पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२५८

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नहद अनागसे अनहद-नज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अनंहदनाद' । उ---द्वार ने धेरू पवन अनाकनी--सम्रा स्त्री० [हिं० दे० 'अॅनाकानी' । उ०—(क) नीकी न रोक नदि अनहद उरझाव --कवीर श०, पृ० ४६ ।। दई अनाकनी, फीकी परी गुहार । तज्यौ मन तारन विरद, अनहद’- वि० [हिं० अन = अभान+अ० हद: सीवा] मीमा हित । वारक बारनु तारि-विहारी र०, दो० ११ । (ख) कोनी असीम । उ०----ऊधो राखियै वह वात। कहन हौ अनगदी | अनाकनी ौ मुख' मोरि सुजोरि भुजा, नटू भेटत ही वन्यौ ।-- अनहद, मुनत ही चचि जात ।—मूर०, १०1३६०२ ।। देव (शब्द॰) । अनहद नाद-मज्ञा पुं० [सं० अनाहत +नाद) योग का एक माधन । अनाकानी सझा 'बी० [सं० अनाकर्णन ] सुनी अनुसुनी करना । वह नाद या शब्द जो दोनों हाथो के अँगूठो से दोनो काना की। जान बूझकर बहलाना । टालमटोल । बहटियाना । ३०-~लवे वैद करके ध्यान करने से अपने ही भीतर सुनाई देता है। केती अनाकानी के जैभानी अॅगिरानी पै न अतर की पीर उ००-हृदय बलम ते जोति विराजै । अनहदनाद निरतर बहराए बहरानी है --भिखरी० ग्र०, भा० १ पृ०, १४६ । वाजें । —सूर०, १०४०६४ । अनाकार-वि० [सं०] १ निराकार । काररहित । २ परमात्मा अनहद्दी -वि० [हिं०] दे॰ 'अनहद' । उ०(क) कृत व्यक्त रक्त का एक विशेपण (को०) । स्त्रोतस्विनी जत्र तत्र अनहद्द भुस ।-भिखारी ग्र०, मा० २, अनाकाल--सज्ञा पुं० [सं०] अकाल । दुर्भिक्ष [को०] । पृ० १८२ । । अनाकालभूत सझा पु० [सं०] अकाल पडने पर दास कर्म करनेवाला अनहद्द -सा पुं० [हिं०] दे० 'अनहदनाद' उ०—-सहस और व्यक्ति [को॰] । दृादहो रह है मग मे करत किलोल अनहद्द बजाई।-कवीर अनाक्रात--वि० [सं० अनाकान्त[ [स्त्री॰ अनाक्रान्तता] जो अक्रात में °, पृ० ५७६ ।' न हो । अपीडित। अरक्षित । अनहार -वि० [हिं०अन+हार ( प्रत्य॰)] अाननेवाला। अनाक्रातता--सज्ञा पुं० [सं० अनाकान्तता] रक्षा । अपीडा । अाक्रातता | ले शानवाना । उ०—-खेलत रहनौं बावा चौबरिया प्राइ गए। को अभाव । अनहार हो--धरम०, ३४।। अनाखर ----वि० [स० अनक्षर] जो छील छालकर दुरुस्त न किया अनहित--सज्ञा पुं० [हिं० अन +हित ] १ अहित । अपकार । गयो हो । वेडौल । वेढगा ।। बुराई। हानि । अमगल । उ०—अनहित तोर प्रिया केहि | अनागत'--वि० [सं०] १ न आया हुआ । अनुपस्थित । अविद्यमान । कीन्हा । केहि दुइ सिर केहि जम चह लीन्हा ।--तुलसी अप्राप्त । २ आगे आनेवाला । भावी। हो रहार । ३ अपरिचित । (शब्द०) 1 २ अहितचिंतक ! अपकारी। शत्रु । उ॰—बदउ अज्ञात । वेजाना हुआ। । ४ अकस्मार्। अचानक । सहमा । मत ममान चित, हिने अनहित 'नहि कोउ ।