पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२६०

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अंदिर १९१७ अंमलं के तट लखि कामिनी अलि पंकजहि विहाय । ताके अधरन अनापद संज्ञा स्त्री० [स०] विपत्ति या विपद । अभाव को०] । | दिमि चल्यो, रममय गूज सुनाय (शब्द०)। अनापशनाप--सज्ञा पुं० [ देश० ] १ ऊटपटांग 1 अटसट । अनादरण–स पु० [सं०] अममानपूर्ण व्यवहार को०] । | आवाये । अ डेबड । २ अमवद्ध प्रलाप । निरर्थक वकवाद । अनादरणीय–वि० [न०] [वि० ० अनादरणीया] १ अादर के अनापा--वि० [म० अ= नहीं+ हि०प] १ विना नापा हुमा अयोग्य । अमाननीय । २ तिरस्कार योग्य । निश्च । वुरा। २ अमीम । अतुल ।। अनादरित–वि० [म०] वह जिनका अपमान हुश्रा हो । अपमानित । अनापि-वि० [म०] विना मित्र के [को०] । अनादरी--वि० [सं० अनादरिन्] जो आदर युवत न हो [को०)। अभाषि-सज्ञा पुं० इद्र [को॰] । अनादि--- वि० [न०] जिलका श्रादि न हो। जो सब दिन से हो । अनाप्त--वि० [सं०] १ अप्राप्त । अलव्ध । २ अविश्वस्त । ३ असत्य । जिसके ग्राम का कोई कान या स्थान न हो । स्थान और काल ४ अकुशल । ५ अनिपुण । ग्रनाडी । ६ अनात्मीय । अवधु । में अवद्ध ।। अनाप्ति-सज्ञा स्त्री० [स] प्राप्ति अर्थात् प्राप्ति न होना [को०] । विशेष—शास्त्रकारों ने 'ईश्वर' जीव और प्रकृति' इन तीन वस्तुओं अनाप्त्य–वि० [म०] अप्राप्य [को०] । को अनादि माना है । अनाप्लुत-वि० [सं०] जो स्नात या धुला न हो [को०) । अना दिव—संज्ञा पु० [सं०] अनादि होने का भाव । नित्यता ।। अनाप्लुताग--वि० [स० आना-लुङ्ग] जिसका शरीर स्नानसे शुद्ध अनादिनिधन-वि० [स०] जिसका अादि और अत न हो किो०] । | , न हो [को०] । अनादिमान-वि० [सं० श्रादि नत् ] जिसका अादि न हो [को०] । अनावाध-वि० [सं०] वाद्य या विध्न से मुक्त [को॰] । अनादिमध्यात–वि० [म० अनादिमध्यान्त] जिसका श्रादि, मध्य और अनाविद्ध-वि० [सं० अनावद्ध] १ अनविधा । अनछेदा । विना छेद अत न हो [को०] । का । २ चोट न पाया हुआ है। अनादिष्ट-वि० [म०] विना अादेश का । अनाभ्युदयिक--वि० [स०] दुर्भाग्यपूर्ण । जो मगलमय न हो [को०] । अनादत-वि० पु० [भ] जिसका अनादर हुआ हो । अपमानित । अनाम—वि० [म० अनामन्][वि० सी० अनामा] १ विना नाम का। अनादेय-वि० [सं०] जो प्रादेय या ग्राह्य न हो [को०] । उ०—अादि अनाम ब्रटम है न्यारा।--क उ०—अादि अनाम ब्रह्म है न्यारा ।—कबीर सा०, पृ० ८१२। अनादेश---संज्ञा पुं॰ [स०] अादेश का अभाव । प्रदेश न होना [को०] ।

अप्रसिद्ध । २ अप्रख्यात । । अनादेशकर-वि० [सु० 1 जिसकी अनुमति या प्रदेश न हो वह करने- अनामय---वि० [सं०] निरामय । रोगरहित। तीरोग ।। | वाला [को०] ।

