पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२४८

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अनन्यमनस्क १८५ अनपोकर्म अनन्यमनस्क---वि० [सं०] जो अन्यमनस्क या अन्यनिष्ठ न हो [को०]। अनपकारक-वि० [म०]१ जो हानिकारक न हो । २ निर्दीप यो०] । अनन्यमना--वि० [सं० अनन्यमनस् ] १ एकाग्रचित्त । २ अनपकारी--वि० [सं० अनपारिन्] [वी० अनपयारिणी] अपार एकनिष्ठ [को०] । यो हानि न करनेवाला [को०] । अनन्यभानस-वि० [सं०] १ एकाग्रचित्त । २ एकनिष्ठ [को०] । अनपकृत-वि० [सं०] जिसका अहित न हुआ हो [को०] । अनन्ययोग-वि० [म०] जिमका किसी अन्य का योग या माय न । अनपकृत-मज्ञा पुं॰ दोष का अभाव (को०] । हो (को०] । अनपक्रम---मज्ञा पुं० [सं०] न जाना या न हुटना (को०] । अनन्ययोग-क्रि० वि० किसी अन्य के साथ या बाद में न आने अनपक्राम--- पु० [सं०] १. पीछे न हटना । २ पटमुर न याना [को०] ।। होना को०] । अनन्यविपय–वि० [ म० ] एकमात्र विपय या सदर्भ से संबध अनपक्रमिक--वि० [सं०] पीछे न हटनेवाला (को॰) । |ग्रनेवाला [को॰] । अनपक्रिया-सज्ञा ग्री० [म०] दे॰ 'अनपकरण' कौ०] । अनन्यविपयात्मा--वि० सं० अनन्यविपयात्मन्] एक विषय पर स्थिर अनपत्र--रज्ञा पुं॰ [हिं० अन (प्रत्य०)+पच] अजीर्ण । बदहजमी । हुनेवाला [को॰] । अनपच्युत-वि० [सं०] १ विचलित न होनेवाला । डावडाल न अनन्यवृत्ति-वि० [सं०] १ अन्यवृत्ति न रग्नेवाला । एकाग्र ।। | होनेवाला । २ विश्वासपात्र । विश्वगनीय फौe] । दत्तचित्त । २ जिगही दूसरी वृत्ति या जीविका न हो । ३ । अनपढ़-वि० [हिं० अन= नहीं+ पद] बेपढ़ा। अगठित । मृर्य । समान वृनि या स्वभावान्ना [को०] । निरक्षर ।। अनन्यसाधारण--वि० [सं०] अन्य मे न मिलनेवाला । असा- अनपत्य--वि० [सं०] [वी० अनपत्या] नि मतान् । नापन्द । घाग्री क्रिो०] । अनपत्यक---वि० [सं०] दे० 'अनपत्य' ।। अनन्यसामान्य--वि० [सं०] जो शन्य सामान्य या माधारण जनो से अनपत्यता--मज्ञा स्त्री० [स०] निम्मतान होना (को०] । अलग हो । अमाधार [को॰] । अनपत्रप-वि० [म०] निर्लज्ज । वेश में को]। अनन्यहृन--वि० [सं०] जो अन्य द्वारा हर न किया गया हो। अनपदेश--सी पु० [स०] वह नर्क जो ग्राह्य न हो। अग्राह्य मुरक्षित [को०] ।। तर्क को । अनन्याविकार--मज्ञा पुं॰ [स०] वह पदार्थ जिसके देखने या बनानेका अनपधः--वि० [सं०] पराजित या विजित न करने योग्य (को०]। किमी एक व्यक्ति या कपनी को ही अधिकार हो । पेटेंट। अनपन्न श-सरा पु० [ १० ] १ जो अपत्र में न हो। २. शुद्ध इजा। शब्द को०] ।। अनन्या--वि० [सं०] जो अन्य अर्थ या विपेय के अंतर्गन न हो। अनपर-वि० [सं०] १ अपर या अन्य से रहित । २. जिसका कोई | जो गौण न हो । मुख्य या प्राधिकारिक [को॰] । अनुयायी न हो । ३ अकेला । एकमात्र [को०] । अनन्याश्रित-वि० [सं०] १ जो अन्य का आश्रित या अधीन न हो। अनुपरम पु० ब्रह्म (को०] । २ म्वाधीन । स्वतत्र [को०] । अनपराद्ध-वि० [सं०] अपराधगून्य (को०] । अनन्याश्रित-सा पुं० वह गपनि जिमपर ऋण न हो वो। अनपराघ--वि० [२०] अपराधरहित । निर्दोष । बेकसूर । अनन्वय-सज्ञा पु० [सं०] १ अन्वय या रावध का अभाव । २ काप । अनपराधी-वि० [स० अनपराधिन्] [पी० अनपराघिनी] निरपराध । में वह अल कार जिसमें एक ही वस्तु उपभान और उपमेय रूप निर्दोष । बैंकसूर ।। में कहीं जाय । जैसे--मेरे मुख की जोड को तेरो ही मुख । अनपसर-वि० [सं०] १ जिसमें निकलने का मार्ग न हो । २ जो ग्राहि (शब्द०) ।। न्याय न हो (को०] । विशेप--केशवदास ने इसी को अतिशयोपमा लिया है। अनपसरण---राज्ञा पुं० [९] निकलने के मार्ग का अभाप (फो०) । अनन्वित--वि० [२०] १ अगवद्ध । पृय । विलग । २ अध्यः ।। अनपाकरण-सज्ञा पुं० [सं०] १ घनन याःकार पूरा न करना। २ अयुक्त । ण या मजदूरी न चुकता करना [को०] । अनन्वै-—संज्ञा पुं० [सं० अनन्वय ] “अनन्वय"। उ०—। अनपाकरणविबाद-ज्ञा पुं० [रा०] १ गर । न करने का फरत उपभेय को उपमेये उपमान, तह अनन्य कहत है भूपन । मुकदमा या अभियोग । २ शृण या मजदूरी न देने का सकल मुजान ।-भूपेन अ०, पृ० १३ ।। अभियोग [को०] । अनप–वि० [२०] जनहीन । पिना जल का [को॰] । अनाकर्म–सरा पुं० [म०] प्रतिज्ञा के काम न करना । फरार अनपकरण--सा पुं० [ सं०] १ हानि करना । ३ कृपया न मुताबिक तनखाह या मजदूरी न देना । जैसे-मजदूरी न दना, | नाना [को॰] । | दी हुई वन्नु नौटा लेना ।। अनपकर्म-ज्ञा पुं० [सं० अनपयर्मन्] २० ‘अनपरण' [को०] ।। विशेष-मुनियो नदी कौटियो अर्यास्त्र में इन प्रयोग : अनपकार-या पुं० [सं०] अपगार या हानि का प्राव [को०)। अर्थ मे है । अनपा में नयी झगरा दो प्रगर हो । एक २४