पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२२०

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अदानियाँ १५९ 'अनिन अदानियाँ -वि० [हिं० दे० 'अदानी'। उ०—(क) ठाकुर कहत ये अदाव--सज्ञा पुं० [म० अ० बुरा+ हि० दावें] बँरा दांवपेंच । * अदानियाँ अबूझ भोदू भाजन अजस के वृथा ही उपजाए त । असमजस 1 कठिनाई । उ०—यह ऐसा अदावे परयो या घरी –ठाकुर श०, पृ० २७ । (ख) ठाकुर कहत हम वैरी बेवकूफन ! "घरहाईन के परि पु जन में 1'मिस कोउ न अनि चढे चिंतवें के जालिम दमाद हैं,अदानियाँ मसुर के । इतिहास,पृ० ३८२ । । इनकी वतियाँन की गु जन में ---राम ( शब्द०)। अदानी --वि०, [म० अ + दारिन्] जो दान न दे । कजूस। सूम । अदावत-सज्ञा स्त्री० [अ० ] शत्रुता। दुश्मनी। लोग। वैर ! । कृपण । उ०—श्रवण नैन कोनही दौं असु को, निवास होत । विरोध । उ०—कीजे हमारे साथ अदावत ही क्यो न हो। " जैसे सोन भौन कोन राखत अदानी है ।—रघुराज (शब्द॰) ।। —शेर० 'माग १, पृ० ५२१ । । अदाव--संज्ञा पुं० [अ० श्रादार] ३० दिव' ।-उ०—अदब अदाब कि० प्र०—करना ।—रखना ।—निकालना।—होना । । सलाम जो करई ।—दरिया-वानी०, पृ० ४० । ।, " अदावती–वि० [अ० अदावत + हि० ई ( प्रत्यं० ) ] जो अदालत अदाय–वि० [म०] दाय या हिस्सा पाने का अनधिकारी [को०] । रखे। कसरी । जो लाग रखे । २ विरोधजन्य । द्वेपमूलक । अदायगी-सज्ञा स्त्री॰ [फा० अदाइगी] १ चुकता करना । सुगतान अदास–वि० [ सं० ] मी दास या परतत्र न हो । स्वाधीन [को०)। करना। २ पद्धति 1 तर्ज । प्रणाली । उ०—सिर्फ अदायगी अंदाह --सज्ञा स्त्री० [अ० अदा] हाव भाव । नखरा । नान । अँगरेजी है ।-गोतिका ( भू०) पृ० ५। । !। मोहित करने की चेष्टा । उ०—एतो सरूप दियो'तो' दियो पर अदायाँ –वि० [हिं० अ+वाय = दक्षिण, दाहिना ] वाम । ! एती प्रदाह ते अनि घरी क्यौ । एती प्रदाह धरी तो धरी पर प्रतिकूत्र । वुरा। उ०—परि या नवमी पूर्व न आए। दूइज ।। ये अखियाँ रिझवारि करी क्यो।--( शब्द० }। । । - दसमी उतर अदाएँ —जायसी (शब्द॰) । अदाह –वि० [ सं० अदाह ] दाहरहित । जिसमे ताप या जलन अदायाधु-संज्ञा स्त्री० [स० अ + दया] दया का अभाव । निष्ठुरता। ।। ।। न हो। उ०----कहा होई जो श्री दुख तांपा । सूखे जी 'अदाह ‘ौ अकृपा । उ०— साहस, अमृत चपलता माया। भय अविबेक असौच अदाया।—मानस, ६१६ । झापा ।—इद्रा०, पृ० १५१ । । । । । अदाहक–वि० [सं०] न जलानेवाला । जिसमे जलाने या भस्म अदायाद–वि० [भ] १ जो सपिंड न हो । २ उत्तराधिकार रहित ।

  • ; ।करने का गुण न हो जैसे-जल । [को॰] । अदायिक-'-व० [मं०] १ दाय या उत्तराधिकार से । सबंध न रखने- अदाह्य [सं०] १ जो जलने योग्य न हो । ३ जो चिता पर जाने

