पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२२८

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अवम. १६७ अघधिर अधर्म-सज्ञा पुं० १ एक पेष्ट का नाम 1 ३ कवि के तीन भेद अधर--संज्ञा पुं० [म०] १ नीचे का श्रोठ । २ ओठ। में से एक । वह कवि जो दूसरो की निंदा करे । ३ ग्रहो। यो०---ग्वाधर । दयिताधर । का एक अनिष्ट योग (को०) । ४ कर्तव्य कर्तव्य के विचार मुहा०—-अधर चवाना = क्रोध के कारण दात मे ग्रोठ यार | मे रहित कामी (को०)। । - वार दाना । ३०---तदपि क्रोध नहि रोक्यो जाई । भए अवमई -सा मी० [ सः अघन+हि ई (प्रत्य॰)] नीवता । अरुन चव अधर चवाई |--मनाना ( शब्द० ) । अधमता । खोटापन ----सुनि मेरी अपराध अधमई को ३ भग या योनि के दोनों पार्श्व । ४ शरीर का निचरा • • निकट न आवै ।---सूर०, १११६७ ।। । हिस्सा (को०)। ५ दक्षिण दिशा (को०) । अधमतामझा जी० [भ०] अघमपना। नीचता ! खोटाई । । अधर’--गज्ञा पुं० [सं० प्र= नहीं +बृ= धरता] १ बिना आधार का अघमभृत-संज्ञा पुं० [सं०] निम्न श्रेणी का सेवक । तीन प्रकार स्थान । अतरिक्ष । अाकाश । पून्पन्थान । जैसे—हू अधर में | के सेवको में एक [को०] । लटका रहा । (शब्द॰) । अचमभृतक-सज्ञा पु० [स०] दे० 'अधम मृत' [को॰] । मुहा०,---अधर में झूलना, अधर मे पडा, अपर में लटकना = (१) अधमरति—संज्ञा स्त्री० [स०] कार्यवश प्रीति को अघमरति कहते हैं । अघूर रहना । पूरा न होना । जैसे—यह काम अधर में पडा जैसे, वेश्या की प्रीति । हुआ है ( शब्द०)। (२) पशोपेश मे पडना । दुविघा मे अधमरा--वि० पुं० [त० अर्ध, हि अध+मरा] [श्री० अर्वपरी] प्राधा पडना ।।। . मरा हुआ । अर्थ मृत । मृतप्राय । अबमुश्रा । अधर-वि० १ जो पकड़ मे न ब्राए । चच न् । २ नीव । बुरा । अवमर्ण-सज्ञा पुं० [सं० प्रथम +प्रण] प्रण लेनेवा ना अादमी 1 तुच्छ । उ०—-मूद कपट प्रियं वचन मुनि तीय अधरबुव . कर्जदार | धरा। ऋणी ।। रानि । सुर माया बम बैरिनिहि सुहृद जानि पनिप्रानि ।अधमाग–सज्ञा पुं० [स० अव नाङ्गो शरीर का निच ना भाग। मानस २०१६। ३ विवाद या मुदमे में जो हार गया हो । ४ । चरण । पाँव । पैर ।। । *चा। नीचे का । अवमा-सा स्त्री० [म०] १ दे० 'अधमा नायिका' । २ नीव प्रकृति । | अधरकाय-सा पु० [म०] शरीर का निचा भाग [को०] । , की स्त्री [को० ।। अवरछत -सज्ञा पु० [म० अर्धरक्षन] ओठ का प्रण । उ०—-3 है। अधमाई -सज्ञा स्त्री० [म० अधम+हि० आई (प्रत्य॰)] अध मता। अपन्हुति अधरछन करत न पिय हिय बाइ ।—fमारी प्र०, | नीचता । खोटाई । उ०—परहिन सरिस धर्म नहि मा० २, पृ० १९ ।। | 'माई । पर पीडा सम नहि अधमाई ।—मानस ७५४१ ।। अधरज-सज्ञा पु० [स० अघर+रज] प्रोठो की ललाई । अोठो की अधमादूती-सज्ञा स्त्री० [स०] अधम कुटनी । वह दूती जो उत्तम सुर्वी । श्रोठों की धडी । पान या मिस्सी के रग की लकीर जो रूप से अपना कार्य न करे वरन् कटु बातें कहकर नायक झोठो पर दिखाई देती है ।। या नायिका का संदेश एक दूसरे को पहुचाए । अधरपान-सज्ञा पुं० [स० अधर = श्रोठ +पान == पीता, चूसना] मान अधमाधम–वि० [स अधम + अघन] नीच से नीच। महानीच ।। प्रकार की बाहूयर तियो में से एक रनि। शोठो को चुवन । उ०—महा विटप कोटर महु जाई । रहु अधमाधम अधरविव-मझा पु० [म०] कुदरू के पके फन जैसे नान अोठ । अघगति पाई । मानम ७५१०७ । अधरवुद्धि-वि० [म०] क्षुद्र बुद्धिवाना [को०] । अधमोनायिका-सज्ञा स्त्री० [म०] प्रकृति के अनुसार नायिका के | अधरम----भज्ञा पुं० [हिं०] "० "प्रधर्म' । उ०--जब जब होई घरम भेदो से एक। वह स्त्री जो प्रिय या नायक के हितकारी ' कै हानी । वह अगुर प्रधम अभिमानी ।—मानस ११२१ ।। होने पर भी उसके प्रति अहिन या कुव्यवहार करे । अघरमकाय सझा पुं० [हिं०] "० "अधर्मास्तिकाय' । अधमार -वि० [हिं० श्राधे मारे हुए। अधमरा । उ०—गए अधरमघु--सज्ञा पुं० [म०] अधरों का रम् । अधरामृन [को०] ।' | पुकारत कुछ अधमारे ।—मानम ५। ३ ।। अधरग्स--- संज्ञा पुं० [२०] ० 'अधरमबु' [को०] । अधमार्ध-सा पुं० [म०] नाभि के नीचे का भाग [को॰] । अधरस्वस्तिक-सा पुं० [२०] अ वोfदु [को०] । अघमुआ–वि० [हिं०] १० ‘अधमरा । । अधरागा--मज्ञा पुं० [१०] शरीर के नीचे के अग या भाग (को०] । अधामुख -वि० [म० अधोमुख मुंह के बन । सिर के बल । अौध। अधरा---सी० पु० [म० अधर] 'अधर' । उ०—मूरज पंप में उलटा। उ०--(क) स्याम भजनि की सुदरताई । बडे। इंगुर बोरे बंधूक से हैं प्रध। अरु हारे ।--भियारी ग्र०, ० विमाल जानु लौ परमत इफ़ उपमा मन आई । मनो १, पृ० ११ । भुजग गगन ते उतरत अधमुख रहयो झुनाई ।—सूर म वद नहि विवूक मैं, मो मन यौं अधरात--पग पर [म० अर्घरात्रि] प्राज्ञीरात । ३०--प्रधान ठहराइ । अधमुख ठोढी गाड की, अँधियारी दरभाई ।—म० ठी करि हाय हाय ।-मिजारी० ग्र, भा० १, पृ० २२२ । सप्तक, पृ० २५५ । अधरावर--ना पं० ।म० अवर + प्रवर] नीचे का प्रौठ । उ०—अवमोद्धारक-वि० [सं०] पापियो का उद्धार करनेवाला [को०] । दत की प्रगति कुद ती अधथर पर बौनि 17 !-- अधरगा-सज्ञा पुं० [हिं० आघा+ग] एक प्रकार का, फून । तुलसी,ग्र० पृ० १५५ ।