पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२३९

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है साँवो कुवर गौ अनछित-- विन । उ०— अनंग १७८ अनंतजित् अनग--वि० [स० अनङ्ग] १. विना शरीर का । देहरहित । उ०-- अनं गुरि--वि० [सं० अनङ्गरि] बिना उगलियो की । उँगलियों से (क) अगी अनग कि मूढ अमूढ उदाम अमीन कि मीत सही हीन या रहित [को०) ।। को । सो अथवै वह पनि केशब जाके उदो उदै सवही अनगुलि-वि० [स० अनङ्ग.लि] अगुन्निहीन [को०१ ।। वो 1- पाव (शब्द०) । (ख) मुझको प्यारी के पास पहुचने अनजन-वि० [सं० ग्रनज्जन] अजनरहित । आजभशून्य (को०] । के लिये अनग, अर्थात् शरीरविहीन क्यो नही बना देते ।-- अनझ--वि० [देश०] अनधीन । जो अवीन न हो । निर्वाध । प्रेमघन॰, भाग २, पृ० ४३२ । उ०—-चहुमान जोग छत्री अनझ, अन्यन कोस सितए मझ । अनगर--सज्ञा पु० १ कामदेव । उ०--प्रागे सोहै साँव कुवर गोरो —पृ० रा०, ५५॥४२ ।। पाछे पाछे, आछे मुनि वेप धरे लाजत अनग है ।---तुलसी अनछित्त -वि० [सं० अन् + छित्त] जो छेदा हुग्री या कटा हुआ ग्र०, पृ० १६५। २, अाकाश (को०)। ३ मन (को०)। ४ वह न हो । अच्छिन्न । उ०—मनच्छित अग वर अत्तताई, भई जो अग न हो (को०)। जीत चहुञान प्रथिराज राई |---पृ० १०, ३५१७७३ ।। अनग अराति –संज्ञा पुं० [म० अनङ्ग + अराति ] अनग का अनत-वि० [सं० अनन्त] १ जिसका अंत न हो । जिमका पार न शत्रु । महादेव । शिव । उ०——तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। हो । असीम । वेहद । अपार । २ वहुत अधिक । अमस्य । सादर जपहु अनग अराती । मानस--१।१०८ । अनेक। ३ अविनाशी । नित्य । अनगक-सज्ञा पुं० [स० अनङ्गक] मन [को॰] । अनत--सज्ञा भु० १ विष्णु । २ शेपनाग । ३ लक्ष्मण । ४ वलअनगक्रीडा संज्ञा स्त्री० [स० अनङ्गक्रीडा] १ रति । २ छद शास्त्र राम। ५ अाकाश । ६ जैनो के एक तीर्थंकर का नाम । ७ मे मुक्तक नामक विषम वृत्त के दो भेदो में से एक जिसके | अभ्रक । ६ एक गहना जो वाहू मे पहना जाता है । ६ एक पूर्व दल मे १६ गुरु वर्ण और उत्तर दन मे ३२ लघु वर्ण हो । सूत का गडा जो चौदह सूत एकत्र कर उसमें चौदह गाठ देकर जैसे—अाठी जामा शभू गाग्रो । भौ फदा ते मुक्ति पाश्रो । बनाया जाता है । इसे भादो मुदी चतुर्दशी या अनतव्रत के दिन सिख मम धरि हिय भ्रम सब तजि कर । मज नर हर हर हर पूजित कर वाहू में पहनते हैं । १० अनतचतुर्दशी का व्रत । हर हर हर (को०) । ११ रामानुजाचार्य के एक शिष्य का नाम । १२ विण का अनगद-वि० [ स० अङ्गद ] काम या प्रणय का जनक [को०] । शख (को०) । १३ कृष्ण (को०)। १४ शिव (को०)। १५ रुद्र अनगना -क्रि० अ० [म० अनङ्ग ] विदेह होना। शरीर की सुधि (को०)। १६ सीमाहीनता । अतहीनता (को०)। १७ नियत्व छोडना । वेसुध होना। सुध बुध भुलाना । उ०-गागरि नागरि (को०) । १८ मोक्ष (को०)। १६ वासुकि (को०) । २० बादल जल भरि घर लीन्हे यावे । भृकुटी धनुप कटाक्ष बाण मनो (को०) । २१ सिंदुवार (को०) । २२ अभ्रक । अवरक (को०)। पुनि पुनि हरिहि लगाव । जाको निरखि अनग अन गत ताहि | २३ श्रवण नक्षत्र (को०) । २८ ग्रह्म (को०)। अनग वढ़ावै ।