पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२७०

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अनकर्षण २०७ अनुक्रमणिका कारिणी] १ अनुक। कति-संज्ञा स्त्री० [म०] १ समानकति बाह्य उदार अनुकर्पग-सज्ञा पु० [सं०] दे० 'अनुकर्प' । अनुकूल(@----क्रि० वि० [हिं०] शोर । तरफ । उ०——ाहति भूप रूप अनुकलन--संज्ञा पुं० [म ०] अकन । लेखन । सज्जा करना । उ०--- तर मूना । चली विपति वारिध अनुकुला ।—मानस २३४ । हिंदी लिखसे के लिये फारसी निपि का इस प्रकार अनुकूलन अनुकूलता--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ अपतिकूलता। अविरुद्धता । ३ करने के कारण --मपू० f० ग्र०, पृ० १३१ । पक्षपात। हितकारिता । सहायना । ३ प्रसन्नता ।। अनुकल्प--मज्ञा पुं० [स०] अावश्यकतानुसार निर्दिष्ट के अभाव में अन्य अनकलन-सज्ञा पुं॰ [सं०] अनुकूल होने का प्रभाव । उ० ---प्रवचन विकरप का व्यवहार । जैसे यव के अभाव में गेहूं या चावन के काल में भी हिदु सभ्यता ने बडी स्थिरता दिखाई है और व्यवहार का विकल्प । २ कल्प (छह वेदागो में से एक ) अनुकूलन की भक्ति की भी परिचय दिया है। हिंदू सभ्यता, ने सबधित ग्रय [को०] । पृ० ५८४ | अनुकाक्षा---सज्ञा स्त्री॰ [म० अनुकाड झा] [वि० अनुकाक्षित, अनुकाक्षी] । अनुकूलना -क्रि० स० [ म० अनुकूनन से 'नाम०] १ अप्रतिकूल इच्छा । अभिलापा । अाकासा ।। होना । मुग्राफिक होना । २ पक्ष में होना । हितकर होना । अनुकाक्षित-वि० [ म० अनुफाङक्षित ] इच्छित । अभिलषित । ३ प्रसन्न होना । उ०---फगुआ देन कह्यो मन भायो सबै अकाक्षित ।। गोपिका फूनी । कठ लगाये चली प्रियतम को अपने गृह अनुअनुकाक्षी–वि० [म० अनुकाड क्षिन्] [वि० सी० अनुकक्षिणी] इच्छा । कूनी ।-मूर ( शव्द०)। रग्ग्रनेवाला । चाहनेवरी । आकाक्षी । अनुकला-संशा स्त्री० [म०] १ एक बर्णवृत्त जिमके प्रत्येक चरण में अनकाम-वि० [सं०] १ प्रिय ! इच्छानुकून । २ इच्छुक । विनासी । भगण, तगण, नगग श्रीर टो गुरु (514551+11+ss) कि] । होते हैं । मौक्तिक माला । जैसे --पावक पूज्यी समिध अनुकामी-वि० [सं० अनुकामिन्] इच्छानुसार कार्य करनेवाला। मुधारी । ग्राहूति दोन्ही सव सुखकारी केशव (शब्द॰) । स्वेच्छाचारी (को०)। २ दती वृक्ष ।। अनेकामीन–वि० [स०] दे० 'अनुका मी' [को॰] । अनुकूलित-वि० [सं०] ममानित । जिमका भव्य स्वागत हुग्रा हो अनुकार—सज्ञा पुं० [म०] १० 'अनुकरण' । ' [को०] । अनकारी–वि० [१० अनुकारिन्] [स्त्री० ग्रनुकारिणी] १ अनुकर्ना। अनुकृत-वि० [म०] अनुकरण किया हुआ । नकल किया हुआ । अनुकरण करनेाला । देखादेखी करनेवाला । नकल करनेवा । अनुकृति--संज्ञा