पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२८३

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२३० अनुर्नपान अनश्रुति अनुश्रुति-संज्ञा स्त्री० [सं०] परंपरया मुनी या प्राप्त कया, ज्ञान अनुष्ठान शरीर--१ १० [१०] १,३ । । । ।र यूद में प्रौर पर अथवा बात । उ०—-अनप्रति है कि उनका निर्वाण विक्रम के पादौर के मध्य की स्थिति f प्रश्न गर म से जन्म से ४७० वर्ष पूर्व हुा ।—हिदु० सभ्यता, पृ० २२३ ।। है [को०] । अनुषग---संज्ञा पुं० [म० अनुषङ्ग ] [ वि० अनुषगी, अनुपगिक ] १ अनुष्ठापन--सी पुं० [मं०] कार्य में प्रवृत करना अव कार्य करुणा । दया । २ सवय । लगाव । साथ । ३ प्रसग से एक कराना सो०]। वाक्य के प्रागे और वाक्य लगा देना । जैसे--'राम वन को नए अनुष्ठायी--वि० [म० अनुष्ठाधिन् अनुदान 3 कार्य करने और लक्ष्मण म'। इस पद मे 'भ” के आगे 'वन को गए। वानी को०)। वाक्य अनुषग से समझ लिया जाता है । ४ न्याय में उपनय के नष्ठित----वि० [सं०] सविधि र विा प्रा । नरन्न । पून् । अर्थ को निगमन में ले जाकर घटाना। किसी वस्तु में किसी उ०----मुप पान किया अनुनि राजन् । मुरीति हो - और के तुल्य धर्म की स्थापन करके उसके विपय में कुछ कानन०, पृ० ११३ ।। निश्चय करना । जैसे,---घट आदि उत्पनि धर्मवाले हैं अनुष्ठय-वि० [२०] गर्नया । करने यो अनु"5/न योग्य [को०)। (उदाहरण), वैसे ही शब्द उत्पत्ति धर्मवाला है (उपनय), इम - अनुष्ण'--वि० [सं०] १ जो गर्म न हो । । । २ ग्राउरी । गुम्ने । (को०) । लिये शब्द अनित्य है (निगमन)। ५ उत्कट लालसा । तीब्र अनुष्ण-सज्ञा पुं० नील कमल [को०] । इच्छा । ६ अर्थपूत के लिये एक या अनेक शब्दो की प्रवृत्ति अनुणक:-वि० [म०] 'अनुप्' (को०] । (को०) । ७ घालमेल । मिश्रण (को०)। ८ अवश्य होनेन। अनुग्णगु--मज्ञा पुं० [सं०] गीत न FF Irrt | वन, ‘फ ! फल (को०) । ६ एक शब्द को दूसरे से संबध (को०)। अनुष्णवहिनकासा 'गै० [२०] नी । दुवै । नीने इf (को०] । अनुषगिक--वि० [सं० अनुषङ्गिक] १ अनिवार्य फल रूप । २ मवध अनुष्ष्यद-सज्ञा पुं० [सं०] गाडी का विना वा [को०] । या प्रसंगवश प्राप्त । सवद्ध (को०)।। अनुषगी--वि० [स० अनुषङ्गिन्] १ सवधी । २ २० 'अनुपगिक' [को०)। अनुसवान--संज्ञा पुं० [सं० अनुवन्नर ] [ वि० ग्रनुसयातना ! अनुषक्त--वि० [नं०] १ घनिष्ठ संबध या लगाववाला । २ संलग्न। पश्चाद्गमन । पीछे ननन । २ अन्वय ग । नोज । ३ । | पृक्त [को॰] । | जांच पड़ताल 1 तलाश । तहकीकत । ३ चेष्टा । प्रयन्न । अनुपक्ति----वि० [सं०] १ सवद्धता । सनग्नता । २ अासक्ति [को॰] । कोशिश । ४ योजना । पूर्वरूप या प्रारूप । माका (०) ।। अनुषिक्त--वि० [सं०] बार बार सिंचित । [को०)। अनुसंधानकत----वि० [सं० अनुसन्धान +पत् ] शो वा घोब का अनुषेक---संज्ञा पुं० [सं०] वार बार सीचना । फिर फिर पानी डालना कार्य करनेवाला । उ०—यह मक्षिप्न वणन अनुसंधाननमा या छिडकना की। के मामने एक नए क्षेत्र का जन्मदाता होगा ।