पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२८९

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अनोट | २२६ अपा। अनोट--संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अनवट' । उ०---देखि करोट से | " होता है। उस दिन नाना प्रकार के भोजन की वैरी लगाकर | ऐचि अनोट जगाइ ले अोट गए गिरिधारी ---शिखा० प्र०, गिरान को भोग लगाने हैं । भा० १, पृ० १०५ ।। अन्नकोष्ठ-सज्ञा पु० [म०] १ अन्न रयने का स्थान या कोठरी। अनोदन-वि० [स०] विना भोजन के । निराहार [को०] । । २ गज। गोरा । बार। अनोदयनाम--सज्ञा पु० [म०] जैन मत के अनुसार वह पाप कर्म अन्नकोप्ठ-सा पु० [सं०] ६० 'अन्नकोष्ठ' [को०] । जिसके उदय से मनुष्य की बात कोई नहीं मानता । । अन्नगधि--सज्ञा स्त्री० [नं० अन्नगन्धि] अतिवार को ग्राधि (ले०] । अनौपम--वि० [हिं०] दे॰ 'अनुपम' । उ०—-दर भाल विसाल अन्नगति-संज्ञा स्त्री० [अ०} अग्न की प्रणाली या गति [को॰] । अलक सम माल अनोपम । हित प्रकाश मृदुहा अरण अन्नछेत्र-मशा पुं० [हिं०] दे० 'अन्नसुत्र' । | वारिज मुख प्रोपम ।--रा० ऋ०, पृ० २ । । अन्नजन-सा पु० [सं०] १ दाना पानी । खाना पीना। ग्रामपनि ।। अनोसर —सज्ञा पुं० [हिं० अन+मग्रेवसर] १ वह मय जब । जैसे,—तुम्हारे यहाँ हम अन्नजन नही ग्रहण करेंगे (फन्द०)। वैष्णव धर्मावलवी मूतियो का शयन कराते हैं । २ एषात क्रि० प्र०—त्यागना या छोडना = उपवास करना । स्थान । सूना स्थान । उ०—-अनोसर करि शाम कछु । २ ग्रावदाना । जीविका ।। आरोगे ।--दो सौ बावन०, मा० १, पृ० २१ ।। । क्रि० प्र०—उठना= जीविका टूटना । जैसे,—नव यहाँ ने हमारा अनौचित्य---सज्ञा पुं० [सं०] उयित यात का अभाव । अनुपयुक्तता । | अन्न जन उठ गया' (शब्द॰) । । . '३ अनौजस्य–सञ्चा- पुं० [सं०] पराक्रम या शक्ति का अभाव [को०] । योग 1 तफा । जैसे,—जहाँ का अन्न जन होगा वहीं इले अनौट(७)—संज्ञा पु० [हिं०]. ३० 'अनवट' । उ०---बिछिया अनौट हो जायँगे (शब्द०) । वाँक घूवरी जराइ जरी, जेहरी छनी छुद्रघटिका की अन्नजा-सा रवी० [सं०] एक प्रकार की हिचकी । जानिका ।—केशव० २ ०, । विशेप-'माधवनिदान के अनुसार अन्न प्ररि पानी का बहुत अधिक अनौद्धत्य---सज्ञा पुं० [म०] १ उच्छ खजना या दर्प का न होना । | सेवन करने से वायु अन्मात् युपित होकर उध्वंगामी हो २ नम्रती । ३ शाति । (नदी के जन का) ऊँचा न होना । जानी है जिनसे यह हिचकी होती है । ऊपर न उठना (को०] । । अन्नजीवी--- १० [सं० अन्नजीविन्] वह जो केवल अन्न वाकर अनौधि---अव्य० [सं० अवधि] शीघ्र। जल्दी । तुरत । जीवनयापन करता है । वन्न अन्न पर पननेवाला अनौपम्य–वि० [सं०] जिसकी उपमा न दी जा सके। वे जो इ [को०] । जीव [को॰] । अनीस---वि० [सं०] १ जो विवाहिता पत्नी में उत्पन्न न हो । जो अन्नथा(५)--वि० [म० प्रन्यथा] दे॰ 'अन्यथा' । उ०—कृत करण | औरम मतान न हो, अवैध । २ गोद लिया हुआ (पुत्र) (को०] । अन्नथा करण । सगले ही थोके समर्त्य --प्रेलि०, ६०, अन्न भट्ट–मझा पुं० [स०] तर्कस ग्रह के रचयिता । | - १० १३७ ।। अन्न-शा पु० [म०] १ वाद्य पदार्थ । २ अनाज । नाज ! धन्य । अन्नद--सग पु० [सं०] [स्त्री० अन्नदा] अन्नदाता। प्रतिपातक । दाना । गलना। ३ पकाया हुआ अन्न । भान । रक्षक । पोपक ।। यौ०–अन्नकूट। अन्नजन्न । पक्वान्न । अन्नराशि । अन्नदानशा री० [म०] १ दुर्गा । २ अन्नपुर्णा (को०] । ४ वह् जो सवका भक्षण या ग्रहण करे। ५ मूर्य । ६ विण । अन्नदाता--पद्म पु० [न० अन्नदातृ दिौ० अन्नदात्री] १. अन्न देने | ७ पृथ्वी । ८ प्राण । ६ जल । | करनेवाला । २ पोषक । प्रतिपालक । मू...-अन्न मिट्टी होना-खाना पीना हराम होना । उ०--जेहि अन्नदास-सा पुं० [सं०1 वह नौवर जो केवल भोजने पर काम दिनहु छेके गढ़ घाटी । होइ अन्न ग्रोही दिन माटी ।—जायसी करता है [को०] । (शः ) । अन्नदोप-.-सा पु० १०] १ अन्न से उत्पन्न विकार । जैसे, दूषित अन्न” (५-० [म० अन्य प्रा०-ग्रण] दूसरा। विरुद्। पर । उ०— अन्न जाने से रोग इत्यादि का होना। २ निषिद्ध म्यान या ।। जो विधि लिखा अन्न नहि होई। किंत धावै किन रोवै कोई ।। व्यक्ति का अन्न खाने से उत्पन्न दो या पाप । । —जायसी (शब्द॰) । अन्नद्रवशूल-संज्ञा पुं० [म०] पेट का व दर्द जो सदा बना रहे। चाहे अन्नकाल---संज्ञा पुं० [सं०] भोजन करने का समय । अन्न ग्रहण करने भाजन करने का समय । अन्न ग्रहण करने । अन्न पचे या न पचे और जो ११ करने पर भी बात न हो । , का समय [को०] । , c. न गातार बनी रहनेवाली पेट की पीडा ।। अन्नकिट्ट–श पुं० [सं०] १० 'अन्नमल' [को॰] । अन्नद्वैप-सज्ञा पुं० [म०] [ वि० अन्नद्धी अन्न में रुचि न होना । अन्नकूट-सज्ञा पुं० [सं०] १ अन्न का पहाड़ या ढेर । उ०-- । भोजन में अरुचि । 'भूख न लगना । गोवर्धन सिर तिलक चढायौ, मेटि इद्र ठकुराइ । अन्नकूट ऐसो अन्नपति-संज्ञा पुं० [सं०] १ अन्न का स्वामी । २ शिव । ३ । रचि राख्यौं, गिरि की उपमा पाई।सूर०, १०८३२ । ४ सूर्य को । २ एक उत्सव जो कानिफ शुक्ल प्रतिपदा से पूणिमा पर्यंत अन्नपाक-ज्ञा पुं० [सं०1 अग्नि पर या पेट में अक्ष यथारुचि किसी दिन (विशेषत प्रतिपदा को वैष्णवो के यहाँ) पाचन [को०] ।