पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२२९

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अधरामृत | १६६ अघारी अधरामृत-सज्ञा पुं० [सं०] श्रोटो का रस जो अमृत के समान मीठा अधवाना मशा पु० [हिं० हिद घाता] तरबूज । माना जाता है [को०] । अधवारी--सज्ञास्त्री० [देश॰] एक पेड का नाम जिसकी लकडी मकान अधरावलोप–सज्ञा पुं० [सं०] श्रोष्ठचर्वण । ग्रोठ चबाना [को०] । और असवाव बनाने के काम आती हैं। अधरासव–मज्ञा पुं० [अवर+आसव] ओठ का मादक रम |--- उ०- अधश्चर-वि० [सं०] जो नीचे नीचे चले । अघरासव अधरन चह्यौ उ रहु चह्यौ उर लागि । -- श्यामा, अधश्चर--सज्ञा पु० सेंध लगाकर चोरी करनेवाला पुरुष । अँधिया पृ० १७६। चोर । । अधरीण--वि० [स] १ नीच । तिरस्कृत ! २ निदित [को०] । अधसेरा–सज्ञा पुं० [ स० अर्ध+मेटक = सेर ] एक वीट या तौल जो अधुरेद्य-मज्ञा पु० [सं०] गत दिन के पहले का दिन । परसो। एक सेर की आधी होती है । दो पाव का मान ।। अधुरोथा - वि० [सं० अर्यं+रोमन्थ = जुगाली] [स्त्री० अधरोथी] अधस्तन--वि० [स०] १ नीचा । नीचे अवस्थित । २ पूर्ववर्ती। प्राधा जुगाली किया हुआ । प्राधा पार किया हुआ । अाधा पहले का [को०] । चवाया हुआ । उ०—अघरोयी कग दाम गिरावन 1 यकित अधस्तल--सा पु० [सं०] १ नीचे का कमरा । नीचे की कोठरी । खुले मुख ते विखरावन । शकुंतला०, पृ० ६ । २ नीचे की तह । तहखाना। अधरोत्तर--- वि० [स अधर + उत्तर[ ऊँचा नीचा । खडबीहड । ऊवड अधुस्स्वस्तिक---सज्ञा पु० [ स० ] नीचे की ओर का वह स्थान या खाबड 1 २ अच्छा बुरा । ३ न्यूनाधिक । कमोवेश ।। बिंदु जो पृथ्वी पर के किसी स्थान या बिंदु के ठीक नीचे अधुरोत्तर- क्रि० वि० ऊँचे नीचे । हो । शीर्षबिंदु से ठीक विपरीत दिशा का बिंदु जो क्षितिज का अधरोष्ठ-संज्ञा पुं० [स] १ नीचे की होठ । २ नीचे और ऊपर के दक्षिणी ध्रुव है ।। दोनो अोठ [को०] ।। अाँगा--पज्ञा पुं० [स० अङ्ग] एक वाकी रंग की चिडिया जिमकी अधरौष्ठ-संज्ञा पुं० [अ०] +० 'अधरोष्ठ' [को०) । गरदन से ऊपर का मारा भाग नान होता है और हुने तथा पैर अधर्म--संज्ञा पु० [त०] [ वि० अधम, अर्धा भष्ठ, अघी ] पाप । सुनहले होते हैं। पातक। असद्व्यवहार । अकर्तव्य कर्म । अन्याय । धर्म के अधाधु ध- क्रि० वि० [हिं० ] : 'अधावृध' ।। विरुद्ध कार्य । कुकर्म दुराचार । वुरा काम ।। अघाना--पज्ञा पु० [स० अर्ध] याव ( अस्थायी ) को एक भेद । विशेर----शरीर द्वारा हिना चोरी अादि कर्म वचन द्वारा यह तिलवाडी नान्न पर बजाया जाता है । अनृत भापण यदि अरि मन द्वारा परद्राहादि ! यह