पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२९७

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अपरा २३४ अप अपछरा--सज्ञा पु० [स० अप्सरा, प्रा० अच्छरा] १ अप्सरा ।उ०- अपडरना ----क्रि० अ० [हिं० अपडर से नाम] भयभीत होना ।। कल हस पिक सुक सरस रव करि गान नाचह अपछ । डरना । शकित होना । उ०---(क) भागे मदमाद चोर भोर तुलसी (शब्द०) । २ हिंदुस्तान में रडियो की एक जाति ।। जानि जातुधान काम क्रोध लोम छोम निकर अपहरे ।---तुलसी (शब्द॰) । (ख) बहु राम लछिमन देखि मर्कट भालु मन अति अपजय-सज्ञा स्त्री० [सं०] पराजय । हार । अपडरे ।—तुलसी (शब्द॰) । अपजस--संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अपयश' । उ०—चिता यह मोहि अपना...--क्रि० अ० [स० अ+पत्] पहुँचना । उ०----छोठी वीस अपारा। अपजस नहिं होय तुम्हारा ।—तुलसी ग्रं०, पृ० ४१६ ।। न झापड, लाँकी लाज मरेहि । सयण बटाऊ बालरे, ल्वउ अपजात—सज्ञा पुं० [सं०] माता पिता की अपेक्षा हीनगुण पुत्र । साद करेहि ।।----ढोला०, दू० ३८४ ।। कपूत [को०] । अपडाना----क्रि० अ० [स० अपर से नाम०] खीचातानी करना। अपजोग –संज्ञा पुं० [स० अप+योग] बुरा योग । दुरा सवध । उ.---मन जो कहो कर री माई । निलज भई तन सुधि बुराई । उ०- सव खोटे मधुवन के लोग ! जिनके संग स्यामसुदर विसराई गुरुजन करत लाई । इत कु नकानि उतै हरि को रस सखि सीखे हैं अपजोग !-—सूर ०, स० १०/३५६० ।' मन जो अति अपढाई 1---सूर (शब्द॰) । अपज्ञान-संज्ञा पुं॰ [सं०] १ अस्वीकार । इनकार। नटना। नही अपडाव- सज्ञा पुं० [स० अपर, हि पराधा-पराया [क्रि० | करना । २ सगोपन । छिपाव । दुराव । अपडाना] झगडा । रार। तकरार। उo----(क) हँसत कहते की धौ सति भाव । यह कहनी औरे जो कोऊ तासो मैं करती अपज्य–वि० [स० अप + ज्या] शिजिनीहीन । प्रत्यचारहित [को॰] । अपडाव । सूरदास यह मोहि लगावत सपनेहू जासो नहि अपट –वि० [स० अप] जो चतुर न हो। अपटु । उ०--मेरे हेरन दरसाव -सूर (शब्द॰) । (ख) गोपी इहै करत चवाउ । बेस कपट कौ । रहिहै नहि पूतना अपट कौ ।-नद० सूर काहि प्रगट कैहै करन दे अपडोउ ।—सूर (शब्द०)। ग्र ०, पृ० २३८ । अपढार-वि० [सं० अप+हि० ढार= ढलना] १ वेइगे तौर से अपटन --सज्ञा पु० [हिं०] दे॰ 'उवटन' ।। ढननेवाला। उ०—-अरु जौ अपढार ढरे न ढरे, गुन त्यौं नकि अपटातर-वि० [स० अपटान्तर] १ जो पाट या पर्दै द्वारा विभक्त न लागत दोप महा ।