पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३०८

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अॅपंवर्दिक अपवर्म हो । मुस्तसना । जैसे, यह नियम है कि सकर्मक मामान्य 'भूत अपविद्धलोक-वि० [सं०] जो इस लोक को छोड़ चुका हो । पर- क्रिया के बार्ता के साथ ‘ने लगता है पर यह नियम ‘लाना' लोकगत [को०] ।। क्रिया में नहीं लगना। ५ अनुमति । समति ! यि । विवार। अपविद्या---सज्ञा स्त्री० [सं०] १ निकृष्ट विद्या ।' निषिद्ध विद्या । २ ६ आदेश । अाज्ञा । ७ बेदात शास्त्र के अनुसार अध्यारोप का अविद्या [को०] । निराकरण । जैसे--रज्जु में मपं का ज्ञान, यह अध्यारोप है अपविप---वि० [सं०] निविप | विषहीन । जिसमें विप न हो (को०] । और रज्जु के वास्तविक ज्ञान से उसका जो निराकरण । ॥ अपविषा--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ विपमुक्न । २ निविप नामक पौधा हुआ यह अपवाद है । ६ विण्वाम (को०) । ६ प्रीति । प्रेम (को०)। १० पारिवारिकता । परिवार जसा स वध (को०)। अपवीण---वि०म०1१ वीगारहिन । २. निकृष्ट या खराब वीणा- ११ मृग को धोखा देकर फैमाने या शिकार करने के लिये वाला [को॰] । शिकारियो दृारा प्रयुक्त वाद्य [को०] । अपवृक्त---वि० [सं०] १ समाप्त हुआ । २ पूर्ण हुग्रा [को०] । अपवादक-वि० [न०] १ निंदक । अपवाद करनेवाला ।'२ अपवृति---संज्ञा स्त्री० [सं०] छेद । सुराख । रघ्र [को०] । विरोधी 1 बाघक । अपवृत्त-मज्ञा स्त्री॰ [स०] १ व्यतिक्रमित । २ उलटा पलटा । ३ अपवादित–वि० [सं०] १ निदित । २ जिसका विरोध किया धा । ४ क्षोभित । ५ समाप्त हुआ [को०] । गया हो । अपवत्ति--सशी जी० [सं०] १ दूपित वृत्ति । २ अत । समाप्ति । अपवादी--वि० [२० अपवादिन] [वि॰ स्त्री० अपवादिनी] १. निंदा अपवेध–सज्ञा पुं० [सं०] रत्न या मोती का श्रुटिपूर्ण छेदन (को०] । | करनेवाला । बुराई करनेवाला । २ बाधक । विरोधी ! अपवढी–वि० [स० अपवीढ़] ढोने या हटानेवाना किो०)। अपवारक---सच्चा यु० [मु.] १ पर्दा । श्राड या प्रोट का साधन । २ । अपव्यय-सज्ञा पुं० [सं०] १ अधिक व्यय । अधिक खर्च । निरर्थक व्यवधान । धिरा स्यान (को०) । अपवारण--मज्ञा पुं० [म०] १ व्यवधान | रोक । बीच मे प कर व्यय । फजूलखर्ची । २ बुरे काम में खर्च । उ०—राजन्, सत्ता आघात से बचानेवाली वस्तु । २ हटाने वा दूर करने का का अपव्यय मत करो |---विशाख०, पृ० ४० । कार्य 1 ३ आच्छादन । शीट । छिपाव । ४ अतद्धनि ।। अपव्ययी-वि० [स० अपव्ययिन्] १ अधिक खर्च करनेवाला । फजूल- अपवारित--वि० [सं०] १ अतहत । निरोहिन । २ दूर किया हुआ। । खर्च । २ चुरे कामों में व्यय करनेवाला । हटाया हुआ । ३ ढका हुआ । छिपा हुआ । अपव्रत-मज्ञा पुं० [सं०] १ अविहित व्रन । हीन व्रत । अपवाह सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'अपवाहन' [को॰] । अपग्रत-.