बार । २ जिसका कोई उत्तराधिकारी न हो। लावारिस । योग्य न हो । ३ थामा और परमात्मा का विरोध [को०)। " अदिक्-वि० [सं०] दिशाओं से परे। दिशारहित । उ०—तुम अदार--वि० [सं०] पत्नीरहित । विधुर । रेग्रा [को०] ।' , ही घर आए हो यह जग जजाल रूप । पर तुम हो चिर अदारिका-संज्ञा स्त्री० [स०] एक प्रकार का पौधा को०] । ॐ " - अकाल नित्य अदिक् , हे अनूप ।—क्वासि, पृ० ९१ ।। अदालत--संज्ञा स्त्री० [अ०] न्यायाय । वह स्थान जहाँ बैठकर अदिढ(५)---वि० दे० 'अदृढ । उ०—कछु मन दिढ कछु मदिढ लहीये, न्यायाधीश स्वत्व सवधी झगडो पर विचार करता है । प्रौढा घीधीरा कहिये –नद० ग्र०, पृ० १४६ । विशेष—प्राजकन इसके दो प्रधान विभाग हैं—(१) फौजदारी अदित -सज्ञा पुं॰ [सं० आदित्य ] दे॰ 'आदित्य' । । शौर (२) दीवानी।' माल विभाग को दीवानी के अतर्गत ही अदिति-संज्ञा स्त्री॰ [स] १ प्रकृति । २ पृथ्वी । ३ दक्ष प्रजापति | समझना चाहिए । । । । । । की कन्या और कश्यप ऋपि की पत्नी । यौ०-- अदालत अपील := वह अदालत जहाँ किसी मातहत अदालत । विशेष—इनसे सूर्य आदि तैतीस देवता उत्पन्न हुए थे। ये देवताओं के फैसले की अपील हो । अॅदलित खफीफा = एक प्रकार की । की माता कहलाती हैं। दीवानी अदालत जिसमें छोटे छोटे मुकदमे लिए जाते हैं । ४ असीमता । ५ निर्धनता। ६ स्वतन्त्रता । । । प्रदालत दीवादी = वह अदालत जिसमे सपत्ति या स्वत्व संवधी ८, पूर्णताः। 6 पुनर्वसु नक्षत्र । १० गाय । ११ वाणी । बातों का निर्णय होता है । दलित मराफाऊला- वह अदालत । १२ उत्पन्न करने की शक्ति । १३ दूध । १४ माता । १५ जिसमे पहले पहल दीवानी मुकदमा दायर किया जाय। । । " द्युलोक । १६ अतरिक्ष । अदालत मराफासानी:- वश्रदालत जिममें अदालत मराफाऊल अदिति-संज्ञा पुं० [सं०] १ ईश्वर का एक विशेपण । ३ प्रजापति। की अपील हो । अदालत मातहत= जिसके फैसले की अपील ३ देवताग्रो का विश्वदेवा नामक ' गण । ४ काल । ५ उसके ऊपर की अदालत में हुई हो। अदालन माल = वह । मृत्यु [को०]'। अदितिज--- सज्ञा पुं० [सं०] १ देवता । २ आदित्य । सूर्य [को०] । अदालत, जिसमें मालगुजारी वा लगान सबधी मुकदमे दायर अदितिनदन--संज्ञा पुं॰ [ स० अदिनिनन्द र ] २० ‘अदितिज' [को०] । किए जाते हैं। मुहा०-- अदालत करना= मुकदमा ' है डना। अदालत होता= अदितिसुत-सज्ञा पुं० [सं०] १ देवता । २ सूर्यं । अभियोग चलना ।। अदिन--सक्षा पुं० [सं०] बुरा दिन । कुदिन । कुसमय । सकट या दुख अदालती--वि० [अ० अदालत+हि० ई० ( प्रत्य॰)] १ अदालत का समय । ग्रभाग्य । उ०--यो कही वीर वार पाँयनि परि विपयक । न्यायालय सवधी । २ जो अदालत करे। मुकदमा पाँवरि पुलकि लई है। अपनो अदिन देखि हो धरपत जेहि लडनेवाला । विप वेलिं वई है।--तुलसीः ग्र०, पृ० ।३५६।