्यकारण से भिन्न सके [को०] । अात्मा । पुरुष [को०] । | अप्रतिगृहीत--वि० [सं०] जिसका प्रतिग्रह न किया गया हो । जो अप्रकृतिस्थ-वि० [सं०] १ अस्वस्थ । बीमार । रोगादि या अन्य। | लिया न गया हो ।। | भय से ग्रस्त को०] । अप्रतिग्रग्रहण- संज्ञा पुं० [सं०] [वि॰ अप्रतिग्राह्य, अप्रतिगृहीत] १ अप्रकृप्ट-वि० [भ] क्षुद्र । नीच । वुरा [को०] । • • | दान न लेना । किसी वस्तु का ग्रहण न करना । २ विवाह न अप्रकृष्ट’–सझा पुं० [सं०] कौग्रा । वायस (को०) । वरना । कन्यादान का ग्रहण न करना। अप्रकेत--वि० [सं०] जिसे जाना न जा सके । अविश्य । अप्रतक्यं ।। अप्रतिग्राह्य–वि० [स०] जो प्रतिग्रहण करने योग्य न हो । जो लेने उ०--आदि में तम से घिरा हुआ तम था, वह अप्रकेत (अप्र- योग्य नै हो । जायमान) था, और सलिल (जल) था--प्रार्यो०,पृ० १८३ ।। अप्रतिघ---वि० [म०] १ अदम्य । अजै ।। २ जिसे रोका न जा सके । अप्रखरै--वि० [सं०]१ मृदु । कोमल । २ जो तेज न हो । प्रतीक्ष्ण अनिवार्य । ३ क्रोधविहीन । अक्रुद्ध को० ।। [को०] । ३ मुस्त [को०] । अप्रतिघात--वि० [सं०] १ विना प्रनिधान के।। जिम का कोई प्रति अप्रगल्भ----वि० [स०] १ अप्रौढ । अपरिपक्व । अपरिपुष्ट । ३ घात या विरोधी न हो। वेरो छ । २ वेठोरकर । वैचोट । धय के ' निरुत्साह । नियम । ढोना । मुस्त [को०) ।

  • में बचा हुग्रा ।

अप्रगुण---वि० [सं०] परेशान । घडया हुअा (को०] । अप्रतिद्वद्व—वि० [स० अप्रतिद्वन्द] जिसके मुकाबले का कोई न हो । अप्रग्राह--वि० [भ] अनियति । बेलगाम (को०) । | वेजोड को०] । अप्रचरित-वि० [सं०] जिसका प्रचार न हो । अप्रचत्रित । 1 अप्रतिपक्ष-वि० [म०] १ जिसका कोई विरोधी या स्पर्धा न हो। अप्रचलित--वि० [सं०] जो प्रचलित न हो । जिमका चलन न हो। विरोधीविहीन । २. वैजोड । झम मान को०] । अव्यवहृत । अप्रयुक्त । अप्रतिपण्प-वि० [२०]जिमका विक्रपण या विनिमय न हो मकै फो०)। अप्रचारित-वि० [सं० अ + प्रचारित] जिसका प्रचार या प्रसार न अप्रतिपत्ति--सा सी० [३०] [वि॰ अप्रतिपन्न ] १ प्रन अयं किया गया हो ।' समझने की अयोग्यता । २, कर्तव्यनिश्चय का अभाव । क्या