स्त्री० [म०] १ समान चिरण । देखा देखी कार्य । २ अाज्ञाकारी । हुक्म पर चलनेवाला । | नकल । अनुकरण । उ०— हृदय की अनुकृति वाह्य उदार -- अनुकार्य–वि० [स०] जिसकी नकल की जा सके । नकन किए कामायनी पृ० ४६ । २ वह काव्यालकार जिसमे एक वस्तु का जाने योग्य । कारणातर से दूसरी वस्तु के अनुसार हो जाना वर्णन किया अनुकार्य’--सज्ञा पु० अभिनेता द्वारा अनुकृत व्यक्ति । वह जिमकी जाय । यह वास्तव में सभ अलकार के अंतर्गत ही आता है । नकल की जाय । उ०—उन अभिनेताओं को ही दर्शक लोग अनुकृष्ट - वि० [मं०] १ आकृष्ण । म्बिचा हुआ । २ समाहृत । समिअनुकार्य समझ लेते हैं 1–स ० शास्त्र, पृ० ४७ । लित । ३ आरोपित । गमित कौ] । अनुकाल-वि० [स०] सामयिक । समयानुकून [को०] ।। अनुक्त-वि० [सं०] अकथित 1 विना कहा हुआ । अनभिहित । अनुकीरतन(७----सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अनुकीर्तन' । उ०---जहाँ अनक्ति----सज्ञा स्त्री० [सं०] १ न बोलना। न कहना । अकथना । २ अनु | वह बात जो उचित न हो । अनुचित बात [को०] । प्रसिद्ध निषेध को अनुकीरतन प्रकाण -मतिराम प्र ०, पृ० ४३९ । अनुक्र दन--सागुं० [म० अनुक्रन्दन] उत्तर में चिर नाना । प्रतिक्रइन कि० । अन कीर्तन-मा यु० [सं०] १ वर्णन | कथन । २ घोपणा । उद्- अनः अनुक्रकच---वि०म०] जिसमें नकडी चीरने की अारी जैसे दांत वने घोप । प्रचार [को०] । | हो । दतिदार [को०) ।। अनकचित-वि० [म० अनुकुञ्चित] १ झुका हुग्रा । २ झुकाया अनुक्रम’--वि० [सं०] क्रमबद्ध । मिलसिलेवार । तरतीववार ।उ०हुमा । टेढा किया हुआ [को०] ।। प्रकृति पुरुप, थोपनि मीतापति, अनुक्रम कथा सुनाई।--मूर, अनुकूल-वि० [स०] [स्त्री० अनुकूला] १ मुशाफिक । २ पक्ष में १०।२८१६ । । नेवाला 1 महायक । हितकर । ३ प्रसन्न । उ०—होइ अनुक्रम’ ---सा पुं० १ क्रम । सिलसिला । नतीव। २ एक के बाद महेस मोहि पर अनुकूना —िमानस, १ । १५ । । एक होने की स्थिति या ग्रिन्या (को०)। ३ ४० ‘अनुक्रमणिका अनुकूल-सज्ञा पुं० १ वह नायक जो एक ही विवाहित स्त्री में (को०)। अनुरक्त हो । २ एक काव्यालकार जिसमें प्रतिकूल से अनुकूल अनुक्रमण—सज्ञापु० [सं०] १ क्रमबद्ध रूप में प्रागे वढना । २ पीछे वस्तु की सिद्धि दिखाई जाय । जैसे---गि लागि घर जरिभा, पीछे चनना । अनुगमन [क] । वड मुई कीन्ह । पिय के हाथ धयिलवा 'भरि मरि दीन्ह । अनुक्रमणिका–संज्ञा स्त्री॰ [ग०] १ क्रम । तरती। सि ननिला २. (शब्द०)। ३ राम के दल का एक वंदर । ४ सबके प्रिय रूची । तनिका । फिरिर त । ३ कात्यायन का एक ग्रय विष्णु । जिसमें मत्रो के ऋषि, छद, देवता और विनियोग बताए गए