पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३१२

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अंपाक २४९ अपान अपाक—सज्ञा पु० [म०] १ अजीर्ण । अपच । २' कच्चापन । अपात्र-वि० [सं०] १ अयोग्य । कुपात्र'। उ०—नियम पालती एक अपाक-वि० [सं०] अपवन । अनपका (को०)। मात्र तु, सब अपान है और पात्र तू !-—साकेत, पृ० ३१४ | अपाक -वि० [म० अ+फा० पाक अपवित्र । नापाक । २ मूर्ख । ३', श्राद्धादि निमंत्रण के अयोग्य (ब्राह्मण) 1 अपाकज-वि० [सं०] १ जो पका या पकाया न हो । २. जो प्रकृत अपात्रकृत्या--सज्ञा स्त्री० [सं०] व्यक्ति या ब्राह्मण को पतित बना या मूल रूप मे हो। प्राकृतिक । । । | देनेवाला कार्य को०] । अपाकरण--संज्ञा पुं० [म०] [वि० अपाकृत] १ पृथक्करण । अलग अपात्रदायी--वि० [सं० प्रपात्रदायिन्] [वि॰ स्त्री० अपात्रदायिनी] | करना। २ हटाना। दूर करना। निराकरण । निरसन । ३ कुपात्र को दान देनेवाला । चुकता करना । श्रदा या बेबाक करना । अपात्रभृत्-वि० [सं०] अयोग्य वा खोटे व्यक्तियों का समर्थक [को०] । अपाकर्म–सझा मुं० [२० प्रपाकर्मन्] भुगतान । अदायगी [को०] । अपात्रीकरण--संज्ञा पुं० [सं०] वह कर्म जिसके करने से ब्राह्मण अपाकशाक्र—सज्ञा पुं० [सं०] अदरक । अादी । अपात्र हो जाता है, जैसे-झूठ बोलना, निदित का दान लेना अपाकृति--रज्ञा स्त्री० [म०] दे० 'प्रपाकरण' [को०] । 'व्यापार करना, शूद्र का संपर्क करना आदि । अपाक्ष--वि० [म०] १ श्राद्ध के मामने । प्रत्यक्ष । उपस्थित । २. अपाद---वि० [स०] पादरहित । विना । पैरोवाला। पगु [को०] । दूपित नेत्रवाना । ३ नेत्रहीन कि०३ ।। अपादक-वि० [सं०] दे० 'अपाद’ (को० । । अपाची-सशाली० [सं०] [ वि० अपाचीन, अपाच्य ] दक्षिण या अपादान–सज्ञा पुं० [सं०] १. हुटाना। अलगाव । विभाग। . पश्चिम [क] । व्याकरण में पाँचवाँ कारक जिससे एक वस्तु का दुमरी वस्तु अपाचोन--वि० [मं०] १ पिछवाडे । पीछे की ओर । २. जो दिखाई। से विप्रलेपण वा अलगाव सुचित हो। इसको चिह्न ‘से है । न दे । ३ दक्षिणी 1 ४ पश्चिमी । विरुद्ध । विपरीत [को०] । जैसे-वैह घर से आता है । वृक्ष से फन गिरता है । अपाच्य- वि० [स०] १ ज पक न सके। २ जिमका पाचन न हो न न हो । अपादान कारक-मज्ञा पुं० [सं० अपादान+कारक] प्रकरण के छह सके । ३. दक्षिणी या पश्चिमी [को॰] । कारकों में से पांचव कारक । अपाटब'-पज्ञा पुं० [सं०] १ पटुता का अभाव । अकुशलती ।। | अपान-सज्ञा पु० [सं०] १. दस बा पाँच प्राणों में से एक । अनाढीपन । २ अचचलता । मुती । मदता । ३. कुरूपता । । विशेष—-निम्नलिखित तीनो वायुप्रो में से कोई किसी