पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३०६

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अपरिमेय १४३ अपव अपरिमेय-वि० [सं०] १ जिसका परिमाण न पाया जाय । जिसकी Kा, गुण, परिमाण शौर वर्ग अादि का अनुमधान न किया नाप न हो सके । वेदाज । अकूत । अमय । अनगिनत ।। गया हो । अपरिम्लान'---वि० [भ] न मुरझानेवाला । जिसका अपक्षय न हो अपरुप—संज्ञा पु० [स०][वि०सी०अपरुषा] क्रोधविहीन । रोषरहित । [को०] । कठोरताशून्य (को॰] । अपरिम्लान--सज्ञा पुं० [म०] महासह नाम का एक वृक्ष [को॰] । अपरूप--वि० [सं०] १ कुरूप । बदाकन । भद्दा। वेडील । २ अद्- अपरिवर्तनीय–वि० [सं०] १ जो परिवर्तन के योग्य न हो । जो भुत । अपूर्व । उ०—-नर कैसी अपरूप 'टा लेकर प्राए तुम भूत | अपूर्व वदल न सके । २ जिसमें फेरफार न हो सके। ३ जो बदले । प्यारे ।—भरना, पृ० ६३ ।। में न दिया जा सके । ४ सदा एकरस रहने वाला । नित्य । अपरूप-संज्ञा पुं० वडीलपन। भद्दापन । कुरूपता [फो०] । अपरिवत्यै--वि० [म०] दे० 'अपरिवर्तनीय' । उ०—-जो इस परि- अपरेटस--संज्ञा पुं० [अ० एपरेटस] वह यत्र जो किसी विशेप कार्य वर्तनशील विश्व में अपरिवत्र्य है --सपूर्णा० अभि० ग्र०, या परीक्षा कार्य के लिये बना हो । यत्र । औजार। परीक्षायत्र । पृ० २२४ ।। अपरेशन--सज्ञा पु० [अँ० आँपरेशन] शल्यचिकित्सा । चीरफाड । अपरिवर्तित--वि० [स०] जिसमें कोई हेरफेर या तबदीली न हुई । शल्यक्रिया । । हो । अविकल । ज्यो का त्यो ।। अपरोक्ष-वि० [सं०] १ जो परोक्ष मे न हो । प्रत्यक्ष । जो देखासुना अपरिवाद्य--वि० [सं०] जो निदायोग्य न हो । अनिद्य (को०] । जा सके । इद्रिय गोचर । २ जो दूर हो [को०] । अपरिवृत–वि० [सं०] जो ढका या घिरा न हो । अपरिच्छन्न । अपरोक्षानुभूति-मज्ञा स्त्री० [सं०] १ ' प्रत्यक्ष ज्ञान । २ वेदात मे अपरिशैव-वि० [सं०] जिसका परिशेप या नाश न हो । पूर्ण । । निरूपित एक प्रकरण (को॰] । अनत । अविनाशी । नित्य । अपरोध-सज्ञा पुं० [म०] रुकावट । निषेध । वर्जन । मनाही (को०] । अपरिशेप—सा पु० सीमा का अभाव [को०] । अपरोप-सज्ञा पुं॰ [म०] १ निष्कासन । २ राज्यच्युति [को॰] । अपरिष्कार--सज्ञा पु० [सं०] १ सस्कार का अभाव । अस शोधन । शप अपर्ण-वि० [म०] पत्तो मे रहित [को०] । -aa [Raj पत्तो मे रटि सफ़ाई या काई छाँट का न होना। २ मैनापन । ३ मद्दापन । अपण-संज्ञा स्त्री॰ [स०] १ पार्वती का एक नाम ।। ) अपरिष्कृत---वि० [स०] १ जिसका परिष्कार न हुआ हो। जो साफ । विशेष—पुराणों के अनुसार पार्वती ने गिब को पति के रूप में न किया गया हो । जो काट छाँटकर दुरुस्त न किया गया प्राप्त करने के लिये तपस्या मे पत्तो तक को खाना छोड़ दिया हो । २ भलाकुचना । ३ 'मद्दा । बेडौल । ४ असस्कृत । था । अत पार्वती का एक नाम अपर्णा प्रसिद्ध हुशा, ।