पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२५४

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अनर्गल १६१ अनल अनर्गल--वि० [न०] १ प्रतिबंधशून्य । बेरोक । वेरुकावट। बेधडक ! अनर्थत्व-मज्ञा पुं० [सं०] १ व्यर्थता । ३ अर्थशून्यता [को० । २ विचारशून्य । व्यर्थ । अडबड। ३ नगातार । उ०—वहै अनर्थदर्शी-वि० [ म० अनर्थदशन् ] [ जी० अनर्थदशनी ] अनर्य अनर्गल अश्रुधार यह ज्यो पावन का मेह --एकात, पृ० ४। । की ओर दृष्टि रखनेवाला । बुराई मोचने या चाहनेवाला। अनलप्रलाप- संज्ञा पुं० [म० अनर्गल +7लाप] अब बोलना या | हित पर ध्यान न रखनेवाला ।। बकना को०] । | अनर्थनाशी--संज्ञा पुं० [सं० अनर्थनाशिन्] शिव [को॰] । अनर्ध–वि० [म०1१ मा । म तमः।। २ अल्प मल्य अनर्थनिरनुबंध-संज्ञा पुं० [म० अनर्थनिरन्बन्ध] अर्थ के भेदों में से | का। कम कीमत । मम्ता । | एक । किमी हीन गषितवाले राजा को उभाटकर तथा लडने के यौ॰—अनर्घराघम् ।। लिये प्रोत्साहित कार स्वय पृथक् हो जाना । अनघंक्रय—संज्ञा पु० [म०] बाजार की कीमत में अधिक या कम अनर्थबुद्धि-वि० [सं०] जिसकी बुद्धि व्यर्थ या गई बीती हो (को०] 1 कीमत पर खरीदना । अनर्थभाव--वि० [सं०] दुष्ट प्रकृति । बुरे स्वभाववाला [को०] । अनर्घराघव-सज्ञा पुं० [म०] मुरारि कृत का सस्कृत नाटक [को०] । अनर्थ लुप्त-वि० [ ० ] निम्सार विपयो से सुरक्षित या मूवत अनर्वविक्र—संज्ञा पुं० [म०] बाजार भाव से अधिक या कम दाम (को०] । पर बेचना ।। अनर्थसशय-सज्ञा पुं० [म०] १ रोमा कार्य जिसमे भारी अनिष्ट की विशप-चाणक्य ने इसे अपराध मे १००० पण दड लिखा है। शक हो । २ मपति जी सकेट या सदेह में मुक्त हो [को॰] । अन्घ्यं–वि० [मृ०] १ अपूज्य । पूजा के अयोग्य । २ जिसका मृदय अनर्थसंशयापद-सा पु० [सं०] शत्रुग्रो के नाय मित्रों की लड़ाई न लगा सके। बहुमूल्य | अमूल्य । ३ कम मूल्य का (को०)। | का अवसर । अनजित--वि० [म०] १ अजिन या प्राप्त न किया है । न माया अनर्थसिद्धि-नशा रस्त्री० [मं०] चन मित्र या अद्र ( वह मित्र जो हुआ। २ अप्रान्न (को०) । शत्रु या विजिगीषु के ग्राश्रय में हो ) का मेल या सधि । अनजित आय- सज्ञा स्त्री॰ [सं०] वह आय या लाभ जो वस्तु के अनर्थानर्थानवव--सा पु० [ ६० अनर्थानर्यानुवन्ध ] किसी वल एकाएक महँगे हो जाने पर उसको उत्पन्न करनेवाले या बेचने जानी राजा को युद्ध के लिये उभारकर म्वय अलग हो जाना वाले को हो जाय अर्थात् जिमकी भावना पहले न रही हो । [को॰] । अनर्थ-सज्ञा पुं० [न०] १ विरुद्ध प्रर्थ । अयुमन अर्थ । उनटा मतनव अनर्थानुबव-संज्ञा पुं० [सं० अर्थानुवन्य ] शत्रु का इस प्रकार उ०—उसने अर्थ का अनर्थ किया है (जब्द०)। २ कार्य की | नाश न होना कि अनर्थ की ग्राम का मिट जाय । हानि । विगाड । नुकसान । उपद्रव । उत्पात खरानी। अनपद-संज्ञा पुं० [स०] चारो ओर मे शत्रु का भय ।। बुराई । आपद् । विपद् । अनिष्ट । गजव । उ०—(क) अनरथ अनर्थार्थसशय-सज्ञा पुं० [सं०] ऐसी स्थिति जिसमे एक ओर तो अर्थ अवध अरभेउ जब ते ।