पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२८२

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अनुव्याध । अनुते अनुव्याध-सज्ञा पु० [म०] दे० 'अनुवैध' [को०] अनुशरे--मज्ञा पुं० [सं०] दुष्टात्मा राक्षम ।। अनुव्याहरण–पज्ञा पुं॰ [सं०] १ बार बार दोहराना । पुनरुक्ति । २ अनशासक---सञ्ज्ञा पुं० [म०] १ आज्ञा देनेवाला । अादेश देनेवाला । किसी प्रसग का प्रमगातर सहित उल्लेख । ३ शाप । अनिष्ट हुकम देनेवाला । २ उपदेष्टा । शिक्षक । ३ देश या राज्य का चितन [को०] । प्रवध करनेवाला । हुकूमत करनेवाला । अनुव्याहार-मज्ञा पुं॰ [सं० दे० 'अनुव्याहरण' [को॰) । अनुशासन--मज्ञा पुं० [सं०] [वि० अनुशासक, अनुशासनीय,अनुशासित] अनुव्रजन—सज्ञा पुं० [सं०] विदा होते हुए विशिष्ट अतिथि के साथ १ अादेश । अाज्ञा। हुक्म । उ०—अनुशासन ही था मुझे कुछ दूर पहुचाने जाना [को०] । अभी तक अाता ।----साकेत, पृ० २३५ । २ उपदेश । शिक्षा । अनूव्रज्या--सज्ञा स्त्री॰ [स०] दे० 'अनुव्रजन' [को०] । ३ व्याख्यान । विवरण । ४. महाभारत का एक पर्व । ५ अनुव्रत--वि० [सं०] १ विश्वासपात्र । कर्तव्य परायण २ निदिष्ट नियम । व्यवस्था । कार्यों को दत्तचित होकर उचित रूप में करनेवाला [को०] । अनुशासनपर-वि० [सं०] आज्ञाकारी [को॰] । अनुव्रत--सज्ञा पुं० जैन मुनियों का एक वर्ग [को०] । अनशासनपर्व--सझा पुं० [सं०] महाभारत का १३वी पर्व । अनुव्रता--मझा ० [ म० ] सदा पति में अनुरक्त रहनेवाली स्त्री। अनुशासनौय--वि० [सं०] १ अाज्ञा देने के योग्य । प्रदेश देने के। पतिव्रता [को०] । योग्य । हुक्म देने के लायक । २ उपदेश देने के योग्य । शिक्षा अनुशतिक-संज्ञा पुं० [सं० ] सौ से अधिक सैनिको का नायक या देने के योग्य । ३ प्रवध करने के योग्य | हुकूमत करने | अफसर । के लायक । ' विशेष—इसका स्थान शतानीकों के ऊपर होता था जिन्हें यह अनुशासित--वि० [सं०] १ जिसको अाज्ञा दी गई हो । जिसे आदेश | मैनिक शिक्षा देता था ।। दिया गया हो । २ उपदिष्ट। शिक्षित । ३ जिसका प्रबंध अनुशप-मशी पु० [सं०] काम से ली हुई छुट्टी । रुपमा । किया गया हो । जिनपर हुकूमत की गई हो । विशेप---चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में इसके संबध में बहुत मै अनशमी--मज्ञा पुं० [स० अनुशासिन्] १० 'अनुशासक [को०] । नियम दिए हैं। अनुशास्ती-संज्ञा पुं० [सं० अनुशास्तृ] दे० 'अनुशासक' [को०] । अनुशय-मज्ञा पुं० [सं०] १ पूर्वद्वेष । पुराना वैर। अदावत । २ । अनुशिष्ट--वि० [सं०] १ शिक्षित । २ श्रादिष्ट । निर्देशित । ३. पश्चात्ताप । अनुताप । उ०—-लघुता मत देखो वह चीर, जिसमे | पूछा हुआ । अनुशय वन घुसा तीर ।