पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२८१

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अनुवा २१६ अनुव्याख्यान अनुवा-सच्चा सौचने के लिये पान जहाँ से टोकरीम अनवी संज्ञा पुं० [म० अनूप = जलयुक्त, प्रा० अण व] १ कुएँ के अनुवासित-वि० [भ०] १ गघ से बसाया हुअा। गर्घद्रव्य मे मुवा- जगत का वह भाग जहाँ खड़े होकर पानी खीचते हैं । सिंत । २ वस्ति क्रिया द्वारा चिकित्सा किया हुआ। एनिमा २ पानी निकालने के लिये खोदा हुयी गड्ढा । चौडा । चोग्रा। दिया हुआ को॰] । ३ ताल के पास की वह स्थान जहाँ से टोकरी या दौरी के अनुवासी-वि० [म० अनुवासिन्] पड़ोस में रहनेवाला । साथ रहने- द्वारा खेत सीचने के लिये पानी ऊपर फेंकते हैं । चौना । वाला [को०) ।। अनुवासज्ञा पुं॰ [ देश० ] व्यभिचार दोप।। | अनुवित्त-वि० [सं०] प्राप्त । उपलव्ध [को॰] । अनुवा ---[हिं० आनना] अनिनेवाला । जानेवाला । उ०—ताहि अनुवित्ति-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] प्राप्ति । उपलब्धि [को०] ।। तू वताइ जोई बाँह दै उसीसे सोई ऐसे अनुवादन के अनुवा घनेरे अनुविद्ध–वि० [सं०] १ छेदा हुआ। जिसमें आर पार छेद किया हैं ।-गग०, ग्र० पृ० ७६ । । हो । २ खचित । सलग्न । ३ भरा हुआ । परिपूर्ण । ४ मिला अनवाक-मज्ञा पुं० [सं०] १ ग्रंथविभाग । ग्र विपद् । प्रथखडे । हुशा । युक्त । सयुक्त को०] । अध्याय या प्रकरण का एक भाग । २ वेद के अध्याय का एक ग्रनविधान-सज्ञा पु० मि०] १ आज्ञापालन । आज्ञाकारिता । ३ अश । ३ दुहराना । पुन पढ़नी (को०) । प्रदेश या नियम के अनुसार कार्य करना । अनवाचन-सज्ञा पुं० [सं०] १ यज्ञ में विधि के अनुसार मंत्री की अनविधायी--वि० [म० अनुविधायिन्] [वि॰ स्त्री० अनुविधायिनी] १ पाठ । २ पढ़ाना । अध्ययन कराना (को०) । ३ स्वय प्राज्ञाकारी । विनीत । आदेशानुसारी । २ मिलता जुनता । पढना (को॰) । तद्रूप (को०] । अनुवाद-संज्ञा पुं० [सं०] १ पुनरुक्ति । पुन कथन । दोहराना । अनुविनाश सज्ञा पु० [सं०] किसी के साथ लुप्त या नष्ट हो जाना २ भाषातर । उल्था । तजुमा । ३ न्याय के अनुसार वाक्य | को०] ।। का वह भेद जिसमें कही हुई बात का फिर फिर स्मरण अनविहित--वि० [स०] आज्ञाकारी को०] । और कथन हो । जैसे--'अन्न पका ग्रो, पकाग्रो, पकाओं, शीघ्र अनवत्त--वि० [सं०] १ अनुसरण करनेवाला । २ अज्ञापालन पकाग्रो, हे प्रिय । पकाग्रो' । करनेवाला । ३ लगातार । अविच्छिन्न् । ४ उतार चढाव के विशेष—इसके दो भेद हैं-जहां विधि का अनुवाद हो वहाँ शब्दा- साथ वतु लाकार । सुराहीदार ! ५ शी नानुगत । ६ जिसको नुवाद और जहाँ विहित का हो वहाँ अर्थानुवाद होता है। अावृति की गई हों [को०)। ४ मीमामा के अनुसार वाक्य के विधिप्राप्त आशय का दूसरे शब्दों में समर्थन के लिये कथन । अनुवृत्त--संज्ञा पुं० [सं०] वृतात । वर्णन । विवरण । अनवृत्ति--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ किसी पद के पहले अश से कुछ वाक्य बिशेष—यह तीन प्रकार का है--(क) भूतार्थानुवाद, जिसमे उसके पिछले अंश में अर्थ को स्पष्ट करने के लिये लाना आशय की पुष्टि के लिये भूतकाल का उल्लेख किया जाय । जैसे--‘राम घर गए हैं और गोविंद भी ( घर गए हैं )' ।। जैसे, पहले सत् ही था। (ख) स्तुत्यर्यानुवाद, जैसे वायु ही २ स्वीकृति । सुपुष्टि (को०) । ३. आज्ञाकारिता (को०)। ४