- वि० [स०] १ विहित व्रत या कर्म न करनेवाला । अधा- अपवाहक-वि० [म०] स्थानांतरित करनेवाला । एक स्थान से किमी । fमक । अपवित्र । २ अवि एवम्त 1 प्रज्ञापान न न करनेवाला । पदार्थ को दूसरे स्थान में ले जानेवाला ।। ३ पतित । विकृत आचरणवाला । अपवाहक’--संज्ञा पु० एक यत्र जी मारी चीजों को उठाकर दुमरे अपशक-वि० [सं० अपशक, भय, शंका या हिचक मे रहिन । स्थान पर रख देना है। गृध्र यत्र ।। निर्भीक । निडर [को०] 1 अपवाहन-ना पुं० [सं०] [वि० ग्रपपाहि, अपवाह्य]१ म्यानातरित अपशकुन--संज्ञा पुं० [सं०] कुसगुन । असगुन । करना । एक स्थान में दुमरे स्थान पर ले जाना ।२. भिन्न में अपशद--संज्ञा पुं० [म०] दे॰ 'अपसद' [को०] । घटाना 1 वाकी (को०) । ३ एक छद (को॰) । अपशब्द--संज्ञा पुं० [सं०] १ अशुद्ध शब्द । दूपित शब्द । २ अस बद्ध | प्रलाप । विना अर्थ का शव्द। ३ गाली । कूवाच्य।४ अपवाहित–वि० [सं०] एक म्यान में दूसरे स्थान पर लाया हुअा ।।। पाद । अपान वायु का छूटना । गोज । ५ विगडा हुअा भाव्द । म्थानांतरित ।। अपवाहुक--सज्ञा पुं० [स०] एक रोग जिममें वाहू की नसें मारी जाती मस्कृत भापा मे भिन्न 'भपा । ग्राम्प मापा [को०] । हैं और वाहु वेकाम हो जाता है । यह रोग वायु के प्रकोप से अपशम-सज्ञा पु० [स०] विराम । अत । समाप्ति [को०) । होता है । भुजम्तभ रोग । अपशु---संज्ञा पुं० [सं०] १ जो पशु न हो । अर्थात् बलिप्रदान के अपविघ्न-वि० [स०] १ निर्वाघ । निर्विघ्न । अबाधित । [को०] । अयोग्य पशु । २ दुष्ट पशु । कुत्सित पशु । ३ गाय और घोडे से अपवित्र–वि० [म०] जो पवित्र नहो । अशुद्ध । नापाक । दूषित । भिन्न पशु [को०] । मना । मलिन । अपशु-वि० १ पशुविहीन । २ गरीब (को॰) । अपवित्रता- सच्चा स्त्री॰ [म०] अशुद्धि। अशौच । मैलापन । नापकी। अपशुक-सज्ञा पुं० [स० अपशुत् प्रात्मा [को॰] । अपविद्ध---वि० [स०] १ त्यागा हुआ। त्यक्त । छोडा हुया ! २ वेघा अपशुक’--वि० शोकविहीन [को०) । | हुआ । विद्ध । ३ निकृष्ट । निम्न (को०)। अपशोक-वि० [सं०] शौक या विपदविहीन [को०] । अपविद्ध पुत्रसज्ञा पु० [सं०] धर्मशास्त्रानुसार वाग्ह प्रकार के पुत्र अपशोक-संज्ञा पुं० अशोक का वृक्ष (को०] । मे वह पुत्र जिसको उसके माता पिता ने त्याग दिया हो और अपश्चिम-वि० [सं०] १ जिसके पीछे कोई न हो । अंतिन । २. किसी अन्य ने पुत्रवत् पाला हो । प्रथम । अतिम नही। ३. चरम या पराकाष्ठा [को०) ।