पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२३८

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अध्यासन १७७ अनंकुश अध्यामन–सज्ञा पुं० [स०] १ इवेशन । बैठना ।२ प्रारोपण। अध्वगा—संज्ञा दी० [म०] गगः [को०)। ३ स्थान ।। अव्वगामी--वि० [न०अव्वगामिन] यात्रा करनेबाना [२०] । अव्याहरण--मज्ञा पुं० [२०] दे० 'अध्याहार' [को०] । - अध्वनिवेश---सज़ा पु० [२०] पदाव । अध्याहार--संज्ञा पुं॰ [न०] १ तर्क वितर्क । उहापोह । विधिकिया। अवनीन--- मुं० [१०] जाती । मुनाफिर [को०] । विचार । चहुन । २ वाक्य को पूरा करने के निये उसमें और अच्वनीन' - वि० यात्रा करने योग्य । २ यात्रा में नन घननेकुछ शब्द ऊपर से जोइन । ३०---प्रम गानुकून अाक्षेत्र अथवा बानो को०] । अव्याहार करके ही अर्थबोध होता है ।--ौनी०, पृ० ७३ । अव्वन्य---सा पु० वि० [न०] :: ‘अपनीन' । ३ अस्पष्ट वाक्य को दूसरे शो में पष्ट करने की क्रिया । अध्वपति—अशा पु० [२०] १ सूर्य । २ मार्ग का निरीक्षण करने अध्याहृत--वि० [म०] अव्याहार किया हुआ [को॰] । वाला अधिकारी [३०] । अच्युपिन-वि० [म०] ब्रमा हुग्रा । अावाद [को०] । अव्वर-नज्ञा पु० [ २० ] १ यज्ञ 1 मोमयज्ञ । प्रकाश । अच्युष्ट--वि० पु० [सं०] 1 वमा हुअा। श्रावाद । २ साढे तीन । ३ वायु [को०)। तीन र अावः (को०) । ३ माढे तीन बलय की बर्य की अव्वर-वि० १ मन्न। २ गावधान । ३ अर्व । ४ पुष्ट [को०] । कुटनी [को०] । अव्वरकल्पा–नग्न स्त्री० [स०] काम्येष्टि यज्ञ [गे । अव्युष्ट्र--सज्ञा पु० [म०] ऊँटगाडी [को०] । अध्वरकाई -मज्ञा पुं० [न० अरकान्ड] शतपथ ब्राह्मग का एक अध्यूढ-वि० [म० अध्यूढ] १ इथे। उन । २ नमृद्ध । ३ अत्य | भाग [को०) । धिक [को०] । अध्वरग--वि० [न०] उन के उपयोग में आनेवा ना [को०] । अव्यूढ'सच्चा पुं० १ शिव । २ किमी ८ का वह पुत्र जो विवाह अध्वरय--नशा पु० [न] १ यात्रा के उपपुरा गाडी । २ यात्रा में | के पूर्व उत्पन्न हुअा हो । [को॰] । | मने दून को०] । अध्यूढा-मझा मी० [ म० अयूदा 1 प्रयम विवाह हुन । वह स्त्री अध्वर्यु ---संज्ञा पुं॰ [नं०] नार दिन जो या यज्ञ कराने का वा में से जिसके रहते पति दूमरा विवाह कर ले । ज्येष्ठ पत्नी । | एक । यज्ञ में अनुबंद कर मर पढनेवा ना द्राय ग । ३० --- अव्यूहन--मज्ञा पुं० [नं०] परत डानना (राख अादि की) [को० । करोडो वनोन्मन नृजमो के मरण या मे वे हुँननेवाले अश्वयु अध्येन --सज्ञा पुं० [न अन्ययन] ० *अध्ययन' । उ०—देस पच थे |--काल, पृ० १५६ ।। दिन अध्यन कीन्ह । दम च्यारि मार मा मीख लीन --पृ० । | अध्वर्युवेद-शा पु० [न०] यजुर्वेद [को०] । रा०, ११७३१ । अव्वशय—संज्ञा पु० [२०] अपामार्ग । चिचड़ा । अध्येतव्य--वि० पु० [सं०] पढने योग्य । अध्ययन करने योग्य । अध्वशोपि--सज्ञा पुं॰ [स०] रोगविशेष । दास्ता चनने से उत्पन्न अध्येता-ज्ञा पुं० [अ० अध्येतु] पढ़नेवाला । विद्यार्थी । यक्ष्मा रोग । । अध्येय--वि० [सं०] पढने योग्य । अध्ययन करने योग्य । अव्वात--संज्ञा पु० [सं० अध्वान्त] १ हलका अँ3 । २. | छाया [को०] । अव्येपणा पु० [ २० ] अादर के साथ कसा काय ५ ५१ अन्वात-मज्ञा पुं० [म० अस्त्र + अन्न] पाना या मार्ग का करना (को०]। शत [को० । । अध्येपणा-इशा री० [न०] याचना | माँगना । मगनपन 1 निवेदन | अव्वाति--पग पु० [न०] १ पथिक । यात्री । २ फुगल अधि-वि० [स०] किमी का नियंत्रण न माननेवाला । जिसे वश मे 5यक्ति [को॰] । न किया जा सके (को०) । अव्वाधिष—मा पु० [सं०] मार्ग का निरीतक [२] । अध्रियमाण--वि० [म०] १ जो पकडा न जा सके । २ मृत [वै] । अव्वायन-पपा पु० [१०] पाना । गफ- [को०] । अध्रि मिणोG---सज्ञा 'नी० [ f४० ] कार । की । अव्वेश—जा पु० [२०] ० 'नाधि' [को०) । अन्न व–वि० ० [म०] १ घन । चच न । नयमान । इविडो न । अन-- > [सं०] म न पाकर में गए । १ 'नत्र, में 77 अन्थिर । २ अनित्य । अf (चित । बैठौ ठिकाने कः । का म्यानादेन है गौर आ गएप या निषेध चित करने के ये अध्व'-मेशा पु० अनिश्चय [को॰] । पर में प्रारभ होना ने दो २ गते गाया जाता है । अध्र व–ज्ञा पुं० [न०] गले का रोगविशेष [को०] । जैसे-नग, अनन, प्रनार, गनी३२६ अादि । हिंदी में अघ्व–पज्ञा पु० [ न० सेनन् ] राना । मागं । पर। २ यात्रा। ग्रह अदाय या उपगर्ग नम्र होता है प ३ नन' नथ। - ३ । ४ वन ।। माधन । ६ वेद की शापा । से मार न होने वाले शब्दों के 'हिन । जनाना जाना है । जैम, ७ शाक्रमण । ८ स्थान । ६ मा काग । १० । वायु । [को०] । अनबन, नीति, अनहोनी, ग्रन्ग्रहित, मान3 प्रादि । अध्वगमा १० [नं०] १ बटोही । पथिक । यात्री ! मुसाफिर । अनंग- वि० [R० ने ना ] १ अग पा नि7 प्रग में । २ ऊँट । ३ खच्चर 1 X मूर्य । [को०] । Ifन । 'नो पन ने न । २ अ । न माने जादा । २३ । छू लेनेवाला (जैसे, कपि) (को॰] ।