पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२९६

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अवगः २३३ अपच्युत अपग-वि०, [म०] १ जानेवाला । दूर हटनेवाला [को०] । अपचरित'-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ दोपयुक्त अाचरण । दुराचार । अपंग' —सा स्त्री० [म० अपगा] सरिता । नदी |–अनेकार्य० बुरा कम्। अपचरित--वि० १ गया हुआ । प्रस्थित । ९ मृत [को०)। अपगत--वि० [स] । पनावित । भागा प्रा। पलटा हुमा । २ अपचरितप्रकृति-सज्ञा पु० [सं०] वह राजा जिसकी प्रजा अत्याचार दूभूत । हुटा है । गतं । उ०—-अपगत मे मोई अवनि मो से पीडित हो [को॰] । पुनि प्रगट पता ।---स० सप्तक, पृ० १५। ३ मरा हुमा । अपचायित--संज्ञा पुं० [सं०] १ बीजा। जिसमे लोग डरें । २. मृत [को०] । पूजित । समानित । दृत [को०] । यौ०-अपगनव्याधि= रोगमुक्त। अपचायी--वि० [स० अपचायिन्] बडो का अादर ममान न करने अपगति-सा स्त्री० [सं०] १ दुर्गति । अधोगति । दुर्भाग्य [को०) । वाला किो०] । अपगम-संज्ञा पुं० [सं०] १ वियोन् । अलग होना । २ दूर होना। अपचार-सज्ञा पुं० [स] [वि० अपचारी] १ अनुचित वताव । बुरा भागना । ३ मृत्यु । मरण [को०] । आचरण । कुव्यवहार। उ०--विवुध विमल वानी गगन हेतु अपगमन-मझा पु० [सं०] दे० 'अपगम' [को०) ।। ।। प्रजा अपचारु । रामराज परिनाम भल कीजिय वेगि विचारु । अपगर–ज्ञा [स०] पु० १ निंदा 1 २ वह, जो निद करे । –तुलमी ग्र०, पृ० ६२२ अनिष्ट । अहित । बुराई । ३ आनानिदक, किो०)। दर । निंदा । अपयश । ४ कुश्य । स्वास्थ्यनाशक व्यवहार। अपगजित--वि० [म०] गर्जन-7 (बाद त)। गर्जनारहित (को०] । ५ अभाव ! ६ भून । भ्रम । दोद । ७ मृत्यु । विनाशको०)। अपगल्भ-वि० [म०] १ भीन् । गीरु। घडाया हुश्रा (को०)।२ अपचारक--वि० [म०] अपचार करनेवाचा (को॰] । ' पाश्वयः। बगल का [को०] । अपचारी --वि० [स० अपचारिन्] [पि० बी० अपचारिणी] गिद्ध अपगापु–मय सी० [सं० प्रापगा] नदी ।। आचरण करनेवाला । दुराचारी। दुष्ट । अपगीत--वि० [सं० अप +गीन] बुरा कहा जानेबाना । निंदनीय ग्रंपचाल -मज्ञा स्त्री॰ [स०अप +हि० चाल]कुचा न । खौटाई । नट। (को०)। उ०—मैं ही वह महानिद्य, अविनीन हु। | होगा मुझ बढ़ी। उ०—–वारि के दा ने संवार करो अपने अपचाल कुवान | मां और कौन झपगीत हा 1--शकु०, पृ० ५२ ।। | ललू पर [-~-रसखान (शब्द॰) । अपगुण--मझो पुं० [सं०] १ दोप । ऐव [को॰] । २ निर्गुण । गुण अपचित-वि० [म०] १ पूजित । स मानित । अदूत । २ क्षीण । | अवगुण से रहित (को०] । | दुर्बल । कमजोर [को०] । अपगोपुर-वि० [स०] द्वारविहीन । द्वाररहित (नगर) [३०] । अपचिति-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ हानि । क्षय । हास। नाश । २. अपघन-वि० [सं०]' मेघरहित । निरभ्र (को०)। व्यय । ३. दढ देना । ४ पृथक्करण । ५ मरीचि की कन्या का अपघन-संज्ञा पुं० [म०] शरीर का अग (हाथ पैर आदि) को । नाम । ६ स मान करना ७ पूजा [को०] । अपघात'---संज्ञा पुं० [नं०] १ हत्या । हिमा । २ वचन । विश्वाम- अपची--मज्ञा स्त्री॰ [स] गइमाला रोग का एक भेद । गमाला की | घात । धोत्रा । उ०—जीण तुमको जान सहमा तात । के वह अवस्था जव गौतें पुरानी होकर पक जाती हैं और जगह गया क्या कान यह अपघात ।—साकेत, पृ० १७७ ।। जगह पर फोड़े निकलते और बहने लगते हैं। अपघात-सज्ञा पुं० [हिं० अप +म० घात] अात्महत्या । अात्मघात । अपचेता–वि० [सं० अपनेतस् ] कजूस । मूम। जो धन न स्वय खर्च (ब) कटरे कमर मोंसे मत वाता। काहे लागि कमि करे में करने दे [को । अपघाता।---जायसी (शब्द०)। (ख)--नाजन को मारो अपच्छ--वि० [म०] छत्रविहीन । छरहित (को०] । राजा चाहे अपघात कियो जियो नहि जान भक्ति लेशहू न अपच्छाय'--वि० [स०] १ छायाविहीन । २ दूपित या बुरी छायाअायो है ।---प्रिया (शब्द०)। वाला । जो चमकदार न हो । धुंधला । कातिहीन [को०] । अपघातक-वि० [म०] १' विनाश करने वा ना । घातक । २ विश्वास- अपच्छाय’----मज्ञा पुं० देबता ।। | घाती । वचक । घोखा देनेवाला । अपच्छाया---मज्ञा स्त्री० [सं०] बुरी छाया । भूत प्रेन की छाया [को॰] । अपघाती--वि० [सं० अपघातिन् ] [वि० स्त्री० अपघातिनी] १. घातक । अपच्छी –सजा पुं० [म० अ- नहीं +पक्षी = पक्षबाला] विपदी । विनाशक । २ विश्वासघाती । वचक । । विरोधी । गन् । गैर ।। अपच––भा पु० [हिं० अ +पच ] न पचने का योग । अजीर्ण । अपच्छी---विन पख का। पल्लरहित । बदहजमी। अपच्छेद--मज्ञा पुं० [स०] १ काट देना । प्रनग विलग कर देना । अपच--संज्ञा पु०-[स] १: पाककार्य में प्रममयं व्यक्ति । वह जिने २ हानि । ३ वाधा । ४ वह जो टूट गया हो। भग [] ! | अपने निये पकाना न था। हो । २ बुरा पाचक [को०] । अपच्छेदन- संज्ञा पुं० [स०] ० 'अपच्छेद' (को०]। अपचय--अज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि० अपवयी] १ क्षति । हानि । २ व्यय । अपच्युत-वि० [म०] नितिन । गिरा हुप्रा । २ रहा हुआ। कमी । नाश । ४ पूजा । ममान । द्रवित । ३ विनष्ट [को०] ।