पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२३६

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अघोदिशि १७५ अध्यांडा अधोदिशि-मंशा खौ० [म०] १ दक्षिण दिशा । २ अधोविंदु [को०] । अधोवातावरोधोदावर्त–सा पुं० [सं०] रोगविशेष । अधोवायु के अधोदृष्टि-सज्ञा स्त्री० [म०] नीची दृष्टि। केवल नीचे की ओर देखना। वेग को रोकने में उत्पन्न उदावर्त रोग । उ०—सवे अगले अग ही मे दुरायो । अधोदृष्टि के प्रथ्रा विशेष—इस रोग के ये लक्षण हैं—मल मूत्र का रुक जाना, उहायो ।—रामच०, पृ० ६६ ।। अफरा चढ़ना, गुदा, मूत्राशय, लिंगेंद्रिय में पीडा तथा यादी अधोदेश---संज्ञा पुं० [०] १ नीचे का स्थान । नीचे की जगहू । २ से पेट में अन्य रोगो का होना ।। शरीर के नीचे का भाग या हिस्सा ।। अधोवायु–संज्ञा पुं० [म०] अपना वायु । गुदा की वायु । पद 1 गोज । अधोट्टार-संज्ञा पुं॰ [सं०] गुदा [को०] । | नीचे की हवा ।। अधोनिलय-ज्ञा पुं० [म०] नरक [वै] । अधोविंदु-सज्ञा पुं० [सं० अधोविन्दु] पैर के ठीक नीचे माना जाने अधोभुवन-सज्ञा पुं० [सं०] पाताल । नीचे का लोक । |' वाला विदु [को॰] । अधोभूमि --संशा स्त्री० [सं०] पर्वत के नीचे की जमीन । नीची भूमि । अधोही -नशा सी० [हिं० प्राधा+ ओही (प्रत्य०) ] जानवरों की [को०] । | खाल का वह प्राधा भाग जो जानवर की नाश ढोनपानो को अधोमडल-सज्ञा पुं० [२० अघोमण्डल] भूमि में माढे सात मील तक मिलता है [को०] । | का ॐवा वायुमडन [को॰] । अवौडी--संज्ञा स्त्री० [हिं० अध +ौडी (प्र०)] १ प्राधा चरमा । अधोमर्म-संज्ञा पुं० [सं०] गुह्यद्वार [को०] । चरसे या पूरे चमडे का निभाया हुअा अाधा टुकडा । अवोमार्ग-ज्ञा पुं० [म०] १ नीचे का रास्ता । मुरग का मार्ग । विशेष—मिझाने के ये चमड़े के दो टुकड़े करने की आवश्यकता २ गुदा । | होती है इसी से एक एक टुकडा अधौडी कहलाता है । अधोमुख'–वि० [सं०] नीचे मुख किए हुए । मुह लटकाए हुए । २ मोटा चमड़ा। 'न री' की उटी जो प्राय की अादि के ३ धा। उनटा। | पतले चमड़े का होता है । अधोमुख'–क्रि० वि० वा । उन्टा । मुंह के बल । जैसे—वह यौ०---अवौडी अस्तर = १) जूने के तले के ऊपर का मोटा चमड़ा | अधोमुख गिरा (शब्द०)। उ०—गरभ वाम दम माम अधो जिसपर नरी न हो। (२ वह जूना जिमपर कैवल ही मुख, तहँ न भयो विन्नाम ।—सूर०, १॥४७॥ का मोटा स्तर हो । ऊपर से नरी का नाल चमडा न हो । अधोमुल्ला---सज्ञा स्त्री० [सं०] गोजिह्वा [को०] । ३ आमाशय । पनवाघ । उ०—-तरी अघौ डी 'भाव ठी, वे : अधोमु न---वि० [सं०] जिम्की जइ नीचे हो [को०] । पेट फु [इ । दाद में हर म्यान जो जो अवै पो वा ।अधोत्र संज्ञा पुं० [सँ० अधोयन्त्र] भभका (को॰] । दादू॰, पृ॰ २६ ।। अघोरव –क्रि० वि० [हिं०] ३० ‘अधोई' । उ०—दिशि पूरव पच्छिम मुहा०—-अघोडी तनना= अघाना । खूब पेट भर जाना । जंगे--- दाहिने वाएँ अधोरव मुकन में ती फिरे ।—मेव क (शब्द०)। अाज तो नि म प्र ण था बुत्र अधौड़ी तनी होगी । अधोध–क्रि० वि० [सं० अव +ऊवं] नीचे ऊपर। तने ऊपर ।। | अधौडी तानना = खूप पेट भरकर ग्वाना । अधोलव-सी पुं० [स० अधोलन्ध] १ वह बडी रेखा जो किमी अपन' वि० [हिं० प्राधा+ऊन] अाधा मग या मग (को०] । दूसरी सीधी शाही रेखा पर इस प्रकार आकर गिरे कि पाश्र्व अयारा-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष । व क ।। के दोनो कोण समकोण हो । लव । २ माहुन । मुन मे वेब धौरा । शेन । हुआ नोहे या पत्थर का वह गोवा या घटे के प्रकार का विशेर-हिमालय की नराई मे जम्मू मे माम तक और दनि । लट्टू जिसे मकान बनानेवाले कारीभर पर्दे की सीध लेने के भारत तथा वर्मा के जगन्नों में पाया जाता है। इनकी छान लिये काम में लाते हैं । चिकनी तथा खाकी रग की होती हैं। छाल और पनि चमड़ा विशेष---इम लट! को दीवार के मिरे में नीचे की ओर लटकाने मिझाने के काम आती हैं। लकडी गे हुन नया नावें उननी हैं । हैं और इन सूत और दीवाल के ग्रसर का मिलान होने हैं । इमकी लकड़ी का कोयला भी अच्छा होता है। यह चैत में जेट यह य य जल की गहराई नापने के भी काम आना है । तक फनता और वर्षा ऋतु में फनना है । फ न बहुत समय तक अघोलिखित--वि० [६० अधस् + लिखित] नीचे लिखा है प्रा । उ० वृक्ष पर रहते हैं। इस की छाल से एक प्रकार का मी प्र’ अघो नखित काय महाकाव्य की कोटि मे पूर्ण नहीं ठहरने - खाने योग्य गोद निकलता है । वीन न० राम०, पृ० ४५ ।। अधौरी'.-सप्ना जी० २० 'अधौरी' । उ०-~-पाजन तात मृदंग अरी, अधोलोक-संज्ञा पुं० [म०] नीचे का नोक । पाताल । | कुजत बेनु रमाल ।-~~-नई० अ ०, पृ० १६ ।। अघोवदन-वि० [सं०] "० "अधोमुख' [को०] । अध्मान--संज्ञा पुं० [सं०] रोगविगैप । पेट का अफरा । अधोवस्त्र—मझा पुं० [सं०] शरीर के नीचे वाले भाग में पहना जाने विशी-इम रोग में पेट अधिक फ7 जाना है दर्द होता है, | वाली वस्त्र [को०] । | अथो वायु का छ्न। बद हो जाता है । अधोवस्था-सझा झी० [में०] * 'अधोगनि'। ई०–उह दो स्त्र अध्या-नया सी० [म० अपा] अजगी और नि आम्ही हमारी सम्कृति के मून तत्व हैं और इस अधोवस्था में भी हम नामक पौधे (को०) । उन्हें अपनाए हुए हैं ।—प्रेम० अौर गोर्की पृ० १५१ ।। अध्याडा--सच्चा इ० [स० अघ्याण्डा] दे॰ 'अध्यंडा' [ो ।