पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२८

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के अतिरिक्त डा० रिचर्डसन' के कोण में लातिन के साथ फ्रासीसी, कोश हैं--चना में बहाँ से सामग्री और महायता मिलती है । उसे इताली, स्पेनी भापा के शब्दो का उपन्याम यह सूचित करता प्रामाणिक और प्राप्त मान लिया गया है । || है कि उस युग के कोशकारो की चेतना उद्बुद्धतर हो रही थी । | यौर तुलनात्मक दृष्टि का विकास होने लगा था। एक अन्य कोश | यह प्रसंग यही समाप्त किया जा रहा है। यहाँ इस चर्चा का उद्देश्य केवल इतना ही मकेत करना था कि भारत में जो अाधुनिक में तुलनात्मक रूपों की प्रवृत्ति त लुप्त हो गई पर अर्थ व्याख्या । | में कुछ कुछ विश्वकोशीय पद्धति का प्रभाव लक्षित होने लगा था। कोश बने वे इन्ही पश्चिात्य कोणों की पद्धति पर चले। उनके १८६० के 'वेस्टर' कै कोश में पुन लातिन, इताली, स्पेनी और निर्माण में पूरी सफलता चाहे न भी मिल सकी हो पर उनकी फासीमी पादरूप में भी तुलनात्मक बोध का श्रमास मिलता है पद्धत भी वही था जिसे हम अाधुनिक । पर अग्रेजी कोशो की यह सीमा इन्ही भाषाओं के घेरे में पड़ी रही। कहते हैं। पाश्चात्य विद्वानों का योगदान धीरे धीरे कोमकला के प्रदर्श-रचना-विवान की उपादान सामग्रियों का प्रयोग----थोडी या बहुत मात्रा मे--अक्सफोर्ड इंग्लिश सस्कृत तथा भारतीय भापात्रो के कोश । डिक्शनरी की रचना के पहले से भी होने लगा था। पर उनमे वैज्ञानिक और ऐतिहासिक आधार सर्वथा पुष्ट और सुव्यवस्थित नही थे । भारत में विदेशी विद्वानो, धर्म प्रचारको र सरकारी शासको वे उपादान किसी एक कोश में योजनाबद्ध क्रम से सयोजित न | द्वारा श्रीधुनिक ढंग से कोण निर्माण का कार्य प्रारम हुआ--यह कहा होकर भिन्न भिन्न के शो में विकीर्ण थे। फिर भी उनसे जा चुका है। ये कोश मुख्यत दो रूपों में बने--(१) विदेशी मी पाओ || कोशनि मणि के आवश्यक उपादानों की उपयोगिता सूचित श्रीर । में ( विशेषतः अग्रेजी में ) और (२) अंग्रेजी तथा भारतीय भापा निर्देशित हो चुकी थी। पूर्व कोशों की अपेक्षा परवत कोशो । में । विदेशी भापाशो के माध्यम से भारतीय भाषाओं के जो में प्राय अर्थप्रतिपादन की पूर्णता, यथार्थता श्रीर शुद्धता के साथ- कण बने उनमें सम्शत के कसो का स्थान महत्वपूर्ण है। इनके सुथि ऐतिहामिक और भाप वैज्ञनिक प्रौढ़ता बढ़ती गई । इ० ट्रेच अलावा हमरे में कोश हैं जो अंग्रेजी आदि के माध्यम से वने । वे या की मनीषा ने समस्त पर्वम केसिक उपादानों के समुचिन विनियोग तो हिदम्तानी, हिंदी और उर्दू के को हैं या अन्य भारतीय एव ममावेश का लिग निर्देश दिया। उन्होंने सुव्यवस्थित ढंग से शोर भागो वैः ।। ।। योजनाबद्ध रूप में उनके उपयोग की महत्ता को ठीक ठीक समझr मीर उनके ममूचित एवं व्यवस्थित विनि।