पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२७७

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अंनुर्पक्ष २१४ | अनुभी अनुप्रेक्षा--सज्ञा स्त्री० [न०] १ नेत्र गडा कर दे जनः । ध्यान में जीव पीटा का अनुभव है है (६०)। २ परीक्षा द्वार। देखना । २ ग्रंथ के अर्थ का मनन अर्थात् मन से अभ्यास । पाया ही जान । उजत जन । नजरा । जैसे,—ने इस गठित विषय का एकाग्र चित्त ने चिंतन ।। कार्य का अनुगव नहीं हैं (शद०)। ३ मम । मन में 7.3 अनुबंध-भज्ञा पु० [सं०"7नुवा] १ वधन । नगाव । २ प्रविच्छिन्न क्रम । ज्ञान (को०) । ४ परिणाम । फत्र (को०) । अागापरेछ । मिमिना । जैने--किमी कार्य को करने के पहले अनभवना७–० ग० [ ग्वं० अनुभव में नाम ० 1 अनुमा करना । उसका अागापीछा सोच लेना चाहिए (शब्द०)। ३ वाज । बोध करना। ३०-पुन्य फन अनुभबन मुतहि विजोकि ३ नंद अनुवश (को०) । ४५ होनेTT शुभ या अशुभ परिणाम । फन ।। घर नि ।- ०, १०।१०६ । ५ उद्दश्य । इरादा । कारण (को०) । ६ गौण बस्नु । पुर। अनुभवी-वि० [सं० अनुभदिन्] अनुभव उनाना । जिसने देख्न अप्रधान वस्तु (को०} { ७ वात पित्त और कफ में से जो सुनकर जानकारी प्राप्त की है। । तजरबेकार । जानकार । अप्रधान हो । ६ वादविवाद या विषयवस्तु को जोडनेवानी अनुभाऊ -मज्ञा पुं० [हिं०] १० 'ग्रनुमन' । उ०—बरनि मप्रेम कडी । वेदात का एक अनिवार्य तत्व या अधिकरण । ६ भर अन्नाऊ ।---- मीनन, २२८८ ।। अपराध । भटि (को०)। १० पारिवारिक वाधा, भार या स्नेह अनभाच-सहा पु० [ में०] १ प्रभाय । महिमा । यः । २ काव्य में (को०)।११ पिता या गुरु के पथ का अनुमरण करनेवाना वालनः । रम के चार अगों में से ए चे गुण ग्री क्रियाएँ जिनसे रन (को०)। १२ प्रारम् । श्रीगणेश । १३ मार्ग । उपाय (को॰) । का बोध हो । चित्त का भावप्रम करनेवाचा वाटा, मात्र १४ तुच्छ या नगण्य वस्तु (को०) ! १५ मुख्य रोग के नाय अादि चेष्टाएँ । उत्पन्न अन्य विकार (को०) । प्यास । तृपा (को०) । १६ अनु विशेअनुभव के चार भेद हैं-भावि, ऊयिक, मानसिक सरण । १७ करो। इकरारनामा। १६ पाणिनीय व्याकरण श्रौर शहार्य । हमें भी इसी के अनर्गत माना जाता है। में धातु, प्रत्यय अादि का प होनेवाला वह मज माकेतिक अनभावक - [भू०] gीन या ग्रन नहि कर वण जो गुण, वृद्रि प्रत्याहार आदि के लिये उपयोगी हो । अनुभावन–नज्ञा पुं० [३०] चेष्टा या भगिना द्वारा मन के भाव को अनुबंधक---वि० [म० अनुबन्धक] सवइ । सबधित । ३ अनुबंध करने प्रकट करना [फो०] । | वाला (को०] । अनुभावित-वि० [सं०] १ अत्यधिक पक्तिमपन्न । २ रक्षित । अनुवचन--सज्ञा पु० [म० अनुवन्धन] साध । अनुक्रम् । सिनमिला ।। ३ अनुभवमपन्न । अनुभवी [को०] । उ०——यूवर प्रसगो के अनुवधन में ब्रजविन्नाम की गला द्रुत- अनभावी--वि० [R० अनुभदिन] [वि० मी० अनुभावनी] १. जिस विल बित गति से प्रवाहित होती है ।