पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२४६

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अनहीं १८३ नध्याय अनडुही--मझा स्त्री० [स०] नाय । अनधिकार--नशा पु० [सं०] १. धार वा ग्राउ । रिनार अनवान्---ज्ञा पुं॰ [ग] १ वैन । गाइ । २ मूर्य (उपनि०) । ३ का न होना। प्रभुत्व का प्रभाव । ३ वैवी ‘ना नारी । | वृष राशि [को०] ।। ३ अयोग्यता । अदामना । अनड्वाही--संज्ञा स्त्री० [२०] गौ । गाये (को०] । अनधिकार”–वि० १ ग्रधिर टि। विना :निवार का । अनणु--वि० [स०] जो मूम न हो [फो०] । २ अयोग्य है योग्यता के वार । अन’--सा गुं० मोटा अन [को०] । अनधिकारचर्चा--सा ग्वी० [म०] यान के बाहर वनचन । अनत--वि० [सं०] न झुका हुआ । सीधा । | जिग विपद में गति न हो उसमें टाग अाना । प्रस र अनकविकार चेप्टा-मज्ञा स्त्री० [१०]विना अधिगकोई कार्य या अनीत’ --त्रि वि० [सं०] अन्यत्र, ग्रा० प्रणत, अन्नत्त] शौर जैन | कही । दूसरी जगह में । पराए स्थान । 30---राम नपन मिय: प्रयत्न गरना [को०] । मुनी मम नाऊँ । उर्दि जनि अनव जाहि तन ठाऊँ |-- अनधिकारिता-सा ग्नी० [१०] १ ग्रधिकार न्त । अधिकार का न होना । अक्षमता । मानन, २।२३२ । । अनधिकारी-वि० [म० अनवि कारिन्] [नी अधिकारिणी १ अनति--वि० [स०] बहुत नही, थोडा । जिसे अधिकार न हों। जिनके हाथ में निया' न हो । २ अनति’---सशा झी० नभ्रना का अभाव । विनीन भाव का न होना । योग्य । अपात्र । कुरान । जैसे--पंडित नोग प्रधिकारी हैं। अहकार ।। वेद नही पढाते ( ३० ) । अनदेखा-वि० [हिं० अन-देख पा] [ी० आईपी] विना देउ। अनधिकृत--वि० [सं०]१ जो अधिकारी के पद पर नियुकत न किया हुआ । उ०-- देसी अनदेयौ कि ये अंगु अँगु मवै दिखाइ । गया हो । २ अधिकार में हर । जिनपर अधिकार पति सी तन में मनुचि बैठी वितै लजाइ ।--विहारी ०, | न हो (ले०] । दो० ६१८ । अनधिगत--वि० [सं०] विना गमझा हुआ । गुनगन । अYT । अनदोप-वि० [हिं० अन + म० दोप] दोषरहित । प्रदोष । निप। वे जाना बुझा । उ०--अनदोये की दोप लगावनि, दई दे इगो टारि 1-- अनविगत मनोरथ---वि० [स०] जिसकी इच्छा पूर्ण न हुई हो । | मूर०, १०।२६२ । हन}ण (को०] । अनन्हा---क्रि० वि० [स] अमत्यन , प्रवस्तुत या अ जीकत (को०)। अनधिगन शास्त्र-वि० [ ० ] जिन ।। गाय पर विकार अनामिश्रित वचन--संज्ञा पुं० [ग] जैन मत के अनुसार समय के । न ही को०] । | नवध में झूठ बोलना । जैसे कुछ रान रहते ही कह देना कि अनधिगम्य-वि० [मं०] जो पहुँच के बाहर हो । प्रप्राप्य । दु"पाप्य । सूर्योदय हो गया ।। अनधिष्ठान–सा पुं० [सं०] निरीक्षण का न होना [को०] । अनधिष्ठित–वि० [ २०] १ जो अधिकारी के पद पर नियुक्त अनद्य-संज्ञा पुं० [स०] मफेद नरेनो को०) । न हुआ । २ जो उपस्यि न हो जो०] । अनद्य–वि० जो खाने योग्य नै हो । अवाना [को०] । अनधिष्ठिन--- वि० [म०] १ अधिकारी के पद पर निगा न प्रा हो । अनद्यतन'---वि० [स०] [स्त्री० अद्यतनी] अाज या अन्य न के २ उपस्थित न हो [को०] । पहले या पीछे का । अनीन'- वि० [न०] जो अधीन न हो । नत्र [] । अनद्यतन-सज्ञा पुं० पिछ ती रात के पिछले दो पहूर अौर अानेपानी अनधीन'.-.-मज़ा पुं० स्वेच्छा पूर्वक म्बनत्र 5प में काम करने वाला रात के अगले दो पहर और इनके बीच के नारे दिन को छोड। बढ3 [6] । कर बाकी रान या विष्य की ममय । पिछ नी १२ बजे रात अनधीनक-मग पु० [म०] ; 'नधन' (को०] । में अानेवाती १२ बजे रन तक का समय जो बीत रहा हो। अनध्यक्ष --- वि० [म.] १ ज द न । अप्रन्५ । न जर । विशेष--पिनी भ्राधी दात के पहले के ममय को भून अनशन बाहर । २ अध्यरहित । विना मनर का । और अनेवाती रात के बाद के समय को भविष्य अनद्यनन अनव्ययन-ज्ञा पु० [*] १ अध्ययन न होना । अध्ययन का फते हैं। अभाव । २ अध्यायनशान में बीच में पानी पानी पिम [८] } अनद्यतन भविष्य----सश ५ [भ] अाने वा नी आधी रात के बाद अनन्यवनाय---- पुं० [१०]१ अफगाय का ग्न भय । पान'T' । का ममय । २ नम्न पाक में भविष कान का शक भेद । | दिलाई। एच न्यारा ।। जिसका अब प्राप प्रयोग नहीं होना । विप---'इनमें कई म माने गुग्गबानी न पीन नही पनि किती वः वन्नु ने मबन में 77 7 निश्प पर इन अनद्यतन भूत-ज्ञा पुं० [न०] १ बीती हुई प्राधी 'रान के पहले किया जाना हैं । 'नं मे 'वेदना । 7 में नन । या समय । मम्त व्याकरण में भूनकाल का भेद आल बन मानी पो यह' । यह नTI + ३ में ' ' हैं जिमका अब प्राय पयोग नहीं होना । अनर्गत ही गाज है ग्राम गृ Tना । 1"; प्रका। अनधिक--वि० [सं०] 1 जो अधिक न हो । २ नीगान । प्रगम ।। ३ पुष । पूरा [ ४ जिन हो; च र न हो । ५ नमें अनव्याय-~~ "पा यु० [मं०] १ ब दिन किन नगरि पान वाया न जा सके [को०] । पढ़ाने का निपी है ।