ग और प्रयोग से कोशरचना १८१९ में हा० ‘विलसन’ को ‘सस्कृति इगलिश फोश' प्रकाशित के कार्य को पूता की दिशा में बढ़ाने का प्रयास किया । हुआ । अग्रेजी के माध्यम से प्रकाशित होनेवाले इस सस्कृति कोष को प्रस्तुत दिशा में महत्वपूर्ण पर अरमिक कार्य कहा जा सकता | अक्सफोर्ड इग्लिश टिशनरी के निर्माण में उपयोजित रचना- है । इस कृति को भूमिका से पता चलता है कि उस समय विधान ने कोशनिमणि की एक ऐसी भूमिका प्रतिष्ठित की जो पुरानी पद्धति के कुछ संस्कृत के त की पुरानी पद्धति के कुछ सस्कृत कोश वर्तमान थे। कोलक द्वारा अनूदित क्रमश विकास की ओर बढ़ती चल रही है। साहित्य और भाषा । अमरकोपा भी वर्तमान था । वस्तुत 'विलसन' का यह ग्रंथ पर्यायवाची || के ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक अध्ययन, अनुशीलन और अर्थ विचार द्विमापी कोश यहा जा सकता है। मोनियर विलियम्स की दो अथवा शब्दार्थ विचार का कुशले परिशीलन उसमे लक्षित होता है। कृतिय-सस्कृत अग्रेजी- कोश और ईगलिया सस्कृति को महत्वपूर्ण उसको पूर्णता की ओर अग्रसर करने के लिये शतिः, सामथ्र्य, कोण हैं । उनका प्रकाशन १८५१ ई० में हुआ। इस कोण की प्रेरणा विलसन के अर्थ से मिली । विलसन ने अपने कोश के सह्योग और ग्रन का व्यापक साधन उहाँ अपेक्षित है वहाँ विभिन्न नवीन मस्करण की भूमिका में अपना मतव्य प्रकट किया है । शास्त्रज्ञ, विद्यावेत्ता श्रो, शव्दब्यवहार के मर्मज्ञ मनीषियो, 'भापा वे यह चाहते थे कि संस्कृत के समी शब्दो का वैज्ञानिक ढग तया साहित्य के ऐतिहासिक परिशोनको और शोधकर्ता की मेधा, से ऐमा ग्रीकलन हो जिससे सस्पृत की लगभग दो हजार धातु मनीपा, सूक्ष्म वोच्च अौर प्रतिभा भी अपेक्षित हैं। यह कार्य स्वरूप के अंतर्गत समस्त सस्कृत शब्दों का समावेश हो जाये । इस समय में साध्य भी नहीं हैं। इसके निमणि और विस्तार का कार्य । दिशा में उन्होंने थोडा प्रयत्न भी किया। इन दोनो के चाद व्यापक परिवेश र बड़े पैमाने पर अखइ रूप से चलते रहना महत्वपर्ण गथ महत्वपूर्ण ग्रंथ प्राप्टे की कोश प्राता है जो सस्कृत अग्रेजी अर ए का को प्रान् चाहिए। अक्सफोर्ड इंग्लिश डिनरी का कार्य निरतर चलता अग्रेजी संस्कृत दोनों रूपो में सपादित किया गया। विलियम्स के रहता है। उसके साधन, पराि करण, सवर्धन आदि की प्रक्रिया कोश में घाम लक व्यत्पत्ति के साथ साथ शब्दप्रयोग का सदर्भऔर नवीनतम मम्छरग, की प्रकाशन सामग्री का संचालन होता चलता सकेत भी दिया गया। परतु आपूढे के कोश में सकैतमात्र ही नहीं हैं। मपादको की अनेक पीढ़ियों ने वहाँ कार्य किया। इतना ही नही-- इद्धरण भी दिए गए हैं। पूर्व कोश की अपेक्षा वह अधिक उपयोगी इसके प्रा धार पर अनेक उपयोगी ‘सक्षिप्त', 'लघु', 'पाकेट', दिन्नाई पड़ा । कुछ वप पूर्व तोन खडो में उनके कोमा का सणोधित अादि सस्करण छपते और लाम्चो को सख्या में बिते रहते हैं । अन्य सर्वाधित और विस्तृत सरकरण प्रकाशित हुआ है जो कदाचित तबतक सैकडो हजारो अग्रेजी कोशो की--जिनमे बड़े छोड़े सभी प्रकार के के समस्त ‘सर कृत अग्रेजी को शो में सर्वाधिक प्रामाणिक एव उपयोगी