पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३०५

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अपरावृत २४२ अपरिमित अपरावृत–वि० [मु.] अनिवतित । न लौटा हुशा । अपनी जगह न अपरिच्छेद -संज्ञा पुं० [सं०] १ विमाग, विभाजन या विलगाव का शाया हुआ । उ०—जव तक मनस् अपरावृत है तब तक मनस् अभाव । २ न्याय या निर्णय का अभाव । ३. अविच्छिन्नता। का ग्रालय विज्ञान ही एकमात्र लवन होता है ।---सपूर्णा० नैरतर्य (को०] । अभि० प्र०, पृ० ३६६ । अपरिछिन्न- वि० [हिं०] दे० 'अपरिच्छिन्न । उ०—जौ कहह कि अपराह्म ज्ञा पु० मि०] १ दिन का पिछला भाग। दो पहर के हम यों करि पाए । अपरिछिन्न नित निगमन गाए ।-नद० पीछे का काल । तीम पहर । ग्र०, पृ० २७१ ।। अपराहतन---fi० [भ] १ दिन के पिछले भाग से सवढू । २ दिन अपरिणत-वि० [सं०] १ अपरिपक्व । जो पका न हो । कच्चा। के अतिम कान में उत्पन्न [को०] । २ जिसमे विकार या परिवर्तन न हुआ हो। ज्यो का त्यों । अपराह्न तन–वि० [न०] ६० 'अपराह्मणतन' । विकारशून्य । अपराह्न-नज्ञा पुं० दे० 'अपराह्ण' । अपरिणय-सज्ञा पु० मि०] विवाहशून्य अवस्था । अपरिणीत स्थिति । अपरिकलित--वि० [स०] अज्ञात । अदृष्ट । अश्रुत । वे देखी सुना । कौमार्य । ब्रह्मचर्य । अपरिक्रम-वि० [सं०] १ च फि पाने में असमर्थ । २ परिश्रम अपरिणयन---संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अपरिणय' [को०)। करने के अयोग्य [को०] । अपरिणाम-सज्ञा पुं० [सं०] परिणाम या परिवर्तन का अभाव । अपरिक्लिन्न--वि० [सं०] मुखा। शुष्क । अपरिवर्तनशीलता (को०) । अपरिगण्य–वि० [स०] अनगिनत । बेशुमार [को०] । अपरिणामदर्शी- वि० [म० अपरिणामर्दाशन] अदूरदर्शी [को०] । अपरिगत्त-- वि० [स०] १ अज्ञात । अपरिचित । न पहिचाना हुआ। अपरिणामी--वि० [सं० अपरिणामिन्][वि॰ स्त्री० अपरिणामिनी] १ २ अप्राप्त ।। जिमकी दशा में परिवर्तन न हो। परिणामरहित । विकार- अपरिगृहीत- वि० [म०] अस्वीकृत । त्यक्त्र । छोडा हुआ । शून्य । २ जिसका कुछ परिणाम न हो। निष्फत । अपरिगहीतगमन--संज्ञा पुं॰ [ने०] जैन शास्त्रानुसार एक प्रकार का अपरिणीत–वि० [स०][वि०सी०अपरिणीता] अविवाहित । क्वाँरी। अतिचार । कुमारी या विधवा के साथ गमन करना पुरुष के प त न , मि० ० : पतन टो। मनमा । २ जो त्रिये और कुमार या रँडुअा के साथ गमन करना स्त्री के लिये भली भाँति पका न हो । अघकच्चा । अधकचरा । अप्रौढ । अपरिगृहीतागमन हैं ।। अधूरा । अव्युत्पन्न। ४ जिसने तपश्चर्यादि द्वारा इद्व अर्यात अपरिग्रह---सज्ञा पुं० [२०] १ अस्वीकार । दान का न लेना। दान- सर्दी, गर्मी भूख, प्यास आदि सहन न की हो । त्याग । २ देह्यात्रा के लिये आवश्यक घन से अधिक का त्याग । यो०--अपरिपक्व कषाय । अपरिपक्वधी । अपरिपथबथुद्धि । विराग । ३ योगशास्त्र में पाँचव यम् । सत्याग । ४ जैन अपरिपणितसंधि--सज्ञा स्त्री० [सं० अपरिपणित सन्धि] एक प्रकार शास्त्रानुसार मोह का त्याग । की कपट सधि जो केवल धोखे में रखने के लिये की जाय। अपरिग्राह्य---वि० [२०] जो ग्रहण करने या अगीकार करने योग्य न । | हो (को०] । विशेप-कौटिल्य के अनुसार इसका ढग यह है कि किसी अभि- अपरिचय--सा पुं० [म० वि० अपरिचित] परिचय का अभाव । जान- मानी मूर्ख अलसी या दुर्व्यसनी राजा को नीचा दिखाना | पहिचान का न होना । हो तो उससे यो ही कहता रहे कि हम तुम तो एक हैं, पर अपरिचयिता--सज्ञा स्त्री॰ [स०] परिचयशून्यता की स्थिति या भाव । किसी प्रयोजन की बात न करे । इस प्रकार उसे सधि के | [को०) ।। विश्वास में रखकर उसकी कमजोरियो का पता लगाता रहे अपरिचयी--वि०म० अपरिचयिन्] १ जिसका परिचय न हो । २. और मौकी पडते ही उसपर आक्रमण कर दे। इस कपटम धि | जो मिलनसार न हो । असामाजिक क्रिो०] । का उपयोग दो सामत राजाओं को लड़ाकर उनके राज्य की अपरिचित -- वि० [सं०] १ जिसे परिचय न हो । जो जानता न हो। हरण करने के लिये भी हो सकता है। अन न । जैसे—वह इस बात से बिलकुन अपरिचित हैं। श्रपरिवाधा--सज्ञा स्त्री॰ [स० अ +परिवाधा कपट, वाधा या आयाम (शब्द॰) । २ जो जानबूझा न हो । अज्ञात । जैसे---किसी का निवारण ।। अपरिचित व्यथित का महमा विश्वास न करना चाहिए(शब्द०)। अपरिम-वि० [सं० अ-परिमा= परिमाण] जिसका परिमाण न अपरिच्छद-वि० [हिं०] १ माच्छादनरहित । प्रावरणशून्य । जो ढका हो । अमित । उ०-- इस रहस्य अपरिम के प्रागै दर से न हो । नगा । बुना हुआ । २ दरिद्र ।। नतमस्तक है कवि 1–इत्य म्, पृ० ६७ ।। अपरिच्छन्न---वि० [भ०] १ जो ढका न हो । खुला । नगा । २ अपरिमाण-वि० [सं०] १ परिमाणरहिन । वेअदाज । अकूत ! श्रावणरहित । ३ नर्वथा व्यापक ।। अपरिमित-वि० [सं०] १ इयत्ताशून्य । असीम । वेद । उ०—मानव अपरिच्छादित--वि० [नं०] "० "अपरिच्छन्न (को०] । था साथ उसी के मुख पर था तेज अपरिमित ।---कामायनी, अपरिच्छिन्न--वि० [सं०] १ जिनका विभाग न हो सके । अभेद्य । पृ० २७७ । २. अमख्य । अनत । अगणित । उ०——-अपन जान २. जो अलग ना हो। मित्रों हुआ। ३, इयत्तारहित । मैं बहुत करी । कृपासिंधु, अप रधि अपरिमित छम सुर ते सद न म । मारहित । विगरी --सूर०, ११११५ ।