पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२१९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अदेल अदलसंज्ञा पुं० [अ० अदल] न्याय । इसाफ । उ०—अदल कहाँ अदा-वि [अ०] चुकता 1 बेवाक । दिया हुआ । उ०—जान - पुमी जस होई । चाटा चलत न दुखवं कोई ।-—जायसी दी, दी हुई उसी की थी । हक तो यह है कि हक अदा ( शव्द )। ।। - न हुआ । शेर०, भा०-१, ४६३। । अदल-: सन्ना पु० [सं०] हिज्जल नाम का एक पौधा [को०] । । । क्रि० प्र०—करना । जैसे—उसने तुम्हारा सब रुपया अदा कर अदल-वि० १ विना दल या पत्त का । पत्रविहीन । २. विना दिया (शब्द) - होना । जैसे-तुम्हारा कर्ज अदा हो गया फौज का । सेनारहित । ३ भाग रहित (को॰) । | ( शब्द ) । । अदल–वि० [हिं० अ +दल] जो किसी दन मे न हो । तटस्थ । - मुहा०—अदा करना = पालन करना या पूरा करना । जैसे--- अदल -सज्ञा स्त्री० [स०अदल = अपर्ण] पार्वती । उ०—अदल | सबको अपना फर्ज अदा करना चाहिए । ( शब्द )। पति-रिपु पिता-पतिनी अव न जैहैं फेर ।—सा० लहरी, यौ०..--अदाए जर डिगरी = डिगरी के देने या रुपए को देना। , । अदावदी = किसी रुपए के बेबाक करने या देने के लिये । पृ० ११६ । अदलखाना--सज्ञा पुं० [अ० अदल-+फा० खानह] न्यायालय। । किस्त या समय को नियत करना। किस्तवदी । अदा या कचहरी । उ०--मेरे ही अकेले गुन गुन विचारे बिना वदल - वेबाक करना= सन्न चुकता कर देना । कौडी कोडी दे न जैहे वडे अदलखाने मे -भिखारी ग्र०, भाग १, १० ७६ । डालना। अदाएमालगुजारी == मालगुजारी का देना । अदाए अदलतिहा+-वि० [अ० अदालत + हि० हा (प्रत्य॰)] मुकदमेबाज ।। शहादत = गवाही देना । अदा.-सज्ञा स्त्री० १ भाव । हाव भाव । नखरा । भोहित करने | मुकदमा लडनेवाला॥ की चेष्टा । उ०—सगरब गरव खिचे सदा चतुर चितेरे अदल बदल-सज्ञा पुं० [अ० बदल का अनुव्व० अवल] उलट पुलट । अयं । पर' वाकी बाँकी अदा नेकु न खींची जाय । । हेर फेर । परिवर्तन । उ०—अदल बदल भूषण प्रिया या स० सप्तक०, पृ० २६५। २ ढग 1 तर्ज । श्रान । अदाज । परत लखाइ नूपुर कटि ढीलो भयो सकसि किकिनी पाइ । उ०—इस अदा से मुझे सलाम किया। एक ही आन में भिखारी ग्र०, भा० १, पृ० ४५। ।।। | | गुलाम किया ।—शेर०, भाग १, पृ० ३६२ । अदला-संज्ञा स्त्री० [सं० ] घृतकुमारी नामक पौधा [को०१ । । अदाइगी- सच्चा स्त्री॰ [को॰] दे॰ 'अदायगी',(को०]-1 , अदलाबदली-सज्ञा स्त्री॰ [ हि० अदल बदल ] १ एक वस्तु लेने के अदाई -वि० [अ० अदा+हि ई (प्रत्ये)] १ ढगी । चालबाज । लिये उसके बदले दूसरी वस्तु देना । २ एक चीज के स्थान चतुर । उ०—ऊधौ नैकु निहारो। हम सालोक्य, सरूप, । पर दूसरी चीज रखना। सायुज्यौ रहति समीप सदाई । सो तजि कहत और की औरे, । क्रि प्र०—करना ।