पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२३१

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अघिकांश १७० अघिक्षेप अधिकाश–वि० बहुत ।। अधिकारविधि----सज्ञा स्त्री० [सं०] मीमामा मे वह विधि या प्रज्ञा अधिकाश..-क्रि० वि० १ ज्यादातर । विशेषकर । बहुधा । २ अक जिससे यह वोध हो कि किम फन की कामनावाले को कौन सा सर । प्राय । जैसे-अधिकाश ऐसा ही होता है (शब्द॰) । यज्ञ या कर्म करना चाहिए अर्थात् कौन किम कर्म का अधिकारी अधिकाई सज्ञा स्त्री० [ स० अघिक+हिं० आई (प्रत्य॰)] है । जैसे,—स्वर्ग की कामना करनेवाला अग्निहोत्र यज्ञ करे, १ ज्यादती । अधिकता। विपुलती। विशेषता। वहुतायत । राजा राजसूय यज्ञ करे, इत्यादि। वटती । उ०—हहि सकल सोभा अधिकाई ।--मानस, १ । अधिकारस्थ-वि० [सं०] अधिकार संपन्न जिसमे अधिकार निहित ११ । २ वडाई । महिमा महत्व । इ०--उमा न कछु कपिर्क हो (को०] । अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई ।--मानस, ५।३ । अधिकाराखू-वि० [ स० अधिक + आरा (प्रत्य०) ] अत्यधिक । अधिकाधिक----वि० [सं०] ज्यादा से ज्यादा । अधिक से अधिक । उ०-- चढे त्रिपुर मारने के सारे, हरिहर सहित देव अधिअधिकाना--क्रि० अ० [ म० अधिक से नाम० ] अधिक होना। 1 अधिक होना। कारे।--निश्चल (शब्द०)। ज्यादा होना । बढना । विशेप होना । वृद्धि पाना । उ०— अधिकारी---संज्ञा पुं० [ स० अघिकारिन् ] [ स्त्री० अधिकारिणी । सुक से मुनि सारद से बकता चिरजीवन लोभस ते अधिकाने |-- १ प्रभु । स्वामी। मालिक । २ स्वत्ववारी। हकदार । तुलसी ग्र ०, पृ० २०७ । ३ योग्यता या क्षमता रखतेवाना। 'उपयुक्त पात्र । जैसे-- अधिकाभेदरूपक--सज्ञा पुं० [ सं०] 'चंद्रालोक' के अनुसार रूपक ‘सब मनुष्य वेदान के अधिकारी नहीं हैं (शब्द॰) । ४ अलकार के तीन भेदो में से एक ।। नाट्यशास्त्र के अनुसार नाटक का वह पात्र जिमसे रूक्र का विशेप---इसमे उपमान और उपमेय के बीच बहुत सी बातो प्रधान फन प्राप्त होता है । ५ एक जातीय उपाधि (को०)। मे अभेद या समानता दिखलाकर पीछे से उपमेय में कुछ अधिकारी-वि०- स्वत्व या क्षमता रखनेवाना [को०] ! वियोपता या अधिकता वतलाई जाती है। जैसे—-रहै सदा अधिकारी३_-वि० स्रो० [हिं० अधिः1 ग्रधि कता । वाहुल्य । उ०— विकसित विमन, घर बास मृदु मजु । उपज्यो नहिं पुनि पक ते (क) जेहि काँ आपन हितकर जान्यो दीन्ह्यो मुख अधिप्यारी को मुख कज ।' यहाँ मुख उपमेय और कमले उपमान के कारी।