पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२२६

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अधखिला अद्वैतवादी आदि भी । ३. शकराचार्य द्वारा प्रतिपादित वेदात दर्शन । अधोवेद-सज्ञा पुं॰ [सं०] प्रथम पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह इस मत मे'ब्रह्म' के अतिरिक्त सभी पदार्थ असत्य हैं अर्थात् ब्रह्म' करना [को०] । अध शयन--सज्ञा पुं० [सं०]पृथ्वी पर सोना ) ब्रह्मचर्य का एक नियम सत्य जगन्मिथ्या के अनुसार 'एकमेवाद्वितीय ब्रह्म' अर्थात् ‘व्रह्म' ही एक और केवल अद्वैत तत्व सत्य माना गया है और अब शय्या--संज्ञा स्त्री॰ [ स० ] ३० 'अघ शयन' [को०] । 'ब्रह्म' सत्-चित्-प्रानदस्वरूप । मायावाद, अध्यासवाद, अंध शिरा-वि० [स० अध शिरस] सिर नीचे रखनेवाला [को०)। विवर्तवाद, उत्तरमीमांसा, शकरवेदात अादि पदो से प्राय अध शिरा-सज्ञा पु० एक नरक का नाम [को॰] । इसी दर्शन का बोध होता है। अध स्वस्तिक-सशा पुं० [सं०] अधोविंदु । देखने वालो के पैरों के नीचे विशेष—इस सिद्धांत के अनुयायी कहते हैं कि जैसे रस्सी के माना जानेवाला एक कल्पित विद् [को॰] । स्वरूप को न जानने से सर्प का बोध होता है, वैसे ही ब्रह्म के अधq--अव्य० [हिं०] दे० 'अध'। उ०—अध अर्द्ध बानर विदिस रूप को न जानने के कारण अध्यासवश ब्रह्म ही स सार रूप दिसि वानर है |--तुलसी ग्र०, पृ० १७४ । में वस्तुत दिखाई देत' है । अत मे अज्ञान दूर हो जाने पर अध–वि० [स० अर्घः प्रा० अद्ध, अघ] 'प्राधा' याद का संकुचित रूप । |सव पदार्थ ब्रह्म मय प्रतीत होता है । आधा । उ----हीं जानत जो नाह तुम बोलत अध अखरान |-- अद्वैतवादी–वि० [म०] अद्वैत मत को माननेवाला । ब्रह्म और पद्माकर ग्र०, पृ० १६६ । जीव को एक माननेवाला । शाकरवेदात का अनुयायी । विशेष--प्राय यौगिक शब्द बनाने में इस शब्द का प्रयोग होता अद्वैतवादी-सी पुं० अद्वैतवाद का सिद्धांत माननेवाला व्यक्ति । है । जैसे-अधकचरा, अधजल, अघवावरा, अधमरा । अद्वैतसिद्धि-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ ब्रह्म और जीव के अभेद की अधकचरा'-- वि० [हिं० अघ +कच्चा] १ अपरिपक्व । अध। | सिद्धि । २ भाकर वेदात का प्रकरणविशेष [को॰] । अपूर्ण । २. अकुशल । अदक्ष । जिमने पूरी तरह कोई चीज न 'सीखी हो। जैसे—उसने अच्छी तरह पढ़ा नहीं अधकचरा रह अद्वैती--संज्ञा पुं० [सं० अढ़ सिन्] १० 'अद्वैतवादी' [को०] । । गयी (शब्द॰) । अद्वैध–वि० [सं० ] १ जो दो भागों में विभक्त न हो । अवियुक्त ।। अधकचरा--वि० [हिं० अघ+कचरना प्राधा कूटा या पीसा हुआ। २ असद् भावना से रहित । ३ खरा । उत्तम [को०] । दरदरा 1 अधपिसा | अधकूटा । अरदावा किया हुआ । अद्वैध्यमित्र--संज्ञा पुं० [सं०] वह व्यक्ति, मित्र या राष्ट्र जिसकी मित्रता में किसी प्रकार का सदेह न हो। अंधकच्चा--वि० [हिं०] दे० 'अधकचरा' । उ०—वहुवा इस तरह की विशेष——वह जिमकी मैत्री स्वार्थ पूर्ण न हो; जो स्थिरचित्त, बनावट और चालाकी सुखवासी लाल सरीखे अघकच्चे मनष्यो से होती है !