।। स्वस्थ । तदुरुस्त ) २ दोपरहित । निर्दोष । वेऐव 1 उ०-~अनाद्यत—वि०स० अनाद्यन्त]जिसका आदि तथा अत न हो। उ०-- जय भगवते अनत अनामय 1---मानस ७।३४ । अमरो के उम अनाद्यत शानदलोक में ।—युगपथ, पृ० ११५ ।। अनामय-सज्ञा पुं० नीरोगता। तदुरुस्ती। २ कुशल क्षेम । उ०-- अनाद्यत–संज्ञा पु० शिब [को०] । | गुरु जी ने आपका अनामये पूछकर यह कहा है ।----जत ना, अनाद्य–वि० [सं० अनादि] दे० 'अनादि' [को०] । अनाद्य–वि० [म० अन् +अद् > प्राद्य] जो खाने योग्य न हो । पृ० ८६ । अनामा--वि० श्री० [म०] १ विना नाम की । ३ अप्रसिद्ध । अखाद्य [को०) । अनामा--संज्ञा स्त्री कनिष्ठा और मध्यमा के बीच की उगली । अनाद्यनत–वि० [स' ० अनाद्यनन्त] जिसका श्रादि और अंत न हो [को०) । अनामिका ।। अनाद्यनत--सज्ञा पुं० [म०] शिव (को०] । अनामिका'-सज्ञा स्त्री॰ [म०] कनिष्ठा और मध्यमा के बीच की अनाचार-वि० पु० [२०] अवाररहित । निरवलव । बेसहारा । उँगली । सबसे छोटी उगली की बगल की उग भी। अनामा । अनाधि---वि० [सं०] चिता से रहित (को०] ।। अनामिका’---वि०स्त्री० [स०] विना नाम की । अप्रसिद्ध । उ०—जो अनाधृष्ट—वि० [म०] १ जो जीतने योग्य न हो। अजेय । २ जो प्रिया, प्रिया वह रही सदा ही अनामिका --अनामिका, निययित या अधीन न हो । अनिय त्रित । ३ अक्षुण्ण (को०] । | पृ० २१ ।। अनाधृष्य–वि० [म०] १० 'अनाधृष्ट' (को०] । ' अनामिल-वि० [स० अनाविल] स्वच्छ । निर्म उ०—ओम के अनाना–क्रि० स० [म० अनियन] १ लाना। बुलाना । उ०—(क) धोए अनामिल पुष्प ज्यो खि न किरण चुमे ।--गीतिका,१०९४ ।। जौ कबहू' हठि नीद अनैये, साँवरे पिय सपने में पैये । नद० अनामिष--वि० [सं०] निरामिप । मासरहित । ग्र ०, पृ० १७१ । (ख) केनि मम में मिथुन को सुखनीद अनामी--वि० [सं० अनाम+हि० ई (प्रत्य) ] अनाम मवधी । अनाऊँ ।-घनानंद, पृ० ३१४ । २ मंगाना । उ०—लक दीप उ०—शुद्ध ब्रह्म पद तहें ठहराई, तो नाम अनामी घारा है ।--- के सिला अनाई । बाँधा सरवर घाट बनाई ।—जायसी ग्र०, कवीर श॰, पृ॰ ६० । पृ० १२ । अनामी-सच्ची पुं० परमात्मा । परम् । उपरे ताके रहते अनानुपूय-सज्ञा पुं० [न०] १ अनुक्रम में न आन । अनुक्रम का | अनमी, स्वामी नि नाइ कै ।—घट०, १। ३७४। अभाव । किनी समस्त पद के विभिन्न अवयव को यिग्रहपूर्वक अनामृत-वि० [सं०] को मृत्युबरा न हो को०] । सलग करना (०] । अनीमल-सच्ची पुं० [हिं०] दे॰ 'एनामेल' ।