पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२४७

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अनन्यभाव अनध्यास विशेष—मनु के अनुसार अमावस्या, अष्टमी, चतुर्दशी और अनन्य-वि० [१०] [ली० अनन्या] अन्य से सवध न रखनेवाला । पूर्णिमा ये चार दिन 'अनध्याय' के हैं। इनके अतिरिक्त प्रति एकनिष्ठ । एक ही मे लीन । जैसे—(क) “वह ईश्वर का पदा को भी अनध्याय माना जाता है । अनन्य उपासक है ।' 'इमपुर हमारा अनन्य अधिकार है, २ छट्टी का दिन । (शब्द०) । (ख) मो अनन्य जाके अमि मति ने टरइ हनुमत । अनध्यास-वि० [न०] भूना हुम्रा । विस्मृत । मानस ४।३।। अनन'- मज्ञा पुं० [सं०] श्वासग्रहण की क्रिया । जीना को०] । यौ०-अनन्यभक्त = जो किसी एक की ही भक्ति करे । एकनिष्ठ अनन संज्ञा पु० ]हिं०] ३ ‘अन्न' । उ०—पिय विन तन पन भक्त । २ अद्वितीय । जिसके समान दूनरा न हो। जैसेअनन धन, भूपन बमन नरत ।--पृ० ०, ६६।२७६ ।। अगरेजी के अनन्य महाकवि शेक्सपीयर की कविता ।अनन –वि० [हिं०]"० 'अनन् । उ०—ाजय अनहद ताल पखावज प्रेमघन॰, भा० २, पृ० २० ।। उमग्यो प्रेम अनन बोरी।--मीख० श०, पृ० ५१ । अनन्य-संज्ञा पुं० विष्णु का एक नाम ।। अननि -वि० [हिं०] "० प्रन"प' । उ०—राह भगति की अननि अनन्यगति--वि० [स०] जिसको दुमरा सहारा या उपाय न हो। | है विरला पाव को । |--रामानंद, पृ० ५४ ! जिस को अौर ठिकाना न हो। उ०---भेवहि भगति मन वचन अननुकल-वि० [सं०] १ जो अनुक् न न हो । २ प्रतिकू न । विप करम अनन्य गति हर चरन की ।—तुलसी ग्र०, पृ० ३१ । रोत । उ टा । उ० जहाँ सामाजिक प्रनुभूति के विपरीत अनन्यगतिक--वि० [स०] जिसे दूसरा सहारा या उपाय न हो[को०] । या अननुकून वैयतिफ अनुभूति काव्य में आ जाती है वहाँ अनन्यगामी - वि० [स० अनन्यगामिन] किसी अन्य के पास न जानेरसा भास हो जाना है। माहित्य, पृ० २१९ । | वाला [को०] । अननख्याति-मज्ञा दी० [ म ०] ख्याति, ज्ञान या बोध का अनन्यगुरु-सज्ञा पुं० [सं०] कृष्ण (को०] । | अभाव [को०] । अनन्यचित्त-वि० [स०] जिसका चित्त और जगह न हो । एकाग्रचित । अननुज्ञात--वि० [स०] १ जो स्वीकृत न हो। अस्वीकृत। २ अनन्यचेता–वि० [म० अनन्य वेतस्] अनन्यचित्त । एकाग्रचित्त [को०] | जिमको अनुजा या अनुमति न दी गई हो को] । अनन्यचोदित-वि० [म०] जो अन्य किसी से प्रेरित न हो । स्वत - अननुभावक-सशा [म०] जो समझने में असमर्थ हो [को०] ।। प्रेरित (को०) । अननुभवकता-सज्ञा स्त्री० [१०] १ बोध या ज्ञान का अभाव । अनन्यज-सज्ञा पु० [सं०] कामदेव । २ ग्रोध । प्राज्ञ रन । अज्ञात [को०] । अनन्यजन्मा- संज्ञा पुं० [म० अनन्यजन्मन्] अनग । कामदेव [को०] । अननभापण-सज्ञा पु० [म०] न्याय में एक प्रकार का निग्रह स्थान । अनन्यता-संशा स्त्री० [स०] १ अन्य के सवव का अभाव । २ एक विशेप-जव वादी किसी विषय को तीन बार कह चुके और सव निष्ठता । एकाश्रयता । एक ही में लीन रहना । ३ 0-इस लोग समझ जायें, और फिर प्रतिवादी उसका कुछ उत्तर न दे अदन्यता सहित धन्य अपने प्यारे को आराधा -एकात, तब वहां अननु मापण होता है और प्रतिवादी की हार मानी पृ० १३ ।। जाती है। अनन्यत्व--संज्ञा पुं० [सं०] अनन्यता [को॰] । अननुभूत--वि० [ग ०] जिगका अनुभव न हो। अनुभव से परे । अनन्यदृष्टि'--सज्ञा स्त्री० [म०] एकाग्र दृष्टि। एकटक देखते रहना उ०---ग्रननु मूर्ति पदार्थों का साहित्यकार सर्जन करता रहता है। अनन्यदृष्टि—वि० एकटक देखनेवाला [को०] । --शैली, पृ० २१ । अनन्यदेव--वि० [सं०] जिसका अन्य कोई देव न हो को॰] । अननुमत-वि० [स०] १ जिसकी अनुमति या प्रज्ञा न हो । २ । अनन्यदेव”—मझा पु० परमात्मा (को०] । नापसंद । अप्रिय । ३ श्रम गन । अयुक्त ] । अनन्यनिष्पाद्य–वि० [म०] किसी अन्य से निप्पन्न या संपादित न अननपगी--वि० [म० अननुपङ्गिन्] जो अनुपगी न हो [को०] । | होने योग्य [को॰] । अननुठानमा ९० [म ०] अनुष्ठान का अभाव [को०] । अनन्यपरता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] अन्यपरता का अभाव । एक निष्ठता (को०] । अननक्त–वि० [१०] १ जिमका पाठ न किया गया हो । २ अनुत्त आपतं अनन्यपरायण-वि० [म०] जो अन्य (ली०) मे लीन या रित । जिसका उत्तर न दिया गया हो [को०] । अननृत--वि० [सं०] जो अमृत या असत्य न हो । मत्य [को०] । | न हो [को॰] । अनन्न--वि० [२०] चात्र ने या खाद्य जो होन कोटि का हो [को॰] ।। | अनन्यपूर्व--वि० [न॰] वह पुरुष जिसके अन्य मंत्री न हो [को०] । अनन्यपूर्वा---वि० श्री० [सं०] १ जो पहने किमी की न रही हो । अनन्नास-सा पुं० [ जी० (अने०) नानस, पुर्त० अनानाज] राम ३ कुमारी । क्वारी । विनाही । | उमि की तरह का एक पौधा और उसका फल । अनन्यभव---वि० [म०] जिसके अन्य संतान उत्पन्न न हो [को०] । विशेष—यह पौधा दो फुट तक ऊँचा होता है । जह से दो तीन अनन्यभाव-वि० [म०] अन्य के प्रति भाव' या अास्था ने रखन इच ऊपर उठन में अकुरों की एक गाँठ बँधने नगनी है जो दाना [को०] । कमन मोटी और नबी होनी जाती है और रस से भरी अनन्यभाव’---मज्ञा पु० [सं०] १ एकनिष्ठ भक्ति या भाव । ३ होती है। इन मोटे प्ररपिंड का स्वाद पटमीठा होता है। परमात्मा के प्रति भक्ति या निष्ठा [को०] ।