—कामायनी, पृ० २५० । ३ झगडा । अनुशिटि-सज्ञा स्त्री० [म०] अादेश । शिक्षा। शासन [को०] । वादविवाद । कहासुनी । गर्मागर्मी ४ दान मबधी झगडो का । अनुशीलन--संज्ञा पुं० [सं०] [वि० अनुशीलनीय, अनुशीलित] १ निर्णय, फल या फैसला ( अर्थ० ) । ५ घृणा (को०) । ६ विनन । मनन । अालोचन । उ०-देवो की मृष्टि विलीन हुई नगाव । ग्रामक्ति (को०)। ७ बुरे कर्मों का फन या परिणाम। कर्मविपाक (को०) ।। अनुशीलन में अनुदिन मेरे |--कामायनी, पृ० ७१ । २ पुन पुन यो०--कीनानुशय = वे नियम जो क्रय विक्रय के झगड़े मे सवध | अभ्यास या अध्ययन । प्रवृत्ति ।। | रखें । नारद स्मृति में ये बड़े विस्तार के सार कहे गए है। अनुमाननीय अनुशीलनीय–वि० [म०] १ चिंतन करने के योग्य । मनन करने के अनुशयान-वि० [सं०] पश्चात्ताप करनेवाला । पछतानेवाला कौ०] । योग्य । विचार या आलोचना करने के योग्य । २ अभ्यास अनुशयाना--सज्ञा स्त्रो० [म०1१ परकीया नायिका का एक भेद । वह करने के योग्य ।। नायिका जो अपने प्रिय का मिलने स्थान नष्ट हो जाने में अनुशीलित--वि० [सं०] बार बार अभ्यस्त । सावधानी में अथवा दुखी हो । ध्यानपूर्वक पठित [को॰] । विशेप-- यह तीन प्रकार की होती है । (क) मकेतविघट्टना= अनुशोक-सज्ञा पुं० [स] शोक । पश्चात्ताप । खेद [को॰] । वर्तमान सकेत नष्ट होने से दुखी । (ख) माविम केतनष्टा= अनुगोचक-वि० [भ०] १. पश्चात्तापकर। खेदजनक । पछतानेभावी सकेत के नष्ट होने की संभावना से सतापित और (ग) बाला [को०] । रमणगमना= मिलने के स्थान पर प्रिय गया होगा और मैं अनुशोचन-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अनुशोक' (को०)।। नहीं पहुंच सकी, यह सोचकर जो दुखी हो। अनुशोचना सज्ञा स्त्री० [म० अनुशोचन] दु ख । शोक । खेद । चिता । अनुशयी--वि० स० अनुशपिन्] १. वैरी । द्वेषी । २ झगडालू । ३ । । उ०—(क) 'क्यो हृदय को दुर्वल बनाकर अनुशोचना बढ़ा पश्चात्तापर्युक्त । पछतानेवाला [४ चरणो पर पड़कर प्रणाम | रहे हो' ।—राज्यश्री, पृ० ६ । । करनेवाला । ५. अनुरक्त । लीन । असक्त । ६. कर्मफल का अनुशोची-वि० [सं० अनुशोचिन्] ६० 'अनुशोचक' [को०] । भोक्ता (को०)। अनुश्रव–मझा पुं० [सं०] वैदिक या धार्मिक परंपरा [को०] । अनुशयी-सच्चा पुं० वह राजकर्मचारी जो दान विधी झगड़ों की अनुश्रविक-वि० [स] परंपरा से श्रुति द्वारा पर कि विपक निणय करता था (अर्थ०) । • (शान), जैसे, स्वर्ग, देवता, अमृन इत्यादि का ।। अनुशयीसा ली० [सं०अनुशय +१] रोगविशेष । एक प्रकार की अनुश्रुत--वि० [सं०] परपरा से मुना गया ग्रंथ प्राप्त (ज्ञान फंसी जो पैर में होती है। दि ) [को०] ।