पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२३५

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अधर्मथ प्रधौतर अधीमथ---संज्ञा पुं० [सं० अबीमन्य २० 'अधिमथ' फो०] । अधृति-वि० [स] अस्थिर [को॰] ।। अधीयान-मज्ञा पुं० [स०] १ विद्यार्थी । अध्ययन करनेवाला अधृष्ट-- वि० [म०] १ जो ढीठ न हो । २ विनम्र । लज्जाशील । व्यक्ति । २ विद्यार्थी या अध्यापक रूप मे वेदो का अध्ययन ३ अजेय । ४ क्षतिरहित [को०] । पूरा करनेवाला व्यक्ति [को०) । अदृष्य--वि० [सं०] १ अजेय । २ सलज्ज । गर्वयुक्त [को०] । अधीयान-वि० पढ़नेवाला [को०] । अधेगा-सा पु० [हिं०] दे० 'अर्धाग' । अधीर---वि० पु० [सं०] १ धैर्यरहित । घबराया हुआ । उद्विग्न । अधेड- वि० ] भ० अर्घ, हि० अध+- ऐड (प्रत्य॰)] वि० आधी उम्र व्यग्र । बेचैन । व्याकुन । विह्व न । २ चचल । अस्थिर । का । उतरती अवस्था का । ढलती जवानी का । बुढापे और बेसब्र । उतावना। तेज । अातुर । ३ असतोपी । जवानी के बीच का । यौ॰—अधीराक्षी । अधीर विप्रक्षित ।। अधेनुसज्ञा स्त्री० [सं०] दूध न देने वाली गाय । ठाँठ गाय [को०)। अधीरा--वि० सी० [सं०] जो बोर न धरे ।। अधेला सझा पु० [हिं० अधि+एला (प्रत्य०) ] अाधा पैसा । एक अधीरा’- संज्ञा स्त्री०१ मध्या और प्रौढा नायिका के तीन भेदो छोटा ताँबे का सिक्का जो सन् १९५६ तक च नता था। जो मे से एक । वह नायिका जो नायक मे नावि वाससूचक चिह्न पैसे का अाधा होता है ।। देखने से अधीर होकर प्रत्यक्ष को करे । २ विद्यतु । विज। अधेलिका--संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'अँधियार' । अधीवास-संशा पुं० [सं०] एक प्रकार का पहनावा जिससे सारा । अचेली—संज्ञा स्त्री॰ [हिं० आधा+एली (प्र०) ] आधा रुपमा । अाठ आने का सिक्का । अठन्नी ।। शरीर ढक जाय। लवादा [को०] । अधीश–सा पु० [सं०] १ स्वामी । मालिक । सरदार। २ राजा । विशेष–चाँदी या निकल का सिक्का जो अधेि रुपए के बराबर | था और सन् १९५६ तक चराता था । अधीश्वर--सज्ञा पु० [सं०] [स्त्री० अधीश्वरी] १ मालिक । स्वामी । ना। अवैर्य-सज्ञा पुं॰ [स०] १ धैर्य का अभाव । धवडाहट । व्याकुलता। ३६१ पति । अध्यक्ष । अधिपति । भूपति । राजा । अधीष्ट-सज्ञा पुं० [सं०] १ किसी को सत्कारपूर्वक किसी कार्य मे उद्विग्नता । चचलता । उतावलापन । लगाना । नियोग । अधेय–वि० १ धैर्यररहित । व्याकुल । उद्विग्न । चंचल । अधीष्ट-वि० सत्कारपूर्वक नियोजित । अादर के साथ बुलाकर ' २ उतावला । आतुर ।। | किसी काम में लगाया हुआ । अधैर्यवान–वि० [स० अर्धर्यवान्] १ वैर्य रहित । व्यग्र । उद्विग्न । अधीसQ---सज्ञा पु० [हिं०] दे० 'अधीश' । उ----परम अधीस वस घवडानेवाला । २ अनुर । उतावला । भूमि थन देखिये ।