----पोद्दार अभि०, ग्र०, । अनुभव या सवेदना हो। साक्षात्कार काफ। २ वह वाक्य पृ० ३४६ । अनुवविका---आज्ञा स्त्री० [म० अनुबन्धि का नो का दर्द [को०] । जिसने सब बातें खुद देख मुनी हो । चश्मदीद गवाह । ३ मृतक अनुबंधो----वि० [न० अनुवन्थिन्] [वि० पी० अनुबन्धि नी] १ मवधी। के वे मवधी जिन्हें उनके मरने का प्रज्ञाच लगे वा जा अायु आदि में उनके छोटे हो । ४ बाद में अानेवाना। चाद में लगाव रखने माना। २ फनम्वरूप । परिणामस्वरूप ।। अनुबधी--संज्ञा स्त्री० १ हिचकी । २ प्यामि । होनेवाला (को०)। ५ वि दिखानेपाना (को०) । अनुवद्ध-वि० [सं०] १ सबद्र । लगाव रखनेवाला (को०] । अनुभापक---वि० [म०] उत्तर में बोलनेवान्ना [को०] । अनुवर्तन---सज्ञा पु० [हिं०] ० 'अनुवर्तन' । उ०---प्रगति पूरब | अनुभापण---संज्ञा पुं० [सं०] १ खडन करने के लिये किमी स्थापना | दिनिहि को जहँ अनुवर्तन होत ।--मतिराम ग्र०, पृ० ४२८ । को पुन कयने । २ कथित वस्तु का पुन कथन । पु रत्नपान । अनुबले---सज्ञा पु० [सं०] पीछे रहकर रक्षा करनेवानी सेना [को०] । प्रवृत्ति । ३ वार्तालाप । कयोपकथन [को०] । अनुवाद--मज्ञा पुं० [हिं॰] दे० 'अनुवाद' । उ०—-मूनन कि हरि अनुभास—संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का कौमा [फो०] । गुन अनुवादा।--मानम, ७॥११० । २ जनश्रुति । अफवाह । अनुभूत-वि० [सं०] १ जिसका अनुभव हुआ हो । जिमका साक्षात् उ०..--ताहि तु वनाई जोई वाहू ६ उमीमै सोई ऐसे अनुवादन ज्ञान हुअा हो । २ परीक्षित। तजरवा किया हु।। अजमूदा। के अनुवा घनेरे हैं!--गग०, पृ० २६४ । । यौ०-अनुभूतार्य । अनुबोध----सच्चा पु० [सं०] १. स्मरण या वोघ जो पीछे हो । २ किसी अनुभूति--संज्ञा स्त्री॰ [] अनु पत्र। परिज्ञान । अाधुनिक न्याय के तु का हल्की हो गई सुगध को पुन तीन करना । अनुसार प्रत्यक्ष, अनुमिति उपमिति और शब्दबोध द्वारा गधोद्दीपन । प्राप्त ज्ञान । २ इद्रियज ज्ञान या बोध । प्रत्यक्ष ज्ञान [को॰] । क्रि० प०--करना—होना । अनुभेद-सज्ञा पुं० [सं०] उपभेद । उ०--कौन वडो को छोट भेद अनुवोधन--सज्ञा पुं० [सं०] स्मरण करना या कराना (को॰) । अनुभेद न जाने ।-सूर०, १०।५८६ । अनुव्राह्मण-सा पुं० [सं०] १ जाह्मण के समान ग्रंथ । जैसे,ऐतरेय अनुभोग-सझा पुं० [सं०] १. वह जमीन जो किसी काम के बदले में ब्राह्मण में मिलता जुलना ग्रचे । २ ब्राह्मण जै । कार्यको०]t | माफी दी जाय । माफी। बिमती । २ उपभोग । अनुभव-नशा पु० [सं०] [वि॰ अनुभवी] १. प्रत्यक्ष ज्ञान । वह ज्ञान अनुभौ -सहा पुं० [हिं०] ६० 'अनुभव' । ३०-३मौ चेयर रेन जो सादादू करने से प्राप्त हो । स्मृतिभिन्न ज्ञान। जैसे-सब दिन ढरिया |--केशव० समी०, ५० ५० ।।