—घनानद, पृ० १२६ । २ सरलता से हो । २ अलग विलग नही । सयुक्त । मिलाजुला [को०] । द्वननेवाला । उ०—-मह रावरीय रसरीति अजू अपढार ढरौ अपटी--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ परदा । काडपट । २ कपडे की दीवार । इत यानो कहौं --घनानंद, पृ० १४० 1 ३ आपसे आप कतना ३ वरण । आच्छादन । ढननेवाला । उ०—–जमुना जस जैसे मन भायो । जमुना ही अपटीक–वि० [स०] १. व्याख्या करने के ज्ञान से रहित । अपढार कहायो 1--घननद, पृ० १८५ । बस्त्र रहित को०] । । अपढ---वि० [स ० अपठ] बिना पढ़ा । मूर्ख । अनपढ़ । अपटीक्षेप-सज्ञा पुं० [स०] नाटक में परदा हटाकर पात्रो का रग- अपण्य-वि० [सं०] न बेचने योग्य। जिसके बेचने का धर्मशास्त्र में भूमि में सहसा प्रवेश । | : निषेध है ।। अपटु--वि० [स०] १ जो पटू न हो । कार्य करने में असमर्थ । २ अपतत्र--सज्ञा पु० [स० प्रपतन्त्र] वायु के प्रकोप से होनेवाला एक रोग । गावदी । सुम्त । अलसी । ३ रोगी ।४ ज्योतिष के अनुसार विशेप---इम रोग में शरीर टेढ़ा हो जाता है, सिर और कनपटी मे (ग्रह) जिसका प्रकाश मर्द हो जाय । • पीड़ा होती है, साँस कठिनाई से ली जाती है, गले में घरघराहट्ट अपटुता--सज्ञा स्त्री० [स०] पटुता का प्रभाव । अकुशलता । अनाडीपन । का शब्द होता है और अाँखे फटी पडती हैं । अपमान(पु–वि० [स० अपट्यमान] १ जो पढ़ा न जाय । न पढने अपतंत्र--सज्ञा पुं॰ [स० अपतन्त्रक] द० 'अपतत्र [को०] ।। योग्य । उ०-अपमान पापग्न थ, पट्ठमान वेद हैं ।-- केशव अपत -वि० [स० अ + पत्र प्रा० पत्त, हि पत्ता] १. पत्रहीन । (शब्द॰) । विना पत्तो का। उ०—जिन दिन देखे वे कुसुम गई सो वीति अपटूडेट-- • [अ० अप-टू-डेट] रहन सहन या विवार मे समय के वहार । अब अलि रही गुलाब की अपत कंटीली हार ।अत्यन अनुक्ल । उ०—फैशन के सबध में अपटूहेट खवर रखते विहारी (शब्द॰) । २ अच्छादनरहित । नग्न ।। थे ।---सन्यासी, पृ० ६२ । अपत --वि० [अ स ० = नहीं+हि० पत = लज्जा लज्जारहित । अपठ--वि० [स०] १ अपढ । जो पढ़ा न हो २ मूर्ख । ३ बुरा । निर्लज्ज । उ०——लूटे सीखिन अपत करि सिसिर सुसेज बसन् । पढनेवाला। कुपाठक (को॰) । ६ दल सुमन मुफल किए सो भल सुजस लसत ।--दीनदयाल अपठित--वि० [स०] १ अपढ़ [को०] .२ जो पढ़ा नहीं गया [को॰] । | (शब्द॰) । अपठ्यमान----वि० [स०] १ जो पढ़ा न जाय को २ नं पढने अपत -वि० [स० अपात्र, प्रा० अपत] अधम । पात की। नीच | योग्य [को०] ।

  • उ०—(क) राम राम राम राम राम जपत । पावन किये अपडर(५)----सज्ञा पु० [म अप + हि० डर भय । माका। उ०----

रावन रिपु तुलसी हू से अपत |---तुलसी (शब्द॰) । (ख) ममुझि महम मोहि अपडर अपने । सो मुधि कीन्ह राम नहि जू हाँ तो महा अधम । अपत, उतार, अभागी, कामी, विपर्यो। सपने - तुलसी (शब्द०)। निपट, कुकर्मी ।---सूर०, ११८६ । अपठनेवाला। अपढ ।