—सूर (शब्द॰) । अनतकर–वि० [स० अनन्तकर] बढाकर भीमाहीन कर देनेवाला । अनगरग--संज्ञा पुं० [म० अनड्रङ्ग } कामशास्त्र सवधी ग्रंथ जिसमे अधिक कटनेवाला (को॰) । | मैथुन माधी ग्रासनो का विवरण है किो) । अनतकाय-मज्ञा पुं० [म० श्रान्तकाय] जैनियों के अनुसार उनी अनगलेख-सज्ञा पुं० [स० अनङ्गलेख ] मदन लेख या प्रेमपत्र [को०] । वनस्पतियो का समुदाय विशेप जिनके खाने का निषेध है । अनगलेखा-संज्ञा स्त्री० [सं० अनङ्गनेखा] प्रेमपत्र [को०] । विशेप---इसके अतर्गत के पेड या पौधे माने जाते हैं जिनके पत्तो, अनुगवती--वि० सी० [स० अङ्गवती] कामिनी [को०] । औ फूलो की नसें इतनी मूक्ष्म हो कि देख न पड़े, जिनकी अनगशत्रु--संज्ञा पुं० [सं० भनङ्गशत्रु ] शिव [को॰] । सधिया गुप्त हो, जो नोडने से एकबारगी टूट जायें, जो जह से अनगशे वर गज्ञा पु० [अ० अनङ्गशेखर] दडव नामक वर्णवृत्त का काटने पर फिर हरे हो जायें, जिनके पत मोटे, दनदार और एक दि जिममै ३२ वर्ण होते हैं और लघु गुरु का कोई क्र में चिकने हो अथवा जिनके पत्त फुन प्रौर फन्न वोमन्न हो। ये नही गेना । जैसे—गरज्जि मिहनाद नो निनाद मेघनाद वीर सख्या में वत्तीम हैं। कुटु नि मान सो कृसानु वाण छडिप (शब्द॰) । अन्तग-वि० [सं० अनन्ग) नित्य या अनडीन जानेवी ना 1 निस अनगारि-संज्ञा पुं० [म० अनङ्गारि] कामदेव के ग्ररि या शिव ।। गतिशील रहनेवाला [को०] । अनगिनी—संज्ञा स्त्री० [सं० अनङ्गिी ] अनग की स्त्री । रति । अनतगुण-वि० [सं० अनन्नगुण] बहुत अधिक गुणों से युक्त [को०] । | अनतचतुर्दशी-संज्ञा स्त्री॰ [ म० अनन् चतुर्दशी ] भाद्र शुक्न उ०--लीला रमरगिनि श्रीराधा, अनुराग अनगिनि श्रीराघो। | चतुर्दशी ।। -~-घनानंद,--पृ० २४५ । । अनगी–वि० [म० अनङ्गिन्] [स्त्री० अनगि ती] १ अगरहित । विशेष—इस दिन हिदु अलोनी ब्रत करते हैं और चौदह तागा के अनंत सूत्र को, जिसमे चौदह गाँठे दी होती हैं। पूजन विना देह का । अशरीर । २ प्रगविहीन । लूना लँगडा । कर “बाँधते हैं और तत्पश्चात् भोजन करते हैं । यह व्रत अपाहिज । उ०----कहा कहीं दूरि केनिक तारे पावन पद पर मध्याह्न पर्यंत का है । तगी, सूरदाभ यह विरद नवन मुनि गरजुन अधम अनगी - अनतचरित्र-सज्ञा पुं० [सं० अनन्नचरित्र] एक बोधिसत्व [को०] । मूर०, १२ १ ।। अनतजित्-सझा पु० [भ० अनन्तजितु] १ बासुदेव । २ वर्तमान अनगा---प्रज्ञा पु० १ परमेश्वर । २ कामदेव । अवसपणी के १४ वें तीर्थकर [को०] ।