पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२५९

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अनाघात अनादर (१०]ीर्थरहित केमिय अनाघात--सझा पुं० [ स० ] संगीत के अंतर्गत तालविशेप । वह अनात्मज्ञ-वि० [स ०] अात्मज्ञान से रहित । अझ [को०) । वि राम जो गायन में चार मात्राओं के बाद श्राता है और क मी अनात्मधर्म--सा पु० [सं०] शारीरिक धर्म । देह का धर्म । कभी सम का काम देता है। अनात्मनीत–व० [स०] १ जो अपना न हो । २ जो काम या लाभ अनाचार-संज्ञा पुं० [सं०] १ कदाचार । भ्रष्टता । दुराचार । के लिये न हो । ३ निरम्पार्थ । म्वार्थरहित [को०] । निदित आचरण । कुपवहार । २ कुरीति । कुचाल । कुप्रथा। अनात्मप्रत्यवेक्षा––मशा झी० [म ०] बौद्ध दर्शन के अनुसार यह विचार अनाचार-वि० १ जो विशिष्ट न हो। २ जो भद्र न हो । प्र भद्र । कि अात्मा नहीं है [को०)। ३ विचित्र [को०)। अनात्मवाद---सज्ञा पुं॰ [सं०] अात्मा की स्थिति को न माननेवाला सिद्धात । जडवाद । उ०—-मैंने भी तीर्थवरों के मुख में प्रान्मर्यादिअनाचारिता--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ दुष्टता। दुराचारिता । निदित अनात्मवाद के व्याख्यान मुने हैं ।-- इद्र०, पृ० १२५ । | आचरण । २ कुरीति । कुचाल । अनात्मवाद-वि० [न० अमयमी [को०] । श्रानचारी--वि० [सं० अनाचारिन्] [स्त्री० अनाचारिणी] अचारहीन । भ्रष्ट । पतित । कुचाली । दुराचारी । बुरे ग्राचरणवाला ।। अनात्मवेदी--वि० [सं० अनात्मयेदिन] जो आत्मविद् न हो । आत्मअनाज-सज्ञा पुं० [म० अन्नाद्य, प्रा० अन्नजुअनाज] अन्न । घान्य ।। ज्ञान से रहित (को०] । नाज । दाना । गल्ली । अनात्मसपन्न–वि० [सं० अनात्मसम्पन[ मूर्ख । गुणशून्य [को०] 1 अनाज्ञप्त--वि० [स०] जिसकी आज्ञा न दी गई हो [को॰] । अनात्म्य'–वि० [म०] अशरीरी 1 अशारीरिक को०)। ... जानि1 जनक की छात्रा नो अनात्म्य-सज्ञा पु० १ अपनो या परिवारवालों के लिये म्नेहरहित उसे करनेवाला [को०] । व्यक्ति । २ शरीर सववी गर्व या मद [को॰] । अनाज्ञाकारिता-संज्ञा स्त्री० [स०] आज्ञा न मानना । प्रदेश पर ने अनारयतिक-वि० [सं०] जो नित्य न हो । २ जो अतिम न हो। चलना। ३ पुन प्रवर्तनशील [को०] । अनाज्ञाकारी--वि० [सं० अनाज्ञाकारिन् ] [ अनाज्ञाकारिणी ] जो अनाथ--वि० [म० [ [ली० अनाया] १ नायहीन । प्रभुहीन । विना | प्रज्ञा ने भने । जो आदेश पर न चले । बेकहा ।। मालिक का । ३०---नाथ तू अनाथ को अनाय कौन मो सो ।