-प्रा० भा० अनुषेचन-संज्ञा पुं० [सं०] ० 'अनुपेक' [को०] । १०, पृ० १२१ । अनुष्टुपु–सज्ञा ली० [सं०] १ अष्टाक्षरपदी छ । बत्तीस अक्षरों का , अनुसंधानना--- वि० सं० [सं० अनुसन्धान से हि० नाम०] १ * एक वर्णवृत्त । । खोजना । ठूदना । ३ मोचना | विचारना । उ०--हृदय में विशेष—इसमे आठ आठ वर्ग के चार पद या चरण होते हैं, कछ फन अनुसंधाना । भूप दिवे की परम मुजाना । मानस, १५१५६ । प्रत्येक चरण का पचव अक्षर सदा लघु और छठा सदा गुरु ग्रनमधानी--वि० [सं० अनसन्धानिन] १ शोध करनेवाला । ना। होता है तथा दूसरे और चौथे चरणो का सातवां अक्षर भी में रहनेवाला । २ योजनापट । किमी योजना के कार्यान्वयन में लधु ही होता है। शेष वर्गों के लिये कोई नियम नहीं है । दक्ष (को॰) । “छद प्रभाकर' के अनुसार माणवक्रीडा, प्रमाणिका, लक्ष्मी, अनुसधायक---वि० [सं० अनु +मन्वय ह] ३० 'अनुनयी' । उ०— विपुला, गजगति, विद्युन्माला, मल्लिका, तुग, पय, वितान, यहाँ तक कि कुछ अनुमधार्य के परवर्ती अथवा उत्तरार्ध मृ गरि रामा, नाचिका, चित्रपदा और एलोक अनुष्टुन् छद हैं। इनके काल को इसी करण पद्माकर युग तक कहना चाहते हैं । लक्षण और भेद अलग अलग हैं । पद्माकर ग्र० (भू०), पृ० ८ । २ सरस्वती (को०) । ३ वाणी । वाक् (को०)। ४ आठ अनुसंधायी -वि० [सं० अनुसन्यायिन् ] दे० 'अनुमधानी’ [को॰] । की सच्चा । अनुसधि---संज्ञा स्त्री० [सं० अनुसन्ध] १ परामर्श । ३ अनुसंधान । अनुष्ठातव्य---वि० [सं०] अनुष्ठान किए जाने योग्य । अनुष्य । । ३. गुप्त परामर्श । अतर ग मला । भीतरी बातचीत पड्चकं । अनुष्ठाता—वि० [सं० अनुष्ठातू] कार्य करने या कार्यारम करनेवाला। उ०—जिनको कि यह सब गुप्त अनुसधि न मालूम थी, इस बात । अनुष्ठानकर्ता (को॰) । का निश्चय भी कर दिया।—मारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ०१३४ ॥ अनुष्ठान सम्या पुं० [सं०] १. कार्य का आरभ । किसी काम को अनसंधेय–वि० [सं० अनुसन्धेय] शोघ योग्य । खोज के योग्य ।। शुरू। २ नियमपूर्वक कोई काम करना । ३ शास्त्रत्रिहित कर्म अनसंधान--संज्ञा पु० [सं० [अनु + सघाउ] १ साथ चलना । साथै करना । ४ किसी फल के निमित्त किसी देवता की अराधना। साथ यात्रा करना । २. गमन । यात्रा । दौरा । ३ बदनी या प्रयोग । पुरश्चरण । , परिवर्तने । उ०—अनुसंधान का अर्थ विवादग्रस्त है ।--- तष्ठानक्रम--सको पु० [सं०] धर्मकृत्यो का क्रम [को०] । ३० रू. पू० ५७६ ।