-श्रीनिवास ग्र०, पृ० ६४ । | सुशीन, और उपकारी हों तथा विपत्ति में जिसके साथ छोडने | की अाशका न हो, वह अद्वैध्यमिय है। अघकच्छा-सज्ञा पुं० [स० अधिकच्छा] नदी के किनारे की वह ऊँची अघग –सज्ञा पुं० [हिं०]'दे० 'अर्धाग' । उ०—सीस गग गिरिजा | भूमि जो ढालुई होते होते नदी की सतह मे मिल गई हो । | अघग भूपण भुजगवर-तुलसी ग्र०, पृ० २३५ ।। अधकछार--सज्ञा पुं० [स० अर्ध+कच्छ] पहाड के अचल की वह ढालुई अर्घती--संज्ञा स्त्री० [सं० अघ + अतरी] मालखम की एक कसरत ।। । भूमि जो प्राय बहुत उपजाऊ और हरी भरी होती है । अध -7व्य० [सं० ] नीचे । तले। ' अधकट---वि० [हिं० अध+कटना] १ आधा कटा हुआ। । २ नियत अघ-संज्ञा स्त्री० दश दिशाओं में से, एक। पैर के ठीक नीचे दूरी या परिणाम का अाधा। की दिशा । । अधकपारी- सज्ञा स्त्री० [सं० अर्घ+कपाल हि० अघ+कपारी] प्राधे अध काय--सज्ञा पुं० [सं० अध’=नीचे+काय :- शरीर कमर केचे सिर का दर्द जो सूर्योदय से प्रारंभ होकर दोपहर तक वद्धता - के अग। नाभि के नीचे के अवयव । । । । जाता है। फिर दोपहर के बाद से घटने लगता है और सूर्यास्त होते ही बंद हो जाता है । अधिासीसी । सूर्यावर्त ।। अध क्रिया-सज्ञा स्त्री॰ [म०] अपमानित करना नीचा दिखाना | अधकरी--संज्ञा स्त्री॰ [सं० अर्ध+कर] १ अठन्नियो । किस्त । मालको०] । गुजारी या महसूल या किराए की आधी रकम 'जो किसी नियत अध पतन-सज्ञा पुं० [सं०] १. नीचे गिरना । २ अवनति । अंध पात |, समय पर दी जाय । - |' तनज्जुली । ३ दुर्दशा । दुर्गति । ४ विनाश । क्षय । अध पतित-वि० [सं०] १ जिसका पतन हो गया हो । दुर्दशाग्रस्त अधकहा-वि० [हिं० अघ - कहना] आधा कहा हुआ।। अस्पष्ट रूप से या प्राधा उच्चारण किया हुआ । उ०—गहकि गौसु और गहे। [को०] 1 अध पात---सज्ञा पुं० [सं०] १ नीचे गिरना । पतन । २ अवनति । रहे अधकई वैन । देखि खिसौहें पिय नयन किए रिसौं नैन । तनज्जुलि 1 ३ दुर्गति 1 दुर्दशा । ।। । । ---विहारी र०, दो० ६५ । अधको)---वि० [स० अधिक] ६० 'अधिक' । अध पुष्पी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. अनत मून नामक औषधि । २ नीले, झोकिया, त्यो त्यो अघकी वास |--कवीर सा० स०, पृ०६२ । -- फूल की एक बूटी जिसे अधाहूनी भी कहते हैं । अधखिला---वि० [हिं० अघ + खिलना ] [ ० अधखिली ] ग्रा अध प्रस्तर--संज्ञा पुं० [सं०] अणचवालो के बैठने के लिये तृणो का खिला हुा । अर्धविकसित ।। , बना हुआ मसिन । कुशासन । । ।