पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२८५

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| २३२ अनूठी अंर्नुस्मरै। अनुस्मरण-सज्ञा पुं० [सं०] वर बार स्मरण करना । स्मृति मे लाना। कमल मीन कौ कहाँ इती छवि, खंजन हैं' ने जात अनुहारे । उ०—-इतिहास में भूतकाल की घटनाग्रो का उरलेख और मूर (शब्द॰) । अनुम्मरण रहता है। हिंदु० सभ्यता, पृ० १ । सोवनी [को०] । अनुहारि'--- वि० सी० [म० प्रनुहारिन्] १ भमान । मदृश । तुल्य । अनुस्मारक- संज्ञा पु० [स० अनु + स्मारक] स्मृति या याद दिलाने वराबर । उ०—(क) गिरि समान तन अगम अति, पन्नग की | वाली वस्तु ।। अनुहारि । मूर० १०५४३१ । (ख) चुनरी म्याम मतार अनुस्मृति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ स जोई हुई स्मृति । प्रिय स्मृति । २ नभ, भुख ससि की अनुहारि । नेह दवावत नीद , निरखि अन्य का त्याग करके किसी एक के प्रति किया हुआ वितन या निमा मी नारि।--विहारी (शब्द०)। २ योग्य । उपयुक्त । स्मरण । एकात चितन [को०] । उ०—वर अनुहारि बरात न भाई । हँसी कहहु पर पुर जाई। अनुस्यूत-वि० [सं०] १ सोया हुया । २ पिरोया हुआ । ३ ग्रथित । —मानस, १६२ । ३ अनुमार। अनुकूल । मुनाबिक । उ० गू था हुा । उ०—तीनि अवस्था माहि है मुदर साक्षीभूत। कहि मृदु बचन विनीत तिन्ह, वैठारे नर नारि। उतम मध्यम सदा एकरस आतमा व्यापक है अनुस्यूत ।—सुदर ग्र॰, भा॰ २, नीच 'नघु, निज निज थ न अनुहारि 1-तुनमी (शब्द०) । पृ० ७८२।४ सवद्ध । श्रेणीबद्ध । सि सिलेवार । विशेष--इस विशेष ग का Fग गी 'नाई' के समान है प्रर्या पह अनस्वान-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्रतिध्वनि । गूज । २ समध्वनि ।। शब्द सज्ञा पुं० अौर संज्ञा स्त्री० दोनों का विशेषण होता है ।। समर्थक स्वर । अनुरणन [को॰] । अनुहारि --सज्ञा ली० प्राकृति । चेहरा। उ०--यो मु मुकुर अनुस्वार-संज्ञा पुं॰ [सं०] १ स्वर के वाद उच्चरित होनेवाला एक वि नोकिए, चिन न रहै अनुहारि । यो सेवतह निरापने मातु अनुनासिक वण' जिसका चिह्न (३) है। निगृहीत इसे आश्रय पिना सुन नारि ।—तुलसी (शब्द॰) । स्थानभागी भी कहते हैं क्योकि जिम स्वर के बाद यह लगेगा उसी अनुहारी–वि० [सं० अनुहारिन्][स्त्री० अनुहारिणी] अनुकरण करने का सा उच्चारण इम का होगा । २ स्वर के ऊपर की विदी । वाला । नेक न करनेवाला । । अनुहरण--सज्ञा पु० [सं०] १ नक न । अनुकरण । २ मादृश्य । अनुहारी’---सशी ग्त्री० [हिं०] दे॰ 'अनुहारि' । उ०—(क) देखी समता [को०] ।। सासु श्रीन अनुहारी ।—तु नमी (शब्द०)। (ख) भरथ, रामहीं अनुहरत--वि० हि०V/अनुहार को कृदत रूप] १ अनुसार । की अनुहारी ।---मानस, १।