पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२१६

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अथाई अदभ : ज अथाई-सज्ञा स्त्री० [सं०. *आरथायिका अथवा स्थायी, BJ० अथिर--वि० [भ० अस्थिर, प्रा० अस्थिर, अथिर] १ जो स्थिर अत्थाई ] वैठने की जगह । घर का वह बाहरी चौपात जहाँ न हो चलायमान । चंचल । उ०—काची काया मन अस्थिर लोग इष्ट मित्रों से मिलते वा उनके साथ बातचीत करते हैं । थिर थिर काम करत |--कवीर ग्रं॰, पृ० ७६ । २ वैठक । चौबारा । उ०—हाट वाट बरे गी अथाई । कहहि । क्षणस्थायी । टिकनेवान्ना । परसपर लोग लुगाई !-—मानस, २।१० । २ वह स्थान जहाँ अखीर -वि०[हिं० ] ३० 'अयिर' । उ०---नहि तर्क वितर्क किसी गाँव या वस्ती के लोग इकट्ठे होकर बातचीत और अधीर धीर । नहि शून्य अशून्य अथीर थीर ----मुंदर ग्र ०, पंचायत करते हैं। उ०—कहै पदमाकर अथाइन को तनि भा० १, पृ० ७८ । तजि, गोपगन निज निज गेह को पथै गयो ।—पाकर ग्र०, TA । अर्थवq-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'अथाई' । ३०---- मी हमारे १० २३७ । ३ घर के सामने का चबुतरा जिसपर-लोग इठते । बैठते हैं । ४ गोष्ठी । मड हो । सभा । जमावडा । दरवार । बुलबु ने की अथैया इन देखिबे अाइए ----पोद्दार अमि० ग्र० * उ०—-गजमनि माल बीच भ्राजत कहि जात न पदिक पृ० ६२७ । निवाई । जनु उडुगण मड़े न वारिद पर नव ग्रह रची अथोर -वि० [सं० अ +स्तो = योडा प्र० यो , अप० अथाई (तुलसी ग्र०, पृ॰ ६२१ ।। थोक+उ [प्रत्य॰] [स्त्री० अयोरी ] . कम नहीं । अधिक । अथाग -वि० [ स० अस्ताघ, प्र० अत्यग्घ ] दे॰ 'अथाह' । उ०— ज्यादा । बहुन । पूरा । उ०—भरति नेह नव नीर नित हैं कल दल गज हैब अमरेख नरां प्रयाग ।—रा० ९०, बरसत सुरम अथोर 1---मतेंदु ग्र० २।५७७ ।। अदक---संज्ञा पुं० [सं० आतङ्क, हि० अत क] डर । मय । नाम । अथान--संज्ञा पु० [ स० अस्थाणु = स्थिर ] अचार । कचूमर । उ० । उ०-- -जसुमति बूझति फिरति गोपालहि । जव ते तृराव विधि पाच अथान बनाई किया । पुनि ६ विधि क्षीर भो अज आयो तव ते मोहि जिय सके । नैननि ग्रोट होत पल मॉगि लियो ।—केशव ( शव्द)। । । । एको मैं मन भरति अदक ।----मूर [शब्द] । अथाना-सशा पुं० [हिं०] दै० 'अयात' । उ०—निबुप्रा, सूरन अाम । | अदड-वि० [सं० अदग्य ] १ जो दई के योग्य न हो। जिसे दड । अथानो और कौंदनि की रुचि न्यारी । —सूर० १०५२४१ ।। देने की व्यवस्था न हो। सजा से यी । २ जिसपर कर थाना -क्रि० अ० [स० अस्तार्य, प्रा० अत्था, अत्याअ] डूबना ।। अस्त होना । दे० 'अथवना' ।। या महसूल न लगे । कररहित । ३ निद्वंद्व । निर्भय । अथाना–क्रि० स० [सं० आ+स्थापन] १ थाना । थाह लेना। स्वेच्छाचारी । ३०----उदधि अपार उतरत है' ने लागी वार, गहराई नापना । २ हूँढना। छानना । उ०—-फिरत फिरत नन -फिरत फिरत । केसरीकुमार सो अदड ऐसो हाँडिगो ---तुलसी [शब्द॰] । वने सकल अथायो । कोऊ जीव हाथ नहि अायो ।