पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२६४

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अनिच्छुक २°१ अनिमंत्रित अनिच्छक-वि० [स०] इच्छा न रखनेवाला । जिमै थाह न हो । अनिद्र’---वि० [ग] निद्रारहिन । बिना नीद का । जिसे नीद न अनमिनाप। निराकाक्षी । अाए । २ जागरूक । जागा हुआ। अनिजक–वि० [म०] जो अपना न हो । पराया । इमरे का [को॰] । अनिद्र-सज्ञा पु० १ नीद न आने का रोग । प्रजागर। २.निद्राःहित । अनित -वि० [हिं०] १ ० ‘अनित्य' । उ०—दार सुत विरत जाग्रत । जागा हुआ। [को०] । ३ जागरूक । तत्पर [को०] । अहे मवहि अनित तायो । पोद्दार० अभि० ग्र०, पृ० ४९३ । अनिद्राक्षा पुं० [म०] १ जागरूकता । तत्परता । २ दे० २ अनत । जिभका अन न हो । उ०—महिमा अनिन साधु 'अनिद्र' [फा०] । गुरु समुझ मन मुजान ।—कबीर मा०, मा० ४, पृ० ४२० । अनिद्रित- वि० [सं०] जो मोया हुश्रा न हो । जागा हुअा [को॰] । अनित’---वि० [१०] विना किमी के माय । अकेना । वचित [फो०] । अनिघण्ट–वि० [स०] जो रोका न जा सके । प्रतिवधरहित । अबाध । अनितभा---वि० [सं०] कातिहीन । तेजहीन [को०] । | अपराभूत [को०)। अनितभा–सज्ञा स्त्री० [सं०] एक नदी का नाम [को०] । अनिन -वि० [हिं० ] ० 'अनन्य' । उ०—(क) अनिन कथा तनि अनित्र –वि० [हिं०] दे० 'अन्यत्र' । उ०----काहे कीं भ्रमत है तू | आचरी हिरदै त्रिभुवन राइ ।—कबीर ग्र०, पृ० २६ । (ख) बावरे अनित्र जाइ ।—मुदर० ग्र०, भा० २, पृ० ८६४ ।। सतो अनिने मगति यह नाही ।-२० बानी०, पृ० १४ । अनित्य-वि० [न०] [स्त्री० प्रनित्या] [संज्ञा अनित्यत्व, अनित्यता । अनिन्नता –सज्ञा स्त्री० [हिं० अनिन्न+ता (प्रत्य०) ] दे० अन १ जो सब दिन न रहे । अध्रव । अस्थायी । चदरोजा । न्यना' । उ०---सेवहि इक अनिन्नता, कन मुक्त कव दानि । - क्षणभगुर । २ नश्वर । नाशवान् । ३ जो स्वयं कार्यरूप हो | पृ० ०, पृ० ६३ । और जिसका कोई कारण हो, अत जो एक सा न रहे। अनिप -सज्ञा पुं० [सं० अनिक] [हिं० अनी = सेना+प=स्दामो] जैसे, 'समा अनित्य है' (शब्द०)। ४ अनत्य । झठा । ५ गेनापतिं । मैनाध्यक्ष । फौजी अफसर । उ०—-मनो मधुमाधव अनिश्चित । सदेहास्पद (को०)। ६ व्याकरण में एक नियम । दोउ अनिप धीर । वर विपुल विटप बानेन वीर।-तुलसी जो परीक्षण, प्रयोग के योग्य या अनिवार्य नही होता ।। ग्र० पृ० ३४६।। वैकल्पित [a] । अनिपात-सज्ञा पुं० [सं०] पनन का न होना। अपतन । जीवन । का अनित्यकर्म—मज्ञा पुं० [स०] यदा कदा ममय समय पर किया जाने लगातार बने रहना [को०] । वाना कार्य, जैसे---विषेप उद्देश्य से किए जानेवाले यज्ञ अनिपुण ---वि० [सं०] अकुणन । श्रपट । जो प्रवीण न हो । प्राटि [को०] । अनिव-वि० [स०] १ जो बाधा न हो । अबद्ध । २ अमवद्ध । अनित्यक्रिया--सा श्री० [अ०] ६० ‘अनित्यकर्म' [को०)। ' अनर्गल । वेभितमिला [को०] । अनित्यता-सशा स्त्री० [२०] १ अनित्य अवस्या । नापायदारी। अनिबद्धप्रलाप---सज्ञा पु० [H०] अमवद्ध वा वैमिर पैर की बात अस्थिरताअधवता । २ क्षणभंगुरता । नवरता । [को०] । अनित्यत्व--सच्चा पु० [सं०] दे॰ 'अनित्यता' ।। अनिबद्धप्रलापी-वि० [H० अनिवद्धप्रलपिन्] बेमिर पैर की बात अनित्यदत्त-मज्ञा पुं० [म०] गोद लेने के पहले माता पिता के द्वारा । फरनेवाला । ऊलजलूल बात करनेवाला [को०] । दूसरे को कुछ कान के लिये दिया हुया पुत्र । वह लइका जो अनिवार्थ'–वि० [ म० ] वाधारहित । जिसे कोई बाधा न हो । गदि लिए जाने के पहले कुछ कान के लिये अपने माता पिता स्वच्छ्द [को०] । द्वारा गोद लेनेवालो को दिया जाय [को०] । अनिवाध’-मज्ञा पुं० स्वच्छता । मुक्तता [को०] । अनित्यदत्तकमा गु० [सं०] => 'अनित्यदन' [को०] । अनिभत–वि० [म०] १ जो छिपा न हो। जो एकान में न हो । अनिन्यदत्रिममा पु० [म०] २ ‘अनित्यदत्त' [को०] । २ अगुप्त । प्रकट । जाहिर । ३ धृष्ट । असको वो। बेतकल्लुक । अनित्यभाव-सज्ञा पु० [म०] परिवर्तनशी उता। क्षणभगुरता । ४ दुनमुल । अस्थिर । [को॰] । अनित्यसम--सज्ञा पुं० [म०] न्याय में जाति या अमत् उत्तर के २४ अनिभत मवि संज्ञा स्त्री॰ [ मा० अनिभूत सन्धि ] यदि कोई राजा | भेदो में से एक ।। किसी दून राजा की बहुत ही अधिक उपजाऊ भूमि को विशेष----यदि कोई वाहे कि घट का मादृश्य शब्द में हैं, इससे घट प्ररीदना चाहता हो और दूसरा राजा उन भूमि को की भाँति शब्द मी अनित्य हो गया, तो इसपर यह कहना कि देकर उसमे मधि पर ने नो ऐसी नदि को अनि नृत मधि किसी न किसी बात में घट का दृश्य नभी दम्तुओ में होगा, कहते हैं। तो क्या फिर स नो चम्नु अनिन्य होगी ? इसी प्रकार का अनिभप्ट---पि. [२०] प्रयानि । मेरो । जिमगर कोई प्रतिबंध 'उत्तर अनित्यनम कहलाता है । | न हो [को०] । अनिद-वि० [सं०] जो देखा न जा सके [को०)। अनिदान-वि० [म०] जिमका कारण ज्ञान न हो । कारण- अनिम्प-- वि० [१०] धनहीन । निन । कगात्र । रहिन [] । अनि पत्रित--वि० [३० अनिमन्त्रि] विना न्यौता दृप्रा । विना २६ बुलाया हुआ । अनामनित । अनाहूत ।