—तुजसी (शब्द॰) । (ख) में मठ मब प्राप्ति की संभावना हो और दूसरी शोर अनर्थ की शाशका । अनरथ कर हेतु-तुनसी (शब्द॰) । ३ वह धन जो धर्म से अनर्थाथनुवघ–संज्ञा पुं० [ म० अर्थानुबन्ध 1 अपने लान के प्राप्त किया जाय । ४ भय की प्राप्ति ।। लिये शत्रु या पडोसी राजा को धन और सेना द्वारा सहायता अनर्थ?--वि० १ व्यर्थ । निकम्मा। २ अभागः। भाग्यविहीन । ३ पहुंचाना [को०] ।। खराव । त्रुटिपूर्ण । ४ तुच्छ । गरीव । ५ भिन्न या विपरीत अनर्थ्य-दि० [म०] अनर्यक [को०) । अर्थवाला । अर्यविहीन । निरर्थक [को॰] । अनर्थअनर्थानुवध-सज्ञा पु० [स० अनर्थ नर्थानुबन्ध] किमी शक्तिशाली । अनर्ह-वि० [सं०] अयोग्य । अनधिकारी । अपात्र । राजा को लड़ने के लिये उभाडकर आप अलग हो जाना। यह अनलकृत--वि० [न० अन् + अलङ्ग त] अकारविहीन । उ०— अाकर्षित कर रहा विश्व को अननन भी अमल कमन्द है, अर्थ के भेदों में से है। मदरता का रूप मरस है ।-नागरिका, पृ० ७६ । अनर्थअर्थानुवध–सच्चा पु० [न० अनर्थअर्थानुवध] अपने लाभ के लिये अनलफरिप्लु-वि० [ म० अन् +अलङ्करिष्णु ] १ जो अनकृत न शत्रु या पड़ोनी को धन तथा मैन्य (कोशदड) द्वारा सहायता । पहुचना । हो । २ अल् कार की इच्छा न रखनेवाला [को०] । अनर्थक–वि० [ म० ] १ निरर्थक। अर्थ रहिन । जिसका कुछ अनन-मज्ञा पुं० [म०] १ अग्नि । ग्राम । २ अग्नि के अधिग्ठाता। अभिप्राय या अर्थ न हो । २ व्यर्थ । ये मतलव । वैफायदा । देव (को०)। ३ पाचनशयित (को०)। ४ पिन (फो०)। ५ निष्प्रयोजन । वायु (को०)। ६ अप्टनगुग्री में से पचम वमु (को०)। ७ एक अनर्थंकर-वि० [सं०] [वि० बी० अनर्थकारी] १ बेकार काम करने पितृदेव (को०) । म परमेश्वर (को०)। ९ जीव (को०) । १० वान्ना । २ अर्थ कर या न्नाभदायक न हो [को॰] । विष्णु (को०) । ११ यामुदेव (को०) । १२ एक वानर (को॰) । अनर्थकारी-वि० [ न० अनर्थकारिन् ] [ श्री० अर्थपरिणी ] १ १३ एक मुनि (को०)। १४ कृनिका नक्षत्र (को०)। १५ विन्द्ध अर्थ करनेवाला । उनटा मत नवे निकालनेवाला । ३ पचागर मवत्मर (को०)। १९ र इर्ण या अक्षर (को०)। अनिष्टकारी । हानिकारी । उपद्रवी। उत्पानी । नुकसान १७ तीन की सच्चा। १८ माली नामक धन का पुत्र और पहुचानेवाला। ३ व्यर्थ काम करनेवाला। विभीषण का मनी । १६. चीता । चिनक । २० भिन्नाव।