को और बदमुरती । ४ रोग । जी मारी। ५ मञ्च । शरात्र । कोई किमी को अपान कहते हैं--१ वह वायु जो नामिका अपाटव-वि० १ अप । अनाडी । २ अचचल । सुम्त । ३ कुरूप । द्वारा बाहर से भीतर की ओर खीची जाती है । २ गुदास्थ बदमूरत । ४ रोगी । बीमार 1 बायु जो मल मूत्र को बाहर निकालता है। ३ वह वायु जो अपा--मज्ञा पुं॰ [स० अ+पाठ] अपढ । मृर्ष । उ०—पडित पूत , तालु से पीठ तक और गुदा से उपस्थ तक व्याप्त है ।, अपाठ अमत ह्व जग में अादर । ईय गति होय हठील मोल , २ वायु जी गुदा से निकले । अधोवायु । गुदस्थ वायु । ३ गुदा । के मैं प्रेग्नादर ---राम० घमं०, पृ० ११५ । अपान-वि० १ सय दुखो को दूर करनेवाला । २ ईश्वर का एक अपाठ्य--वि० [अ०] जो पढ़ा न जा मकै । जो पढ़ने के योग्य न हो । । विशेपण । अपांढ--वि० [सं० अपार या अप वाह्य] मुश्किन। कठिन । अपार । अपान सञ्चा पु[प्रा० अप्पाला हि० अपा १ अात्म भाव । प्रात्म- उ०-उमकी विना मरजी चला जाऊँ तो घर में रहना अपाढ तत्व । आत्मज्ञान । उ०—(क)तुलसो भेट की पैंसनि जड जनता कर दे ।---गोदान, पृ० २३८ ।। सनमान ! उपजत हिय अपमान मी, खोवन मुई अपान |-- पाण*—सज्ञा पुं० [ मे० आनन्, प्रा० अप्पण, अप्पाण ] गर्व । तुलमी ग्र०, पृ० १४५। (ख) ऋषिराज राजा अाज जनक धम । उ०—-विदेही तणे दिवाण, ईम चाप घरे अाण । तोडवा समान को । गाँठि बिनु गुन की कठिन जड चेतन की, छोरी अनेक ताण, ऊठिया करे अपाण |--रघु० रू०, पृ० ७६ ।। अनायाम साबु सोधक अपान को ।--तुन मी ग्र०, पृ० ३१५ । अपाणि--वि० [सं०] पाणिरहित । हुम्तविहीन । विना हाथ का । २ आप 1 आत्मगौरव । भ्रम । उ०—काहे को अनेक देव अपाणिनीय----वि० [नं०] १. पाणिनी व्याकरण के नियमानुसार सेवत, जागै मसान खोवन अपान, सठ होन हुटि प्रेत रे ।- अमाधु प्रयोग या उसमें अनुनिखित । २ पाणिनीय व्याकरण तुलसी ग्र ०, पृ० २३८ । ३ मुन्न । होश हवाम । उ०-~ क्री अध्ययन न करनेवाला [को०] । (क) भए मगन सब देखनहारे । जनक समान अपान विमारे। अपात--वि० [वै० अ +पात जो च्युत न हो। अच्युत । उ०—- --मानस, १३२५ । (ख) वरवम निए उठाई उर, नाए- सुम्बमना मुर की सरिता अर वह दीन दयाल हरे । ती तट कृपानिधान । 'मरत राम को मिलन लखि, विसरा सवहि सावी अपात है ब्रह्म मुचेतन में दल सुद्ध सर ।---दोन० ग्र०, अपान ।—मानस, पृ० २८५ । ४ । अह । अभिमान ।। पृ० ७४ ।। अपान —सर्व० [हिं० अपना]. निज का । अपना । उ०—-पहि- अपात्र'-- रा ० [म०] १. बेकार या अनुपयुक्त बर्तन। २ अयोग्य चान को केहि जान, सवहि अपान भुवि भो भई !-—मानस, व्यक्ति । ३ दान, भोज़ अादि के अयोग्य ब्राह्मण (को०] [

  • पृ० १३२१ । । ।