—होना । तुम अलि वढे अदाई ।—सूर० १।३६०० । । अदाई —वि० [हिं०+दाया ] वाम । 'प्रतिकूल । प्रेमवचित । अदली-- सज्ञा पुं० [अ० अदल+हि० * ई ( प्रत्यं० )] न्यायी। । उ०—कहहु मोहि अव वाल सुहाई। केहि अवगुन मोहि इसाफवर । उ०:०--कप कदली में वारि बुद' वदली, सिवराज ।। फीन अदाई । चिया०,'पृ० ३०६ । । । । । । अदली के राज मे यो राजनीति है ।—मूषण ( शब्द )। अदाकार--संज्ञा पुं० [हिं० अद+फा० कार] अभिनेता । कुनाकार अंदली’ -वि॰ [ स० अदल] विना पत्त का ।। ।। , [को०]- ' । । । अदलीय–वि० [सं० अ+दल + ईय (प्रत्य० )] जो किसी दल अदाग -वि० [हिं० अ= नहीं+अ० दाग-धरजा] १. वेदाग । का सदस्य न हो। किसी दल से मवध न रखनेवाला । निर्मल । स्वच्छ। साफ । उ०—ज्ञान को भूपन ध्यान है, अदवान-सज्ञा स्त्री० [ स० अध.= नीचे+वांम= रस्सी अथवा देशी ] ध्यान को भूपन त्याग । त्याग को भूपन शातिपद तुलसी ' चारपाई के 'पैताने की वह रस्सी, जिसे विनावट को कसी रखने अमल अदाग ।—तुलसी (शब्द)। २ निष्क नक। निर्दोष । के लिये करधनी के छेदो मे से ले जाकर सीरों में तानकर ।३' पवित्र । शुद्ध । अदागी--वि० [हिं०] ६० ‘अदाग' । लपेटते हैं । ओनचन । । "० " । । अदाता–सज्ञा पु० [सं०] १ न देनेवाला व्यक्ति ।' कृपण। कंजूस । अंदस-संज्ञा पुं० [अ० ] मसूर [को०] । । - - """ " ।। २ विवाह मे (कन्या) न देनेवाला व्यक्ति को (को०) । ३ बहू अंदह –वि० [ अवाय ] न जलनेवाला । । - - व्यक्ति जिसे किसी का करू देय न हो (को०)। । अदहन-सच्चा पु० [ स० श्रादहून ],खौलता हुआ पानी । आग पर अदाता–वि० न देनेवाला । क जूस । । । । । । । । | चढा हु वह, पानी जिसमें दाल, चावल आदि पकाते हैं । । अदान -सज्ञा पुं० [सं० अ +दान] १ अदाता । न देनेवाला व्यक्ति अदय–वि० [सं०] न जलने योग्य । जो जल न सके । कजूस । कृपण । उ०-हरि को मिलने सुदामा अयो। पूरव अदात–वि० स० अदान्त ] १. जो इंद्रियों का दमन। न कर सके ।। जन्म अदान जानिकै ताते कछ मंगायो । मूठिक तदुल वाँधि अजितेंद्रिय । विपयासक्त । २ जो वश मे न किया जा सके । कृष्ण को वनिता विनय पठायो । “सूर (शब्द ) 1 २ वह दुदाँत (को०)। । । - ! । ' हाथी जिसका दान अर्थात् मद सवित न होता हो (को०)। अदाँत-वि० [सं० अदन] बिना दाँत का । जिसे दाँत न आए अदान–वि० [सं० = नहीं + फा० दानह= जागर]' अजान । । ' । हो (प्राय पशुप्रो के लिये )। उ०—अदाँत बरद, दो दाँत । ।। नादान । नासमझ ।उa-- मदन जानती नही, कछु-पाले न्याय। माप जाय बसमै खाय 1-क्रहावत ( शब्द )। भूल बिसरी रघुराज ( माक्द० ) : ] न्यायी। अदाईम अलि व समीप दाई हो। हम गई। चालबाज । वी । । । 1 ।। ।