अधान्यवाय—सा पुं० [म०] वह स्थान या उपनिवेश जिसमें धान गौतम का मत है । कणाद के अनुसार वह कर्म जो न पैदा होता हो । अभ्युदय (लौकिक सुख) और नैश्रेयम (पारलौकिक सुख) विशेष--चाणक्य के अनुसार जलयुक्त उपनिवेश भी वही की सिद्धि का विरोधी हो । जैमिनी के मतानुसार उपनिवेश या प्रदेश उत्तम है जिसमे धान पैदा होता हो । परतु वेदविरुद्ध कर्म । वौद्ध शास्त्रानुसार वह दुष्ट स्वभाव जो यदि धान पैदा करने वाला उपनिवेश छोटा हो और धान न निर्वाण का विरोधी हो । पैदा करनेवाला उपनिवेश बहुत बड़ा हो, तो दूसरा ही ठीक है। २ एक प्रजापति अथवा सूर्य का अनुचर [को०] । अधर्ममत्रयुद्ध-सज्ञा पु० [म ०] वह युद्ध जो दोनो योर के अघामागव-संज्ञा पु० [सं०] अपामार्ग [को०] 1 लोगो को नष्ट करने के लिये छेड़ा गया हो । अचार(५)—पज्ञा पु० [स० अाधार दे० 'आधार' । उ०-तप अधार अधर्मात्मा -वि० [त०] अधर्मी पापी । दुराचारी। कुकर्मी । । सय सृष्टि भवानी ।—मानस, १५७३ । । । | बुरा । अधारणक---वि० [म ०] जो न भप्रद न हो । [को०] । अधर्मास्तिकाय----संज्ञा पु० [सं०] अघर्म पाप । जैनशास्त्रानुसार द्रव्य अधारिया--संज्ञा पुं० [म० श्रावार] वैनगाड़ी में गाडीवान के बैठने के छह भेदो मे से एक । | की वह स्थान जिसे मोढा भी कहते हैं । विशेष—यह एक नित्य और अरूची पदार्थ है जो जीव और अधारी--(संज्ञा स्त्री० [सं० आधार या धारिका ] १ अथर्य । पुद्गल की स्थिति का महायक हैं। इसके तीन भेद हैं - सहारा । आधार की चीज 1 २ काठ के डडे में लगा काठ का स्कध, देश और प्रदेश । पीढा जिथे साधु नौग सहारे के लिये रखते हैं। उ०—-ऊधोयोग अधर्मी संज्ञा पुं० [स० अर्धा वन्] [स्त्री॰ प्रधभणी] पापी दुराचारी मिखानन अाए । शृगी भस्म अधारी मुद्रा दें यदुनाथ पठाए । अघय–वि० [सं०] १ घर्मविरुद्ध । जो धर्म की दृष्टि में उपयुक्त सूर (शब्द॰) । ३ यात्रा का सामान रखने का झो ना या थंज्ञा | न हो। २ अवैध । अन्यायपूर्ण [को० ।। जिसे मुसाफिर लोग कधे पर रखकर चलते हैं । उ०--- अधर्पणी-वि० पु० [स०] जिमको कोई दवा या डरा न सके । मेखल, सिंधी, चक धधारा । जोगवाँट, रुदराक्ष अधारी।-- जिसको कोई पराजित न कर मके । प्रचड | प्रवल । निर्भय । । जायसी प्र ०, पृ० ५३ । अधवा अज्ञा स्त्री० [सं० प्र+धन = पति] जिमका पति जीवित न अधारी'.--वि० जी० सहारा देनेवानी । प्रिय । सुख देनेवाली । भली । हो । विधवा । पतिहीना । विना पति की स्श्री । सधवा ।। ३०----की मोहि ले पिय कठ लगावै । परम प्रारी बात का उलटा । ! सुनावै ।---जायसी (शब्द०)। सर (शब्द॰) । । । मख