पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२३७

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अध्यक्ष १७६ अध्यास अध्यक्ष'--ज्ञा पुं॰ [ न० / १ स्वामी। मानक । २ अफपर । अघ्या इ-मज्ञा पु० [हिं०] १० 'अध्याय' । उ०—अब सुनि में द्वितीय नायक । सरदार । प्रधान । मुखियो । ३ मुख्य अधिकारी । । अध्याइ । जामें ब्रह्मादिक मंत्र अाइ।—नद० ग्र०, पृ० २२३ । अधिष्ठाता । ४ मफेद मदार । श्वेतार्क । ५ क्षीरिका । अव्यातम--सज्ञा पु० +6 'अश्यात्म'। उ०—-अरु अध्यात में दौत्र जु ख़िर नी । कोई । बुब्यादिक पर कासक मोई ।—नद० ग्र०, २२९ ।। अध्यक्ष’--वि० १ गोचर । दृश्य । २ निरीक्षण करनेवाला [को०] । अध्यात्म---मज्ञा पुं० [स०] १ ब्रह्मविवार 1 ज्ञान नत्र । ग्रामज्ञान । अध्यक्षर--- क्रि० वि० [म०] अक्षरशः । अक्षर अक्षर । जैसे—यह २ परमात्मा । ३ अात्मा । बात अध्यक्ष र सत्य है (शब्द॰) । अध्यात्म-वि० अात्मा से मवद्ध [को०] । अध्यक्षर--सज्ञा पुं० [ मं० ]ग्रोम् मत्र या शब्द को०] ।। अध्यात्मज्ञान–सशा पुं० [म०] श्रम तथा परमात्मा से सवध रखनेअध्यक्षीय--वि० [सं०] अध्यक्ष से मवधि । प्रश्न का [को०] ।। वाला ज्ञान [को०] । अध्यग्नि--संज्ञा पुं० [म०] एक प्रकार का स्त्रीधन । यौतुक या अध्यात्मदर्शी–वि० [म० अयानबन्]ि अामा बार परमात्मा का | दायज । ज्ञान रखनेवाला [को०] । विशेप-यह अग्नि को मना न कर कन्या को विवाह के समय अध्यात्मयोग-सज्ञा पुं० [सं०] मन को अन्य विपपा की ओर से हेटामायकेवालों की ओर से दिया जाता हैं । कर परमात्मा की शोर केंद्रित करना [को०] अव्यच्छG --सझा ० [सं० अध्यक्ष ] ० 'अघ्यक्ष' । अध्यात्मरति-वि० [स] परमात्मा के प्रति अनुरक्त रहनेवाला [को०)। अब्ययन–सज्ञा पु० [ म०] १ पन पाठन । पढाई । २ ब्राह्मणो के अध्यात्मा-- सुश! पं० [म० अध्यात्मन] परमात्मा । ईश्वर । | पट्कर्मों में से एक कर्म । अध्यात्मिक -वि॰ [हिं०] ऐ० ‘अध्यात्मिक' ।। अध्ययनीय--वि० [न०] उपपने के योग्छ । पठनी [को॰] । अध्यापक----मज्ञा पुं० [म०] [स्त्री० अध्यापिका] शिक्षक । गुरू । पढानेअव्यवं-मज्ञा पुं० [१०] वाउ जो मन को धारण करनेवानी और | वना । उस्ताद ।। | वढानेवाती है और नारे समार में व्याप्त है । अध्यापकी-संज्ञा स्त्री० [अ० अव्यापक + हि० ई (प्रत्य॰)] पढाई । अध्य -वि० [म०] एक पौर उमका अाधा । डेइ । पढाने का काम । मुर्दारसी। अव्यर्व द–संज्ञा पुं० [ म० ] रोगविशेर । अध्यापन--संज्ञा पुं० [स०] शिक्षण ! पढ़ाने का कार्य ।। विशे–जग रमान पर एक बार अवुद रोग हा हो उनी । अध्यापयिता-संज्ञा पुं० [म० अव्यापयितु] शिक्षक । अध्यापक [को०]] स्थान पर यदि फिर अवुद हो तो उसे अध्यषुद कहते है। अध्यापिका-- सझा स्री० [स] पटानेवाली । शिक्षिका [को०] । अव्यवसान-तज्ञा 3० [अ०] १ प्रयत्न । २ दृढता। ३ अध्य- अध्याय-अज्ञा पु० [१०] १ ग्रयविभाग । २ पाठ । सर्ग । परिच्छेद । वमाय । ४ प्रकृति अप्रकृति की ऐसी अभिन्नता जिसमें एक अध्यायी--वि० [न० अध्यायन्] अध्ययन में लगा हुया (को॰) । दूसरे में पूर्णतया ममाहित हो [को ।। | अव्यायी-सज्ञा पु० विद्यार्थी [को॰] ।। अच्यमाप-सज्ञा पुं० [२०] १ लगातार उद्योग । प्रविश्वान परि- अध्यारूढ–वि० [म० अध्याः ] १ अल्दिी चढा हुा । सवार । भ्रम । नि सीम उद्यम । द इता पूर्वक किमी काम में लगा २ अाक्रात । ३ अत्यधिक । ४ किसी की तुलना में उससे हना । २ उत्पाई। ३ निश्चय ! प्रतीति । श्रेष्ठ । ५ नीचे या निम्नतर [को०] । अव्यवमायित-वि० [१०] जिसके नि प्रयास किया गया ) [ अध्यारोपप्रज्ञा पु० [सं०] १ एक के वार का दं न में लगाना । अध्यवसायी-वि० [ ६० अध्यवसायिन्] १ लगातार उद्योग करने अपवाद । दीप । अध्यास । २ झूठी कल्पना । वेदात के अनु| बाला । परिश्रमी । उद्योगी । उद्यमी । २ उत्साही । सार अन्य में अन्य वस्तु का अभाव या भ्रम, जैसे ब्रह्म में अध्यवसायित--जिसने मकल्पपूर्वक किमी कार्य के fनये प्रयत्न जो सच्चिदानंद अनत अद्वितीय हैं, अज्ञानादि मकल जड़ समूह का अारोपण । ३ मा के भनुसार एक के प्रापार को जन्य | विया हो (को०] । अव्यवसिति--ज्ञा स्त्री० [म०] दे० 'अध्यवसाय' [को०] । में लगाना । जैसे, प्रकृति के व्यापार को गह्म में आरोपित कर उसको जगत् का कर्ता मानना, या इद्रिों की क्रिया को अध्यशन--मज्ञा पुं॰ [स०] अधिक मात्रा में भोजन करना । अजीर्ण । प्रात्मा में लगाना और उपको उनका कर्ता मानना ।। अनपच ।। अध्यारोपण--सज्ञा उ० [म०] 0 ‘अध्यारो' [को०] । अव्यस्त--वि० [न०] जिनका भ्रम किमी अधिष्ठान में हो । अव्यारोपित--वि० [सं०] अध्यारोपण किया हुा । भ्रमवश विशेष-जैसे-रज्जु मे सर्प, शक्ति में रजत प्रौर स्याण मे पुरुष आरोपित [को॰] । का भ्रम । यहाँ मर्प, रजन और पुरुष अपम्त हैं और रज्जु अध्यावाहनिक---- संज्ञा पु० [म०] वह द्रव्य जी कन्या को पिना व अादि अधिष्ठानो में इनका भ्रम होता है । घर से पति के घर जाते समय मिलता है । यह स्त्रीधन समझा अब्यस्थ--शा गु० [१०] अस्थि के ऊपर का भाग [को०] । जाता है । अवस्थि-सा ग्नी० [२०] एक अस्थि के ऊपर निकलने वाली इस अध्याम–सल्ला चुं० [सं०] १ अध्यारो । भ्रात जाने । मिथ्या ज्ञान । अस्थि । हड्डी के ऊपर की हड्डी [को०] । कल्पना । और वस्तु मे अौर वस्तु की वारणा ।