—भिखारी० ग्र०, भा० २, पृ० १९६ । अधोशुक—सज्ञा पुं० [ स० अघस् = अंशुक ] १ नीचे पहनने का अवीसारक-सज्ञा पुं० [सं०] वेश्याग्रो के पास 'बार बार जानेवाला वस्त्र । जैसे पायजामा, धोती इत्यादि । २ अस्तर । व्यकिंन । चद्रगुप्त के समय में इन्हे कठोर दंड दिया जाता था। अधो--अप॰ [म० अधस् न समानरूप] १० 'अध'। जैसे, अधोमुख अधुना--कि० वि० [मं०] इस समय । स प्रति । अाज केन । म ब । इन अधोगति आदि मे 'अधो' । दिनो । अधोक्षज–सक्षा पु० [सं०] विष्णु का एक नाम । कृष्ण का एक नाम । अधुनातन-वि० [सं०] माप्रतिक। वर्तमान समय का । अव का। अधोगति सज्ञा स्त्री० [म०] १ पनन । गिराव। उनार 1 उ०-- हाल का । 'सनातन' का उलटा ।। मूत्रन ही की जहाँ अधोगति गाइया ।-रामच०, पृ० ८ । अधुर–वि० [म०] भाररहित । २ चिंतामुक्त [को०] । २ अवनति । दुर्गति । दुर्दशा ।। अधृत–वि० [सं०] १ अकपिन । २ निर्भय । निइर । ढीठ । अधोगमन-सज्ञा पुं० [सं०] १ नीचे जाना । २ अवनति । उचक्का । उ०—शखचूड धनपति का दूता । ले भागा एक पतन । दुर्दशा ।। सखी अधुता (शब्द॰) । अधोगामी–वि० [स० अधोगनिन् ] [स्त्री० अधोगामिनी] १ नाचे अधूमक-वि० [सं०] धूमरहित [को०] । जानेवाला । २ अवनति की ओर जानेवाला । बुरी दशा को अधूमक-संज्ञा पुं० [सं०] जलती हुई अाग जिसमे धुश्र न हो [को॰] । पहुचनेवाला। अधूरा--वि० पु० [स० अर्ध, हिं० अध+पूरा या करा (प्रत्य॰)] [स्त्री॰ अधूरी] अपूर्ण । जो पूरा न हो । अधः । असमाप्त । अधोघटा--संज्ञा स्त्री० [ स० अबवण्टा 1 वि वडा । अपामार्ग । अधकचरा । अधोछज -सज्ञा पुं॰ [ सं० अधोक्षज 1 ० 'अधोक्षज' । उ०----इद्री मुहा०—-अधूरा जाना = अममय गर्भपात होना । कच्चा बच्चे। दृष्टि विकार ते रहित अधोछज जोति ।--नद० ग्र० पृ० १७८ । " होना । जैसे—उस स्त्री को अधूरा गया (शब्द॰) । अधोजिल्लिका---सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] गले का कौत्र [को॰] । अधत--वि० [सं०] १ धारण न किया हुआ।। २ अनियश्रित [को०)। अधोटी—सक्षा ग्न्नी० [देश॰] एक प्रकार का बाजा । उ०—ाजत अधूत सज्ञा पुं० [पु०] विष्णु के सहस्र नामो में से एक [को०] । ताल दग अधौटी विच मुरली घुनि थोरी ।- छी०,० २६ । अतिसक्षा स्त्री॰ [स[१ धृति की विपरीतता । अघोरता । अधोतर-सज्ञा पुं० [ देश० ] एक देशी कपड़ा जो गजी गाढ़ से भी उद्वेग । दृढ़ता का अभाव । घव राहुट । २. अातुरता । मोटा होता है । उ०-सि साफ वाफनी अधोतरे मैच ममयम ५४ दुःख । कहिये ।सुदर प्र०, भा॰ १, पृ० ७५ ।।