पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३१३

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अपान २५० अपात्रय अपान” –वि० [म० अ +पान] जो पीने के योग्य न हो। अपेय। अपार-सशा पु० [सं०] १ साय में वह तुष्टि जो घनोपार्जन के । उ०—माधौ जू मोते और न पापी । भच्छि अभच्छ अपान पान परिश्रम और अपमान से छुटकारा पाने पर होती है। 3. करि कबहू' न मनसा धापी |--सूर० १॥१४० । समुद्र । सागर । [को॰] । ३ नदी का दूसरा किनार (को०)। अपानद्वार-सझा पु० [सं०] गुदा [को॰] । अपारक-वि० [म०] असमर्थ । अशक्त । अयोग्य । अदक्ष किंवै०} ।। अपानन--सज्ञा पुं० [सं०] १ श्वसनक्रिया । साँस लेना । २ मल- अपारदर्शक-वि० [म० प्र + पारदर्शक] जो पारदर्शक न हो । जिसके मूत्र का निकलना या वहिर्गमन [को॰] । पार प्रकाश न जा मके ।। अपानपवन-संज्ञा पुं० [सं०] १ शरीरस्थ अपो न नामक वायु । २. विशेप-लोहा, ताँवा, सोना, लकडी, ईंट, पत्थर आदि प्रकाश को गुदा से निकलनेवाली वायु । पाद [को०] । । रोक लेते हैं। इनमे होकर प्रकाश नही निकन संकृती अत अपानवायु-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अपानपवन' ।। इन्हे अपारदर्शक कहते हैं । अपाना--सर्व० [हिं०] [स्त्री० अपानी] दे॰ 'अपना' । उ०---(क) अपारदशिता--संज्ञा स्त्री० [म० प्र+पारदशना] वह स्थिति जिपमें- साहव लेई चलो देस अपना ।—धरम०, पृ० २८ । (ख) प्रकाश पार न जा सके। लोग सव गेह के, प्रवीन है अपानी घाई देह जुताई नयो । अपादर्शी---वि० [नं० अ +पारदशन्] ३० 'अपारदर्शक' । नयो नेह जोरिहै 1- दीन ग्र०, पृ० १४०। अपारा-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] धरित्री । पृथ्वी (को०)। अपानृत- वि० [भ] झूठ से रहित । सत्य [को०] । अपार्ण-वि० [१०] १ दूरस्थ 1 २ निकटस्थ [को०)। अपाप--संज्ञा पुं० [सं०] जो पाप न हो। पुण्य । सुकृत । उ०— अपार्थ-वि० [सं०] १ अर्थहीन । निरर्थक । २ निष्प्रयोजन । संग नसे जिहि भांति ज्यो उपजे पाप अपाप । तिनसो लिप्त न व्यर्थ । ३ नष्ट । प्रभावशून्य । होहि ते ज्यों उपलनि को श्राप ।—केशव (शब्द०)। अपाप-वि०[स्त्री॰अपापा] निष्पाप । पापरहित । उ०—वह पुण्यकृती अपार्थ--सझा पु० १ कविता में वाक्यार्य =पष्ट न होने का दोष । २ दे० 'अपार्थक' [को०] । अपाप थे, पहले ही अवतीर्ण प्राप थे --माकेत, पृ०'३३६ ।। अपामार्ग–मझा पुं० [म०] विचडा । चिचडी । ॐगः । ॐगी। अझा- अपार्थक-सज्ञा पुं० [सं०] न्याय में एक निग्रह स्थान जो ऐसे वाक्यो के झार । लटजीरा । प्रयोग से होता है जो पूर्वाएर असद्ध हो । अपापी-वि० [ मै० अपापिन् ][ वि० सी० अपायिनी ] निष्पाप । अपार्थकरण--सज्ञा पुं० [स०] मुकदमे में झूठा वयान, दी। या तर्क अपाप [को०] । | उपस्थित करना [को०] ।। अपामार्जन--सज्ञा पुं० [न०] १ शुद्धि । सफाई । २ (व्याधि या दोष अपार्थिव-वि० [सं०] अभौतिक । जो पृथ्वी या मिट्टी से सव अथवा का) निरोध या निवारण को०] । उत्पन्न न हो [को॰] । अपामृत्यु—मज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'अपमृत्यु' [को॰] । अपालक--सक्षा पुं० [सं० अपालडू] रग्वध । अमलतास [को०] । अपाय---सज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० अपायी] १ विश्लेष। अलगाव । २ अपाल-वि० [स०] रक्षाहीन । रक्षकविहीन [को०)। अपगमन । पीछे हटना । ३ नाश । उ०--सब अपाय भय । अपाव--संज्ञा पुं० [स० अपाय = नाश] अन्यथाचार। अन्याये । उपद्रव खोय सदा सुभ करत जाय है।--बुद्ध च०, पृ० २१९ ४५ अपावन–वि० पुं० [सं०] [वि॰ स्त्री० अपात्रन] अपवित्र । अशुद्ध । अन्यथाचार । अनीति । उपद्रव । उ०--करिय स मार कोस न मलिन । उ०—तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरे ।--मानस, पृ० ५२।। राय । अकनि जाके कठिन करतब अमित अनय अपयि ।- तुलसी को०)। ५ खतरा । विघ्ने [को॰] । ६ हानि । | अपावरण-सझा गु० [सं०] [स्त्री० अपावृति १ उचाना । खोलना। 1 २ ढाकना । छिपाना। ३ आवृत करना [को०] । क्षति (को०)। ७ शब्दात । शब्द की समाप्ति । ८ गायब होना। अपावर्त्तन--संज्ञा पु० स०] १ पलटाव । वापसी । २ भगिन। लुप्त होना कि०] । अपाय -वि० [सं० अ = नहीं +पाद प्रा० पाय = पैर] १ विना | हटना । ३ लौटना । अपावत--वि० [सं०1१ जो ढक या वद न हो । २ जो हैं पैर का । लँगडा । अपाहिज । २ निरुपाय । असमर्थ । उ०— राम नाम के जपे जाय जिय की जरनि । कलिकाल अपर । यी आवृत हो । ३ स्वतत्र । अनियत्रित [को०] । अपवति--संज्ञा स्त्री० [अ०] १० 'अपॉवरण' को॰] । रब का चित्र की तरनि ।- अपावृत्त'-.--सझा पुं० [सं०] १ लौटना (घोडे का) । २ (युद्ध में) तु उसी (शब्द०)। | वगली काटना [को॰] । अपायी--वि० [स० अपायिन [वि० मी० अपायिनी] १ नष्ट होनेवाला । अपावत्त--वि० [सं०] १ पछाडा कुरा । भगा या भगाया है। | नम्बर । अस्थिर । अनित्य । २ अलग होनेवाली । ३ गायब हराया हुश्रा । २ तिरस्कारपूर्वक अस्वीकार करनेवाला [को०] यो लुप्त होनेवाला [को०) । अपाश्रय-वि० [स०] वे महारा। निराधार । अाश्रयहीन । निरवलव अपार-वि० [सं०] १ जिमका पार न हो। सीमारहित । असीम । असहाय । दीन (को०] । अनत । बेहद । उ०--एक दिन सहसा सिंघु अपार । लगा अपाश्रय--संज्ञा पुं० [म०] १ सिरहाना । पिस्तर का वह भाग १ टकराने नगतल क्षुब्ध | कामायनी, पृ० ५२ । २,-असरूप । तिर को प्रश्रय दिया जाय । ३ चॅदोबा या शानियाना । ३ अधिक । अतिशय ! अगणित । बहूत । ३, तव्हीन। आश्रयस्थल [को०) । हसा सिंदुहित । असीम, अपाश्रया हुई।