पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२५७

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अर्नस्थायी १६४ अनही अनवस्थायी--दि० म० अनवस्थायिन् ] क्षणस्थायी (को०] । अनसनमाना --वि० [हिं० अन + सनमान] असमानित । उ०--- अनवन्थिन----वि० [ नं०] १ अस्थिर । अधीर । चचल । अशात । कैइक रहे ताहि अरमाने, अक्रूरादिक अनसनमाने ।-नद०, क्षुब्ध । २ बेठिकाना । वेसहारा । निराधार । निरवलब । ग्र०, पृ० २२४ ।। अनवस्थितचित्त--संज्ञा पुं० [सं०] अस्थिर चित्त या बुद्धिवाना [को॰] । अनसमझ--वि० [हिं० अने + समझ ] नासमझ । उ०---तू इतना अनअननस्थिति--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ अस्थिरता । चचनता । अधीरता ।। समझ क्यो है प्रमोद |—स्योग०, पृ० २० ।। अनिश्चितता । २ अंवलवशून्यता । आधारहीनता । ३ योग- अनसमझा -वि० [हिं० अन + समझ ] •१ जिससे न समझा हो । शास्त्र के अनुसार समाधि प्राप्त हो जाने पर भी चिंता का नाममझ । उ०—समुझे का घर । श्रौर है अनसमझे का स्थिर न होना। और ।-कवीर (शब्द॰) । २ अज्ञात । विना समझा हुआ । अनवहित---वि० [सं० ] असावधान । वेखवर । वेपरवाह । अनसमुझा)---वि० [हिं० ] दे॰ 'अनसमझा' । उ०—अनम मुझे अनवह्वर-वि० [नं०] जो टेढा न हो । सीधा। ऋजु [को०] । | अनुसोचनो अवसि समुझिये अपु-स०' सर {क, पृ० ५२ । अनवाँसना--क्रि० स० [ स्० नव + हि० बासन [ नए 'उरनन को अनसहत--वि० [हिं० अन+सहना ] असह्य । अमहनीय । जो पहले पहल काम में लाना। सहा न जाये । उ०-गाज सो परति अनसहत विपच्छिन पै अनवाँसा--सज्ञा पुं० [सं० * अन्नकाडाश> प्रा० * अन आ अश> मत्त गजराजन के घटा गरजत हीः--चरण (शब्द०)। अनवा अस अथवा स० अण्वश ] १ कटी हुई फसन का एक वडा अनसाना--#ि० अ० [हिं०] दे॰ 'अनखाना' ।। मुट्ठा या पूना । मः। २ एक अनवासी भूमि में उत्पन्न अन्न । अनसुनी--वि० [ हि० अन + सुनना ] अश्रुत । वेसुनी । विना । अनवाँसी–सज्ञा स्त्री॰ [ स० अणु = छोटा + वश> बाँसा=नाप ] एक सुनी हुई । विस्वे का दवाँ भाग । विस्वासी का बीसवाँ हिस्सी । मु०--अनसुनी करना = जानबूझ कर सुनी हुई बात को वेतुन अनवाद —सज्ञी पुं० [ स० अन्= बुरा+बाद = वचन ] बुरा करना या टालना । आनाकानी करना । वहटियाना । वचन । कट भाषण । कुवोल । उ०—-*जरी ऊजरी वाल अनसूय–वि० [सं०] असूया रहित । पराए गुग्ण मे दोष न देखनेवहेवा सो मेवा के मोल बढावति झूठे 1, रूप की साठि के * वाला । अछिद्रान्वेषी ।। तीनति धाटि बदै अनवाद ददै फन जूठे 1--देव (शब्द०)। अनसूयक-वि० [सं०] दे० 'अनसूय' [को॰] । अनवाप्त--वि० [सं०] न पाया हुा । अप्राप्त । अलव्ध । अनसूया-राशा स्त्री० [सं०] १' पराए गुण