अनाज्ञात---वि० [सं०] १ अज्ञात । २ । पूर्व ज्ञात से वढा हुअा [को०] । तुनमी, ग्र० पृ० ५०० 1२ जिसका कोई पालन पोषण करनेवाला अनाडी–वि० पु० [स० अनार्य = अपठित, अशिक्षित प्रा० अनारिय न हो । विना माँ बाप का । लावारिस ! जैसे-'अनाथ अथवा स ० अज्ञानी प्रा० अण्णाणी] १ नासमझ । नादान । वालो की रक्षा के लिये उन्होने दान दिया (शब्द) । ३ गॅवार। अनजान । उ०—अनाडी के हाथ पडा मोती की असहाय । अशरण । जिसे कोई सहारा नै हो । ४ दीन । सी कपूरमजी की दशा है।--भारतेंदु ग्र, भा० १, पृ० ३९८ ।। दुखी । मुहताज ।, २ जो निपृण न हो । अकुशल । अदक्ष । जैसे--यह किसी यौ०----अनाथाय । अनाडी कारीगर को मत देना ( शब्द० ) । अनायसभा-- -मज्ञा स्त्री॰ [सं०] निर्धनगृह [को०)। अनाढ्य---वि० [वि० स्त्री० अनाढ्या] असपन्न । द्रव्यहीन । दरिद्र । अनाथानसारी--वि० [स० अनाथानुसारिम्] [स्त्री० अनायानुसारिण] कगाल । गरीब ।। | सहायतार्थ अनाथो का अनुसरण या पीछा करनेवाला। अनातत–वि० [स०] १ जो फैला हुआ न हो । २ जो खीचा दीनपालक । गरीब को पालनेवाला । उ०—अनार्थ सुन्यौ मैं या तानी हुमा न हो [को०] । अनातप-सज्ञा पु० धूप का अभाव । छाया । अनाथानुसारी। वसे चित्त दडी जटी मुडधारी ।-केशव अनावप–वि० १ प्रतिपरहित । जहाँ घूप न हो । २. ठडा । शीतल । (शब्द॰) । अनातम(७)---वि० [सं० अनात्म] दे॰ 'अनात्म' । उ०--सुनि शिष्य अनाथालयसा पु० [सं०] वह स्थान जहाँ दीन दुःखियो और अस| यह मत साखहि कौ जु अनतम त म भिन्न करे --सुदर० | हाय का पालन हो । मुहताजखाना। लगर खाना । २ लाचाम०, भा० १ । पृ० ५० । रिस बच्चो की रक्षा का स्थान ! यतीमखाना। अनाथाश्रम । अनातुर–वि० [सं०] [स्त्री॰ अनातुरा] १ जो आतुर या उत्कठित अनाथाश्रम----संज्ञा पुं० [सं० मनाय+मार] वह स्थान जहां अनाथ | न हो । २ उदासीन । ३ अक्लात' । ४ अविचलित ।। रखे जायें । धीर । ५ स्वस्य । रोगरहित । निरोग । । अनाद---संज्ञा पुं० [सं०] १: ध्वनियों में नाद अश का अभाव । २ वे अनात्म--वि० [स० अनारमन्] 'अत्मारहित । जड । । अघोष ध्वनियां जिनमे नादाश नही पाया जाता [को०] । अनात्म-सज्ञा पुं० श्रात्मा को विरोधी पदार्थ । अचित । पचभूत । अनाददान---वि० [स०] न लेनेवाला [को॰) । अनात्मक–वि० [सं०] १. जो यथार्थं न हो २ क्षणिक । ३. वौद्ध मत अनादर--सद्मा पु० [सं०] १ अदिर का अभाव । निरादर 1 अवज्ञा से जगत् यो संसार का विशेषण [को०] । २ तिरस्कार । अपमान । अप्रतिष्ठा । बेइज्जती । ३. एक अनात्मकदुःख-सज्ञा पुं॰ [सं०]'१ अज्ञानजनित दु ख । सासारिक | (* काव्यालकार। आधिव्याधि । 'भय । वाधा । २ जैन शास्त्रानुसार इस लोक ।। विशेष----इसमें प्राप्त वस्तु के तुल्य दूसरी मप्राप्त वस्तु का ६० और परलोक दोनो के दुःख । द्वारा प्राप्त वस्तु का अनादर सूचित किया जाये। तेसर