पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२८६

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अनूठापन २२३ अनृतु अनूठापम–संज्ञा पुं० [ हिं० अनुग+पन (प्रत्य॰)] १ विवियना। अनूपनाराच-सज्ञा पु० [न० अनूप + नाराच] छद का एके मेद जो | विचक्षणता । विशेषना। २ भुदरता । अच्छापन । पचचामर के अंतर्गत है और जिसके प्रत्येक चरण में ज, र, ज, अनूढ--वि० [म० अनूढ] १ प्रजात ! ग्रनुत्पन्न। २ जो ले जाया न र, ज और गुरु होता है । | गया हो । ३ अविवाहित [को०]। अनूपम)---वि० दे० 'अनुपम' । उ० ---(क) अदभुत एक अनूपम अनुढा--सज्ञा स्त्री॰ [म० अनूढा] १ अविवाहिता कन्या। २ बिना वाग ।—सूर०, १०।२११०। (ब) व सग नानि जपेउ हरि | व्याही स्त्री जो किमी पुरुप से प्रेम रखती हो । उ०—ताहि । नाऊ । थापेउ अचन अनुपम ठाऊँ।--मानम, १।२६ । अनूढ़ा कहते हैं कवि पडिन परवीन ।-पाकर ग्र०, पृ० ६७ । अनूपान -सझी पुं० दे० 'अनुपान' । उ०—-रघुपति भगति सजीवनि अनूढागमन- मज्ञा पु० [म० अनूढागमन] अविवाहिता स्त्री से प्रेम या | भूरी । अनूपान श्रद्धा मति रूरी ।----मानस, • 1१२३ ।। संसर्ग [को०] । अनूपी -वि० स्त्री० ३० अनुप' 1 उ०-धन्य अनुराग धनि माग धनि अनूढा भ्राता- मशा पुं० [सं० अनूढाभ्रातृ] १ अविवाहिता स्त्री का सौभाग्य धन्य जोवन रूप अति अनूपी ।—सूर०, १०/१७८८ । भाई। २ रजा की रखे ती या उपपत्नी का भाई (को०] । अनूमान--संज्ञा पु० दे० 'अनुमान' । उ०--- अनूमान साछी रहित अनूतर--वि० [अ० अनुत्तर] [वि० स्त्री० अनूतरी] १ निरुतर । होत नही परमाने ।----स० सप्तक, पृ० ४० । कायल २ चुपचाप वैठनेवाला । मौन धारण करनेवा । अनरत्त --वि० दे० अनुरबत' । ३०--दिपती सुहाग । अनूरत राग । उ०—बैठी फिरि पूनरी अनतरी किरग कैसी, पीठि ६ प्रवीनी । । —पृ० रा०, ६२।४१ ।। दृग दृगनि मिले अनिद ।-पद्माकर ग्र०, पृ० १०१। अनूरु-वि० [ सं० अनूरु] उहीन । विना घिवाला। अनूदक- सझा चु० [भ] १ ज हीन स्थान । - सूखा (को०] । अनूरु-संज्ञा पुं० १ सूर्य का सारयो । अरुण । २ अरुणोदय [को०] । अनुदवसा पु० [१०] प्राचीन काल की एक प्रकार की नाव । विशेष—यह ४८ हाथ लवी, २४ हाथ चौडी और २४ ही हाथ अनूरुसारथी-सशः पुं० [म०] सूर्य [] । ऊँची होनी थी। अनूजित–वि० [सं०] १ शक्तिहीन । अशक्त । कमजोर । २ अभिअनूदित-वि० [म०] १ कहा हुआ । वर्णन किया हुआ । २ मानशून्य [को०) ।। | अनुवादित । तजुगा किया हुअा। भापातरित । अनुवं-वि० [सं०] ऊँचा नही । नीचा [को०] है। अनू द्य- वि० [सं०] १ पीछे चर्चा करने योग्य । १ अनुवाद अनूमि--वि० [सं०] १ तर गशून्य । अचचल । २ अनतिक्रम्य (को०] । योग्य [को०] । अनूषर–वि० [सं०] १ क्षारीय । रेहवाला । २ क्षारहीन । रेशून्य [को०] । अनून–वि० [स०] १ अखड । पुण। पूरा । समग्र । २ जिसमें कोई अनूह–वि० [सं०] १ जिसपर विचार न हो सके । अतक्र्य । २. कमी न हो । २ अन्यून । अधिक । ज्यादा । बहुत । ३ पूर्ण विचारहीन । लापरवाह (को०) । अधिकारयुक्त [को०)। अनृजु-वि० [स०] जो ऋजु अर्यात् सीधा न हो । कुटिल । बक्र । २. अनूप--वि० [स०] १ जलप्राय । जहाँ जल अधिक हो। २ । दुष्ट । अविश्वस्त । बेईमान [को०] । दलदली [को०] । अनूप—सझा पु० १ जलप्राय देश । वह स्थान जहाँ जज अधिक हो । अनृण- वि० [सं०] जो ऋणी न हो । जिसे कर्ज न हो । ऋणमुक्न । २ मैस । ३ ताल या तालाव । ४ दनदन । ५ कछार। अनृणता-सशा पुं० [सं०] कर्ज से छुटकारा। ऋणमुक्ति [को॰] । ६ मेढक । ७ हायी । ७ तीतर या चकोर (को०] । उ०— अनृणी–वि० [म० अनगिन्] :० 'अनृण' (को०] । अनृप (जन्नममीप) के रहनेवाले जीव हम चकवा अादि । अनृत--वि० [सं०] १ मिथ्या। झूठा । २ अन्यथा । विपरीत । उ०—-तोहि स्याम हम कह दिखावे । अमृत कहा अमृत गुण -माधव, पृ० १८१।। प्रगट मो हम कहा बतावे ।—सूर०, १०।२०६६। अनप'-- म० अनूपन] १ जिसकी उपमा न हो। अद्वितीय । अनृत-सज्ञा पुं० [म०] १ मिथ्या । असत्यं । झूठ । २ कृप। मैती बेजोड़ । उ०—(क) कवीर रामनद को सतगुरु भए सहाये ।। [को०] । जग मे जुगुत अनुप है सो मब दुई वताय । कवीर (शब्द॰) । अनृतक–वि० [स ०1 मिथ्यावादी । सूठ बननेवाला (पो०] । (ख) जिन्हु वह पाई छह अनूगा । फिर नहिं प्राइ महै यह । अनृतभापग-सा पु० [स०] झूठ बोनना। मिथ्या कथन [को०] । घुपा ।—जायसी (शब्द॰) । (ग) प्ररथ अनूप सुभग्ध मुभामा। अनृनवादन--सझा पुं० [सं०] १० 'अनृत नपण' [को०] । सोइ पराग मकरद सुवासा ।--मानस, १३७ । २ सुदर। अनृतवादी-वि० [म० अनृतवादिन्][वि० सी० अमृत वादिनी] ना ! अच्छा । ३०-जौ घरु वर कुलु होइ प्रन्या । करिअ विवाह मिथ्यावादी [को०] । सुता अनुरूप ।----पानम, १।११।। अनृतव्रत--वि० [सं०] अपने वचन या प्रतिज्ञा का पानी कमी न अनूपग्राम---सज्ञा पुं० [सं०] नदी के किनारे का गाँव । 'करनेवाना [को०] । विशेष--चंद्रगुप्त कालीन एक राजनियम के अनुमार बरसात के अनृनी--वि० [म० अनूरिन्] दे० 'अनृतक' (को०] । दिनो मे ऐसे गांव के लोगों को नदी का किनारा छोड कर किती अनुसशी स्त्री० [सं०] १ थे मौसम। असमय । २ रजोदर्शन ने पूर्व दूसरे दूरवर्ती स्थान पर वराना पड़ता था। की अवस्था या स्थिति [को०] ।