पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२३२

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व६१ अधिगंतव्य अधिवल अधिगतव्य-वि० [सं० अधिगन्तव्य ] १ प्रापणीय । प्राप्तव्य । २ अधिदेव--संज्ञा पु० [सं०] [स्त्री० अविदेशी] इष्टदेय । कुलदेव । | समझने योग्य । ज्ञेय [को॰] । अधिदेव-वि० देव सबधी को०] । अधिगता--वि० [स० अधिगन्तु] १ प्रापक । पानेवाला , २ भमझने- अधिदेव—वि० [सं०] दैविक । दैवयोग से होनेवाला। आकस्मिक । वाना । अध्ययन करनेवाला [को॰] । अधिदैवत'--सज्ञा पुं० [म] वह प्रकरण या मंत्र जिसमे अग्नि, वायु, सूर्य, इत्यादि देवताग्रो के नाम कीर्तन से इष्टदेव का अर्यप्रतिअधिगणन--संज्ञा पुं० [सं०] १ अधिक गिनना। २ किमी चीज का पादन होकर ब्रह्मविभूति अर्थात् सृष्टि के पदार्थों के गुण आदि अधिक दाम लगाना । की शिक्षा मिले । पदार्थविज्ञान संवधी विपय या प्रकरण । अधिगत--वि० [सं०] १ प्राप्त । पाया हुआ । २ जाना हूँ। अधिदैवत--वि० देवता सबधी । ज्ञात । अवगत । समझा बुझा । पढा हुग्रा । अधिदैविक----वि० [स०] १ अधिदेव संबद्ध । अधिदैविक। २ श्राध्याअधिगम--सा उ० [म०] १ प्राप्ति । पहुच। ज्ञान । गति । २ जैन त्मिक [को०] 1 दर्शन के अनुसार व्याख्यान आदि परोपकार द्वारा प्राप्त ज्ञान अधिनाथ–सज्ञा पुं॰ [सं०] १ सवका मानिक। सबका स्वामी । २. ३. ऐश्वर्यं । बडप्पन । सरदार । अफमर । प्रधान अधिकारी। अधिगमनीय---वि० [म० ] दे० 'अधिगतव्य' [को०) । अधिनायक संज्ञा पुं० [भ] [स्त्री० अधिनायिका] १ अफसर । सरदार अविगम्य-वि० [ म०] दे० 'अधिगमनीय' [को०] । मुखिया । २ मानिक । स्वामी । ३ किसी प्रदेश, देश, जानि या अधिगव--वि० [सं० ] गाय मे अथवा गाय से प्राप्त [को॰] । राष्ट्र का सर्वाधिकार संपन्न शामक । तानाशाह । डिक्टेटर। अविण'--वि० [सं०] विशिष्ट गुण मे भूपित । सुयोग्य [को॰] । अधिनायकतत्र--संज्ञा पुं० [सं० अधिनायक+तन्त्र] वह शासन व्यवस्था अधिगुण-सज्ञा पुं० [सं०] विशिष्ट गुण [को०] । जिसके अनुसार किसी एक शासक को सारी शक्ति प्रदान कर अधिगुप्त-वि० [म०] रक्षित । रखा हुआ। छिपाया हुअा ! दबा हुअा।। दी जाय । तानाशाही । डिस्टेट रणिय ।। अविचरणसभा पुं० [सं०] किसी के ऊपर चलना । अतिक्रमण अधिनायकी-सज्ञा स्त्री० [म० अधिनायक+हि० ई (प्रत्य॰) अधि| करना [को०] । नायक का पद या कार्य [को०] । अचिच्छ(५)---वि० [स० अदृक्ष दे० 'अदृश्य' । उ०—अच्छन के श्रागे अधिनायकी-वि० अधिनायक मववी [को० । ही अधिच्छ गाइयतु है ।--पद्माकर ग्र ०, १० २६६ अधिनियम--सज्ञा पुं० [सं० अधि+नियम ] लोकसभा या सर्वोच्च अधिज---वि० [सं०] १ जनमा हुग्रा । २ उच्च कुन मे उत्पन्न [को॰] । शासक द्वारा पारित अथवा स्वीकृत बिधि, नियम, कानून । अधिजनन--संज्ञा पुं० [सं०] जन्म को] । ऐवट। जैसे, भारतीय शामक संवधी सन् १९३५ ई० का अधिजिह्व--सज्ञा पुं॰ [सं०] १ एक से अधिक जीभवाला जीव । साँप अधियम -भारतीय०, १० १॥ अादि । २ जीम में होनेवाली एक प्रकार की बीमारी [को॰] । अधिनियमन-सज्ञा पुं० [सं० अधि+नियमन) अधिनियम या विधान अधिजिह्वा–संज्ञा स्त्री० [स०] १ एक बीमारी जिसमे रक्त मिले हुए । | वनाने का कार्य [को०] ।। कफ के कारण जीभ के ऊपर सूजन हो जाती है। यह सूजन। अधिप-संज्ञा पुं० [म०] मालिक। २ अकसर। मरदार। मुखिया । पक जाने पर असाध्य हो जाती है । ३ गले का कौश्रा । नायक । ३ राजा । अधिजिह्निका--संज्ञा स्त्री॰ [स०] दे॰ 'अधिजिह्वा को०] । अधिपति-सज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० अधिपत्नी] १ सरदार । मानक अधिज्य–वि० [सं०] जिमकी डोरी खिची हो। धनुष, जिसकी अधीश । नायक । अफसर। स्वामी । मुखिया। हाकिम । २ प्रत्यचा या जिसका चिल्ला चढ़ा हो। राजा । ३. मस्तक का वह भाग जहाँ की चोट प्राणघातक अधिज्यकामुक---वि० [सं०] जिसके घनुष की प्रत्यचा चढी हुई हो [को०]।। होती है । अधिज्यघन्वा-वि० [सं०] ६० 'अघिज्यकामुक' [को॰] । अधिपति–वि० बौद्ध दर्शन के अनुसार अधिपति चार प्रकार के होते अधित्यका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] पहाड के ऊपर की समतल भूमि । ऊँचा हैं--(१) यज्ञाविपति, (२) वित्ताविपति, (३) बौधिपति पथरीला मैदान 1 टेबुल लैड । 'उपत्यका' का उनटा। उ०-- और (४) न्यायाधिपति । (क) हरी भरी घासन सो अविस्यका छबि छाई ।-प्रेमघन॰, अधिपतिप्रत्यय--संज्ञा पुं० [सं०] जैन दर्शन के अनुसार वह प्रपये यी भा० १.० १३ । (ख) इसकी कैसी रम्य विशाल अधित्यका सयम जिसके अनुसार विपय को ग्रहण करने का नियम होता है। सयम जिसके अनसार विय ते तारा : है जिसके ममीप अाश्रम ऋषिवर्य का ।--कानन०, १० १०५।। अधिपत्नी--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ स्वामिनी । २ शामिका [को०)। अधिदंडनेता--सच्चा पु० [सं० अघिदण्डनेतृ] यमराज [को०] । अधिपाशुल--वि० [सं०] धूनिधूसरित । धूल में भरा [को०] अघिदत--संज्ञा पुं० [सं० अघिदक्ष ] एक दाँत के ऊपर निकलनेवाला अधिपुरुष-सज्ञा पुं॰ [सं०] परमपुरुष। परमात्मा । ईश्वर क्रिो । दाँत को०)। अधिप्रज-वि० [सं०] बहुत अधिक संतान उत्पन्न करनेवाला [को०)। अधिदार्व-वि० [सं०] का5 का । काठ मे बना [को०] । अधिवल----सना पु० [म०] गर्भस धि के तेरह अगो में मैं एक । बह अधिदिन--सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अधिक तिथि' (फो०] । धोखा जो किसी को वेश बदनै हुए देवकर होता है अविदोधित--वि० [सं०] अत्यधिक प्रमा मा कातिवाना किये। (नाट्यशास्त्र) ।