३११ ।। अनुरूप । समान । उ०—दम सहित कलि धरम सब छन अनुहार्य-वि० [सं०] अनुकरण' या नकल करने योग्य (को०] । समेत व्यवहार । स्वारथ सहित सनेह सब, रुचि अनुत अचार। अनुहोड--सज्ञा पु० [सं०] बैलगाडी [को॰] । - तुलसी ग्रे ० पृ० १५० | २ उपयुक । योग्य । अनुकू । । । अनूप्रर--क्रि० वि० [म० अनवरत] सतत । निरत र । लगातार । उ०प्रव तुम्हे विनय मोरि मुन नेह । भोहि अनुहरत अनूक--सज्ञा पुं० [H०] १ गत जन्म । पूर्व जन्म । २ कुन । वश । सिखावनु देहू --मानस, २५१७७ ।। खानदान । ३ शी न । म्वभाव । ४ पीठ की हड्डी । रीढ १५ अनुहरना--क्रि० स० [म० अनुहरण] अनुकरण करना । अादर्श मेहराव के बीच की ईंट । कोठी । ६ यज्ञ की वेदी बनाने के पर चलना । नक १ करना । समानता करना। उ०—सहज लिये ईंट उठाने की खैचिया या पात्र। ७ जाति या वागत टेढ अनुहरे न तोही । नीबू मीच सम देख न मीही । विशिष्टता [को०] । ८ यज्ञ की वेदी का पृष्ठभाग (को॰) । मानन १।२७ । अनूकाश-संज्ञा पुं० [सं०] १ प्रकाश की कौत्र या झाक । ३ उदाअनुहरिया --वि० [सं० अनुहार+हि० इया (प्रत्य॰)] समान । हरण । सदर्भ । हवाला (को०) ।। तुल्य । अनूक्त–वि० [२०] १ वाद में कथित । दोहराया गया। २ जिसने अनुहुरिया --संज्ञा स्त्री० ग्राकृति । मुबानी। ३०--भान तिनके। | वेदाध्ययन किया हो । अधीत [को॰] । सर मोहत 'भाह कमान । मुख अनुहरिया केवन चद समान - तुलसी ग्र ० पृ० १९ ।। अनूक्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] १ विवरणपूर्वक कही या दोहराई हुई अनुहार-वि० [सं०] मदृश । तुल्य । समान । एकरूप । उ०--- वात । २ वेदाध्ययन (को॰] । खजन नैन बीच नासा पुट रजत यह अनुहार । खजन युग मनो अनूचान--संज्ञा पुं॰ [सं०] १ वह जो वेद वेदा में पारगत होकर नरत तराई कीर बुझावत रार —सूर (शब्द०)। गुरुकुन से आया हो । स्नातक । २ विद्यारसिक व्यक्ति । ३. अनहार–सञ्चा जी० १ खूप भेद । प्रकार । उ०—मुग्धा मध्य प्रौढ चरित्रवान् पुरुप ।। गनि, तिनके तीनि विचार । एक एक की जानिए चार चार अनूजरा--वि० [हिं० अन+ऊजरा 1 [ जी० अनूजरी ] जी अनुहार ।—केशव (शब्द॰) । २ मुखानी । प्राकृति । उजला या माफ न हो। मैं ना। उ० --हाय माठी पूर्तर। अनुहार--सज्ञा पुं० दे० 'अनुहरण' । । अनूजीऽसह कजरी ६ देखि रागी त्यागी ललचात जनजात अनुहारक-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० अनुहारिका अनुकरण करनेवाला । है --निश्चन (शब्द॰) । नकल करनेवाला । सदृश कर्म करनेवाला ।। अनूठा--वि० [सं० अनुत्थ, पा० अनुट्ठ प्रा० अणटुङ = स्थित अथवा अनुहारना--क्रि० स० [भ० अनुहार से नाम०1 तुल्प करना । सदृश देश० ] [स्त्री अनू] १. अपूर्व । अनोखा । विधिन । वि क्षण ! फरना । स मान करना । उ०—देखि री हरि के उचज तारे । अद्भुत । २. सुदर। अच्छा । वढिमा ।