--जग० वानी, भा० १, पृ० ३४ । ( ख ) तरकारी, वीच मुवास प्रादि गुणो मे समानता दिखाकर मुख के सर्वदा यामे पानी की अधिकारी । घाघ० पृ० ८५।। विकसित रहने और पक से न उत्पन्न होने की विशेपता दिखाई अधिकारी---संज्ञा स्त्री० [हिं०] जबर्दस्ती। १०--त्यो पदमाकर मेलि मुठी इत पाइ के नी करी अधिकारी पद्माकर अधिकार-सज्ञा पुं० [सं०] १ कार्यभार प्रभुत्व । प्राधिपत्य । ग्र०, पृ० ३१९ । प्रधानता । जैसे----'इस कार्य का अधिकार उन्ही के हाथ में अघिकार्थ—सज्ञा पुं० [सं०] कोई वाक्य या शब्द जिससे किसी पद के सौपा गया हैं' (शब्द॰) । अर्थ मे विशेपता आ जाय । क्रि० प्र०—-चलाना ।—जाना }---देना ।—सपना । अधिकार्थवचन--सुज्ञा पुं० [सं०] अत्युक्ति । अतिरजन [को । २ स्वत्व । हक । अख्तियार। जैसे----‘यह पूछने का अधिकार अधिको ७–वि० [सं० अघिक - हि० ई (प्रत्य०) ] दे० 'अधिक' । तुम्हे नहीं है' (शब्द॰) । उ०—-अधिकी हमको नाहीं चाहियत है ।दो सौ वावुन, क्रि० प्र०—देना ।—रखना । | भाग २, पृ० १०५ । ३ दावा कब्जा 1 प्राप्ति । जैसे—'सेना ने नगर पर अधिकार अधिकृत'—वि० [स०] १ अधिकार में आया हुआ । हाथ में कर लिया' (शब्द॰) । आया हुआ । उपलव्ध । २ जिस पर अधिकार किया क्रि०प्र०—करना।--जमाना। | गया हो । उ०—हृदय हुआ अधिकृत तुमसे, तुम जीते ४ क्षमता सामर्थ्य । शक्ति । ५ योग्यता । परिचय।। हम हारे ।--झरना, पृ० ६३।। जनि' री। ज्ञान । लियाकत । जैसे--(क) इस विपय मे उसे | अधिकृत सज्ञा यु० अधिकारी । अध्यक्ष । जैसे—महाबलाधिकृत में | ‘अधिकृत । कुछ वकार नही हैं' (शब्द०)। ६ प्रकरण । शीर्षक । जैसे अधिकृति--संज्ञा स्त्री० [सं०] अधिकार । स्वत्व [को०] । वातरोगाधिकार । ७ नाट्यशास्त्र के अनुसार रूपक के प्रधान, अधिकौहाँ)---वि० [ स०अधिक+हि० अौहाँ (प्रत्य॰)] अधिकतम । फल का स्वामित्व या उसकी प्राप्ति की योग्यता । ८ कर्तव्य । (को०) । ६ निरीक्षण (को०)। १० स्थान (को०) । ११ अत्यधिक । उ०—जनु कनिदनदिनि मनि-इंद्रनी न सिखर परमि धेसति लसति इससे मि सकुल अधिक है । —तुलसी व्याकरण में एक मुख्य या प्रधान नि प्रम जिससे उसके क्षेत्र में । ग्र०, पृ० ४०६ ।। आनेवाले अन्य नियम भी शासित होते हैं । अधिक्रम--सज्ञा पुं० [सं०1 आरोहण । चढाव । चढाई । विशेप-यह अधिकार तीन प्रकार का होता हैं—(१) सिहा- अधिक्रमण सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अधिक्रम' [को०] । | वलोकित, (२) मडूकप्लुत और (३) गगाप्रवाह के सदृश । । अधिक्षिप्त--वि० [पुं०] १ फेंका हुआ । २ निदित । तिरस्कृत। अधिकार” –वि० मुं० [स० अघिक] अधिक । वहुत । | अपमानित । वुरा ठहराया हुआ । अधिकारपत्र----वि० [नं०] अधिकार की पात्रता या योग्यता रखने- अधिक्षप–सच्चा सुं० [सं०] १ फेकना । २ तिरस्कार । निदा । वाला [को॰] । अपमान । ३ तानाजनी । व्यग्य । -