मे दोष न देखना । नुक्ताअनवाप्ति-भज्ञा स्त्री॰ [सं०] अप्राप्ति । अनुपलब्धि । न पाना । चीनी न करना । २ अत्रि मुनि की स्त्री । अनवय---वि० [सं०] अवधि । निवघ्न [को॰] । अनसूयु-वि० [सं०] ३० ‘अनसूय' [को०] । अनबेक्ष-वि० [ भ०] १ लापरवाह । २ उदासीन [को०] । अनसूरि--संज्ञा पुं॰ [स०] बुद्धिमान व्यक्ति । विद्वान् व्यक्ति की०] । अनवेक्षक--वि० [सं०] १० 'अनवेक्ष' [को०] 1 अनसोची--वि० [हिं० अन+सोची ]विना सोची हुई । उ०-- अनवेक्षण---ज्ञा पुं० [सं०] १ अमाबधानना । २ निरखने या | प्रियतम अनसोची ध्यान में भी ने अईि।---प्रिय प्र०, पृ० ७७ । निरीक्षण का अभाव । ३ उदासीनता [को॰) । अनस्त--वि० [सं०] जो अस्त न हो। अस्त न होनेवाला । उ०---मनस्त अनवेक्षा-ज्ञा स्त्री० [ स० ] दे० अनवेक्षण' [को०] । अस्त वंगम दुरुस्त रस्त छोडही ।---पद्माकर ग्रे०, पृ० २०६। अनशन--सज्ञा पुं० [ म० ] १ उपवास । अन्नत्याग । निराहार व्रत । अनेस्तमित--वि० [सं०] १ जो अस्त न हुआ हो । २ जिसका पता २ जैन शास्त्रानुसार मोक्षप्राप्ति के लिये मरने के कुछ दिन | न हो [को०] । पहले ही अन्न जल का सर्वया त्याग । ३ राजनीतिक दवाव अनस्तित्व-वि० पुं० [सं०] अविद्यमाना। 'सत्ता का अभाव । ३० डानने के लिये अन्न जल का त्याग करना । धू धू करता नाच रही थी अनस्तित्व का ताडव नृत्य ।--कामअनश्वर--- १० [सं०] नष्ट न होनेवाला । अमिट । अटल । स्थिर । यनी, पृ० २० ।। कायम रहनेवाला । अनस्थ---वि० [भ] दे० 'अन स्थि' [को०] । अननवडी--अज्ञा दी० [हिं० ] दे० 'अन मखी' । उ०—-बालभोग अनस्थक----वि० [सं० [ दे० 'अनस्यि' [को०] ।, "" की महाप्रसाद अनमखडी तथा दूध की (सामग्री) अागे अनस्थि----वि० [स०] अस्थिहीन । विना हुड्डी का [को०] । घरी ।—दो मी वावन०, भा० १ पृ० ८ । अनस्थिक–वि० [म०] १० 'अनस्थि’ [को॰] । । अनसवरी--सज्ञा स्त्री० [हि अन = अन्न + सखरी = सस्कृत निखरी । अनह---संज्ञा पुं० [ म० अनन् ] १. दिन का अभाव । २ में पक्की रसोई । घी में पका हुआ भोजन । दुरी दिन [को॰] । अनसत्त-वि० [हिं० अन+सत्त ] असत्य । झूठ । उ०--घर जाऊँ अनहक्क(५)---वि० [हिं० अन+अ० हक] विना हेके या मत्य तु भोवत हैं, फिर जाउँ ती नद पै खात व दधि प्यारे । ईश्वर का। उ०---हरिया एकै हक्क विन सत्र दिन जाहि अनअपने अन लत्त किधी सजनी घर बाहिर होत वडे धेरबारे । हक्क ।—राम० धर्म०, पृ०, ६६ । केशव शब्द०)। . अनड)---बि० हि० अन+स० घट] १ विचित्र । २ विक? 1 अनगन'--'मज्ञा पु० [हिं० ]:०‘अनशन' ( उ०--उसके fठये हमको कठिन । उ०—-भीबा ब्रह्म मरून प्रगट पर अन हुई बइ। सामु अनमन करना होगा।---मैला०, पृ० १६ । मिलना |---भीखा० वानी, पृ० ७० !