--तुलसी (शब्द॰) । एकाएक । उ०—(क) ) सुने हैं'श्याम मधुपुरी जात । सकुचनि अनति-वि० [हि अन+हितू 'मित्र'] अहितचिंतक । अमिन ।। कहि न सकति काहू सो गुप्त हृदय की बात । सकित वचन अवघु । शत्रु । अपकारी । बुराई सोचने या करनेवाला । अनागत कोऊ कहि जो गई अधात ।--सूर० ( शब्द०)। ५ अनहुश्रा--वि० [हिं०+हुआ ] अघटित । जो न हुअा हो । उ०-- अनादि । अजन्मा, उ०—नित्य अखड अनूप अनागत अविगत अनहुया उसे नहीं किया जा मकता --सुखदा, पृ० ११३ । अनघ अनत । जाको आदि कोऊ नाहिं जानत कोउ न पावत अनहूवा -वि० [हिं० अन + भूत प्रा० हूव, हू] अनहोनी ।। अत ।- सुर० ( शब्द०)। अलौकिक । उ०—अनहूवे की बात कछू प्रकट भई सी जान - । भूपण ग्र०, पृ० ५८ । । यो०--अनागत विधाता ।। अनहोता--वि० हि० अन+होना] [ मी अनहोतो ] १ जिसे कुछ ६ अपूर्व । अद्भुत । उ---इत रुचि दृष्टि मनोज महासुख ,उत न हो । दरिद्र । गरीव । निर्धन । उ०—'हे सग्बी तेरे इस अग सो मागुन अमित अनागत ।--सूर०, १०।२१२३ ।। न को अच्छे गहने कपडे चाहिए थे, ये अाश्रम के फूल पत्त | अनागत–समा पु०' संगीत के अंतर्गत ताल का एक भेद । उ०-- तो अनहोती को हैं ।-शकुंतला, पृ० ६६ । २. अनहोना । सुर सति तान 'बधान अमित अति । सप्त अतीत अनागत सूर सात तान अलौकिक 1 अचभे का । उ०--पलुही मैं होती अनहोती करतु अावत ।—सूर०, १०।६४८ । है ।—मुदर० में, भा॰ २, पृ० ४४३ । अनागतविधाता-संज्ञा पुं० [सं०] आनेवाली अापत्ति के लक्षण को अनहोनी--वि० सी० [हिं० अन+होन, 1 न होनेवाली । अलौकिक । जानकर उसके निवारण का पहले ही से उपाय करनेवाला “असभव । अनहोती। अचभे को ।। व्यक्ति । अग्नसोची या दूरदेश अदमी ।। अनहोनी-सशास्त्री० असमव बात । अलौकिक घटना । ३०-- अनागतातेवा--सल्ला स्त्री॰ [ सं० 1 कुमारी। गोरी । वालिक। अनहोनी कहू भई कन्हैया देखी सुनी न बात । यी तौ अहि कन्या रजोधभणी न हुई हो । अजातरजस्क्ला । ।। खिलौना सब फी खान कहत तिहि तात -सूर०, १०।१८६ अनामसज्ञा पुं॰ [सं०] आगमन का अभाव । न अाना । उ०भनाई पठाई---सज्ञा स्त्री० [सं०/निय + हि० ई (प्रत्य० } +सं० सोचे अनागम कारन कुत को मोच उसासंनि असई मोच ।- प्रस्था) पाहि० ई ( प्रत्य० ) ] विवाह हो जाने पर दुल- . पद्माकर ग्र ०५, पृ० १२१ । हिन के तीन बार ससुराल से वाप के घर आने जाने के पीछे अनार --वि० [सं० अगस्] पापरहित । निर्दोष । निर्मल । इ०० अरवर आने जाने, फो अनाई पठाई कहते हैं। सुराभक्त वह मुक्त ऋनागस ।----मधुज्वाल, पृ० १२ ।