पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२६३

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२०० अनाहक्क সন্ধুি अनाहक्क)---क्रि० वि० [हिं०]३० ‘अनाहक' । उ०—अनाहक चदेल अनिदित-पि० पु० [२० प्रनिन्दिन][त्री० प्रनिन्दिता]१ अस्ति नृप, क्यो मडित महि रारे ।—पृ० रा०, पृ० ४० । बदनामी में बना हुया । २ निदए । उनमें । अनाहत'–वि० [म०] १ जिसपर आघात न हुग्रा हो । असुब्ध । २ अनिंदनीय–वि० पुं० [म० अनिन्दनीय] [ीनदनीया ती निदा अगणित । जिसका गुणन न किया गया हो । । के योग्य न हो । निदए । निरः । अनाहत-सज्ञा पुं० १ शब्दयोग में वह शब्द या नाद जो दोनो हाथो अनिद्य---वि०पुं० [स०अनिन्छ] [वि० ० श्रनिद्या] १ जो निदा के के अँगूठ से दोनों कानो की लवे बद करके ध्यान करने से योग्य न हो। निदप । २ उन्म । प्रागनीय । अन्छ । सुनाई देता है । २ हठयोग के अनुसार शरीर के भीतर के अनिद्र---वि० [स ० अनिन्द्र] : Tी पूजा या मना न करनेवाला यह चक्रों में से एक। इनका स्थान हृदय, रग लाल पीना | [] । मिश्रिन और देवता रुद्र माने गए हैं। इसके दलों की संख्या १२ ऑन--वि० [हिं०] १० ग्रन्य' । उ०—-३ द्रव्य रह्यौ माता और अक्षर ‘क' से 'ठ' तक हैं । ३ नया वस्त्र । ४ द्वितीय मिघाप । इह शहर आदि अनि गहू व !---१००,११३३९ । बार किसी वस्तु को उपनिधि या धरोहर में देना । दोबारा अनि अनी----वि० [स० अन्य + अन्य] अन्यान्ये । श्रीन प्रौर । किमी चीज का अमानत में दिया जाना । उ०-- अनि अनी भुट बंटे 5 ग्राः --- ० ०, ६११३५ ।। ग्रेनाहतनादमी पु० [१०] "० 'अनाहन' । उ०—जना तुम्हारी शनिशाई - वि० [हिं०] १० अन्याय' ।। अनाहत नाद जो वहाँ, मुनता है दाम यह भक्तिपूर्वक मत- निक -वि॰ [सं० अनक,प्रा० श्रारार]"० 'अनमः । अन्य। मस्तक ।-अनामि, पृ० १०० । । उ०—निर्मल बूंद प्रकाश की नीनी मि गिना । अनिव अनाहदवाणी--सा श्री० [म० अनाहत +वाणी] आकाशवाणी । सियाने पच गए ना निरपरी जाम -- ग २, पृ०३५/} देववाणी ।। अनिकेत-वि० [१०] ५ म्यानरहित । पिना घर है। उ०----अनारम अनाहूत शब्द- सज्ञा पुं० [म०] १ एक भीतरी गई जिसे यौगी मुनते अनिकेत अमानी ।—मानस, 31 ८६ । २ नमी । परिव्राहैं। २ ग्रोऽम की ध्वनि [को॰] । जा । ३ छानविदा । म सिर पर अनि मन चानी में अनाहार--संज्ञा पुं० [म०] भोजन का अभाव या त्याग । गुजारा करनेवाला । अनाहार’--वि० १ निराहार । ग्मिने कुछ न जाय हो। जैसे—ग्राज अनिकेतन--वि० [ म० अ-+ निकेतन ] २० भनिन' । ३० हम अनाहार ग्ह गए (शब्द॰) । २ जिनमें कुछ खाया न | गृही लोग हुम ग्रनिकेतन की सया जाने मु7 पीर ---अत्रक, जाय । जैसे, अनाहार व्रत । १० ७२ ।। अनाहारमार्गणा--संज्ञा स्त्री० [२०] जैन शास्त्रानुसार एक व्रत । अनिक्षिप्तर—मा पु०[१०]१ एक पोधिसत्व का नाम !२ नि का सा अनाहारी--वि० [म० अनाहारिन्] १ आहार न लेनेवाला। २ हुशा बौद्ध भिक्षु (को०] । उपवासे या अनशन करनेत्रा रा [को०] ।। अनिक्षिप्त सैन्य—मज्ञा पुं० [१०] तोडी या नेवा ने अजग की हुई अनाहार्य--वि० [म०] १ जो लेने या ग्रहण करने योग्य न हो। २ । मेना 1 अपमृत सैन् । जो खाने योग्य न हो [को॰] । अनिक्षु-नज्ञा पुं० [स०] जो ई न हो । ख जैमी लव घाम या नरअनाहिताग्नि--वि० [न०] जिनने विधिपूर्वक अग्न्याधान न किया हो। दुल (को०] । जो अग्निहोत्री न हो । निरग्नि । अनिगीर्ण-वि० [सं०] १ जो निग ना न गया हो । २ जो पिर न अनाहत---सज्ञा ली० [३०] १ यज्ञ का अभाव । २ अविहित यज्ञ हो । प्रयट । व्यक्न [को०] । अनियह-सा मुं० [म०] १ झनवरोध। बधन का भाव । [को०] । दद्ध या पीडा का न होना। बाद या तर्क में हार का अनाहूत--वि० [सं०] विना चुनाया हुआ । अनामगित । अनिमत्रित अस्वीकरण [को०] । । उ०—धिक। अाए तुम यो अनाहूत !-प्रपरा, पृ० २०२। २__aa १ वानरहित । वैरो । २ धनी म । वहद ! अनाह्लाद- सज्ञा पुं० [सं०] ग्रानाद या अनद का अभाव [फौ०] ।। पीडारहित । नीरोग । ४ जिसने दड़ ने पापा हो । अददिन । अनाह्लाद’--वि० अनादरहित । मजीदा [को॰] । ५ जो दड के योग्त्र न हो । प्रदः ।। अनाह्लादित--वि० [सं०] जो हपित या अनदित न हो [को॰] ।। अनिगित--वि० [सं० अन् + इङ्गित= हिलाना, काँपनी ] १ अक अनिन्छ–वि० [म०] अाकारहिन । अनिच्छ्र गो०] । पित । निश्चल । उ०—काँप रही है ज्योति, अब तो तुम इसे । अनिच्छक-वि० [म०] ० 'अनिच्छुक' [को०] । कर दो अनि गित, तव निवासस्थान में अब लौ लगे इमकी । अनिच्छा—सज्ञा स्त्री॰ [न०] वि० अनिच्छिन, अनिच्छक] १ इच्छा अशकित । क्वामि, पृ० २।अनिदिष्ट । इगित ने किया का अभाव । चाह का न होना । अरुवि । २ नं वृरि । हुआ । जिसकी ओर इशारा न हो (को०) । अनिच्छित-वि० [सं०]जिम की इच्छा न हो । अनिप्ति । अन चाही नद---वि० [हिं०] ० 'अनिद्य' । उ०--बैठी फिरि पूतनी अनू उ०--प्रमिलपित वस्तु तो दूर रहे, हाँ मिने अनिच्छित दुखद ती फिरग कैसी पीठी दै प्रवीनी दृग दृगनि मिले अनिद । खेद |--कामायनी, पृ० १६४ । २ अरुचिकर । पद्माकर ने ०, १० १०१ । अनिच्छ--वि० [सं०] दे॰ 'अनिच्छुक' (को॰] ।