  • सबसे बडकर फेंकनेवाला देवता है। (ग) गुणानुवाद, जैसे,

दही से हवन करे । 'अावृत्ति (को०) । ५ अनुसरण । अनुकरण (को०) । ५ खबर । जनश्रुति (को०) । ६ व्याख्यान का प्रारभ (को०)। अनुवेध---सज्ञा पु० [सं०] १ छेदन करना । वेधनी । २ सपर्क ! ७ विज्ञापन 1 सूचना [को०] । । मिलन । ३ मिश्रण । ४ वाधा [को०] । अनुवादक-सज्ञा पुं० [म०] १ अनुवाद करनेवाला । 'मापातर करने । अनुवेल्लित-वि० [स०] नीचे झुका हुआ [को०] । | वाला । उल्था करनेवाला 1 २ सदृश । समन (को०)। ३ । अनुवेल्लित सझा पु० १ घाव पर पट्टी बाँधना । २ सुश्रुत के अनु- समर्थन करनेवाला [को०] । मार घाव वाँधने के लिये १४ प्रकार की पट्टियों में से एक को०] अनुवादित:--वि० [म०] अनुवाद किया हुअा। अनूदित । अनुवेश---सज्ञा पुं० [सं०] १ अनुसरण। बाद में प्रवेश कर (i। अनुवादी'- -संज्ञा पुं० [सं० अनुवादिन्] सगीत में स्वर का एक भेद पीछे पीछे प्रविष्ट होना। २ बड़े भाई से पहले छोटे का | जि ती किसी राग में आवश्यकता न हो और जिसके लगाने से विवाह [को०] ।

  • राग अशुद्ध हो जाय ।

अनुवेशन-सज्ञा पृ० [सं०] दे० 'अनुवेश' को॰] । अनुवादी-वि० दे० 'अनुवादक' [को०] ।। अनुवेश्य–सुझा पु० [सं०] १ वह ब्राह्मण जो मात्र या गति कमें अनुवाद्य--वि० [भ] अनुवाद के योग्य । व्याख्या के योग्य (को०] । | करनेवाले से एक घर के अतर पर रहता हो । अनुवास—वज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'अनुवासन' [को०)। विशेष—मनु ने किसी मगल या शाति कर्म में ऐसे ब्राह्मण को अनुवासन --सज्ञा पुं० [स०] १ वैम्श्रादि को सुगधित करना । भोजन कराने का निषेध किया हैं। महकाना । २ मुश्रुत के अनुसार पिचकारी के द्वारा तरल अनुवेश्य–वि० प्रतिवेशी । पड़ोसी । सटे हुए मकान में रहनेवाला। औषध शरीर के भीतर पहुचाना। वस्ति क्रिया । एनिमा। अनुव्याख्यान-मज्ञा पुं० [सं०] १ मत्रो तया सूत्रो की व्याख्या । अनुवासनवस्ति-मज्ञा स्त्री० [म०] १ सुंगधित करने का यत्र । मविवरण । २ ब्राह्मण ग्र थो का वह भाग जिममें कनि पिचकारी। २ शरीर के भीतर तरल पध पहुंचाने सूत्री तथा मत्रो की व्याख्या हो । मत्रो आदि का अनुरूप अर्थ- की पिचकारी। प्रकाशक व्याख्यान [को०] ।