—सबल अदड’---सज्ञा पुं॰ वह भूमि जिमकी मालगुजारी न लगे । ( शब्द)। । । । मुंफो । अथाय)---वि० [हिं०] दे० 'अथाह’। उ5--प्रर्दू अचल अखड है, अदडनीय–वि० [ स० अदण्डनीय ] जो दड़ पाने के योग्य ने अगम अपार अथाय । व्रज माधुरी०, पृ० २८६ । | हो। जिसके दड का विधान न हो । अदइथे ।' अथार -वि० [सं० अ (उप०)+स्तार<थस्तु] फैला या विखरा अदडमान-वि० [स०' अण्डमान] दड के अयोग्य । दष्ट से मुक्त । अथावत'–वि० [म० अस्तमित =डूबा हुआ] अस्त । डूबा हुआ। सजा से बरी । उ॰—अदडमान दीन गर्व दडमान भेद वै । अपठ्ठमान पाप प्रथ, पठ्मान वेद वै ।----केशव [सब्द] । ३०-वेर लगी रघुनाथ रहै किंत हे मन याको में भेद न पायो । चदहू अायो अथावतो होत अजहूँ मनभावतो क्यों अदय–वि० [सं० अबण्डप ] दड़ न पाने योग्य । जिसे दड न दिया नहि अायो ।----रवुनाथ (पद) । ३ जा सके । दडमुक्त । सजा से वरी ।। अथाह-वि० [सं० प्रस्ताघ, प्रा० अत्याह अथवा भै० अ := नहीं + अदत –वि० [ स० अदन्त ] १ वेदांत का । जिसे दाँत न हो । २ स्था= ठहरना ] १ जिसकी थाह न हो । जिसकी गह- , जिसे दाँन न निकला हो। बहुत थोडी अवस्या का । राई का अंत न हो। वहुत गहरा । अगाध जैसे---यहाँ दुधमुहाँ। ३ जिसने दाँत न तोडा हो (चौपाया) । अथाह जल है (शब्द) । २ जिसका कोई पार, यात न अदत-वि० १ वारह अादित्यो में एक । २ जोक [को०] ।। पा सके । जिसका अदाज न , हो सके । अपरिमित ।। | अदत्य--वि० [सं० अदत्य ] जो दाँत सवधी नै हो । २ जो दांतों अपार । वहुत अधिक । ३' गभीर । गूढ । भमझ में न । । ' ' के अनुकून न हो । ३ दाँतो के लिये अहितकर [को॰] । शाने योग्य । कठिन । उ०---( क ) कर नित्य जपं होम अदव----वि० [ स० अदब्ध] पवित्र । शुद्ध । उ०——यौं पद्माकर औ जानत वेद अथाह (शब्द) । (ख) रमणी हृदय अथाह " म मनोहर जे जगदव अदव अए री |---पद्माकर ग्र० 'जो न दिखलाई पडता । कानन०, पृ० ७१ । । अथाह-संज्ञा पुं० १' गहराई । गड्ढा । जलाशय ।'२ समुद्र । पृ ० ३२५। द भरहिन । पु अदभ'-वि० [सं० अदम्भ ] १ न | , ----व मूख के फिर मिलने को, आस रही क माहि।

  • , सच्चा । विना अडवर का । ३ निश्छन । निपट । "; परे मनोरथ जाय मम अब अथाह के माहिं ।---शकुनला, पृ० ११४ ।।

३ प्राकृतिक । म्वाभाविक । अकृत्रि में । स्वच्छ । शुद्ध । मुहा०—अथाह में पड़ना= मुश्किल में पड़ना । जैसे---हम अथाह उ०--नीति नग हीर, नग हीन पी कानि मी रतन खंभ में पड़े हैं, कुछ नही सूझता [शब्द । पातिन अदभ छवि छाई सी --देव [शब्द] ।