, अपरिसर- वि० [म०] १ ममीप का नहीं । दूर का । २ अविस्तीर्ण । २ दुर्गा । | अप्रशस्त (को०] । अपतु ---वि० [सं०] १ बेमौसमी । असामयिक । २ जिसका मासिक अपरिसर--सज्ञा पु० विस्तार का अभाव (को०] । | धर्म का समय गुजर गया हो। निवृत्तरजस्का [को०] । अपरिसीम–वि० [सं० अं+परिसीम] १ असीम । २ विस्तीर्ण । अपर्वल---वि० [हिं० ]० 'अपरवन' । उ०—-माया वहुत अपर्वल उ०—भगवान वादरायण हर हर करती गगा की अपरिसीम अलखे तुम्हार बनाव |--जग० श०, पृ० ६६ ।। धारा को देखते रहे---३ ० न०, पृ० २४८ । अपरिस्कद-वि० [म० अपरिस्कन्द] गतिशून्य । जो कूद फांद न सके। अपर्य त—वि० [स० अपर्यन्त] अमीन । अपरिमित [को०] । को । अपर्याप्त--वि० [सं०] १ अपूर्ण । २ अययेप्ट । जो काफी न हो । अपरिहरणोय–वि० [सं०] १ अनिवार्य । अवश्य भाबी । २ अपरि- ३ सीमारहित । अमीम (को॰) ।४ असमर्थ (को०) । त्याज्य । जिसका परिहार न हो सके । ३ अनादर के अयोग्य । यौ॰—अपर्याप्तकर्म = जैनशस्त्रिानुसार वह पाप कर्म जिसके उदय [को०] । | से जीव की पर्याप्ति न हो । अपरिहार--सज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि॰ अपरिहारित, अपरिहार्य] १ अपर्याप्ति--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ अपूर्णता कमी । श्रुटि २ असामथ्र्य । अवर्जन । अनिवारण । २ दूर करने के उपाय का अभाव । अयोग्यतः । अक्षमता । अपरिहारित--वि० [सं०] अपरिवजित । अनिवरित । जो दूर न अपर्याय–वि० [सं०] क्रमविहीन । अव्यवस्थित [को०] । किया गया हो । अपर्याय--सच्ची पुं० [सं०] *महीनता [को०] । अपरिहार्य–वि० [सं०] १ जिसका परिहार न हो सके । अवर्णनीय। अपर्व--सच्चा पु० [सं० अपर्वन् ]वह दिन 'जो पर्वकाले नै हो । अवि- अबाध्य । अनिवार्य । जो किमी उपाय से दूर न किया जा शिष्ट दिन अर्थात् अमावस्या, पूर्णिमा, अष्टमी और चतुर्दशी सके । २. अत्याज्य । न छोडने योग्य । ३ अनावर के अयोग्य । से व्यतिरिक्त कोई दिन । २. सधिराहित्य । जोह का अादरणीय । ४ न छीनने योग्य । । अमाव [को॰] । अपरीक्षणीय---वि० [सं० अ +परीक्षणीय] १. जाँच या परीक्षा के अपर्व -वि० पर्व या सधि से रहित (को०] । अयोग्य ।। अपर्वंक---वि० [सं०] जिसमें जोड न हो । संधिविहीन [को०] । अंपरीक्षित--वि० [सं०][वि०खी• अपरीक्षि वा] जिसकी परीक्षा न हुई अपर्वदई-सी पुं० [सं० पर्व वण्ड] ६ ब्र की एक किस्म (को०] ।। हो। जो परखा न गया हो । जिसकी जाँच त हुई हो। जिसके पर्वा--वि० [सं०] ६० 'पर्व [को०) ।