पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२१४

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अत्याज्य १५३ अत्री श्रेष्ठ । अत्याज्य–वि० [सं०] १ न छोड़ने योग्य । जिसका त्याग उचित न अत्र'---क्रि० वि० [स०] यहाँ । इस स्थान पर ।। , हो । २ जो कभी छोडा न जा सके । अत्र’G----सज्ञा पुं० [स० अस्त्र, अप० अत्र] ० 'अस्त्र' । उ०—अत्यादित्य--वि० [सं०] सूर्य के पार जानेवाला [को०] । । सोहैं अत्र जोडे जे न छोड़े भीम सगर की लगर नंगूर अत्याधान--संज्ञा पुं० [सं०] १ रखने की क्रिया । २ अतिक्रमण । उच्च शोज़ की अतका मे --पद्माकर ग्र० पृ० २२४ । ३ होम की अग्नि को रक्षित न रखना [को॰] । अत्र --सशा पु० [हिं०] १० 'अतर' । अत्यनिद---सज्ञा पु० [अत्यानन्द] आनद का परम उत्कृष्ट प्राध्या अत्र --संज्ञा स्त्री० [सं० अन्त्र] अॅनडी ।। त्मिक रूप । परमानंद [को०] । अत्र--सज्ञा पुं० [सं०] १ राक्षस । २ 'भोजन [को०] । प्रत्यानदा--सज्ञा स्त्री० [सं० अत्यानन्दा] वैद्यक के अनुसार योनियो । का एक भेद । अत्रक-वि० [सं०] १ यहाँ का । २ इम:लोक का । लौकिक । विशेष—वह योनि जो अत्यत मैथुन से भी संतुष्ट न हो । यह ऐहिक । एक रोग है जिसमें स्त्रियाँ वघ्या हो जाती हैं। इसका दूसरा । अत्रत्य---वि० [सं०] यहाँ का । यहाँवाला । नाम ‘रतिप्रीता' भी है। अत्रप---वि० [स० प्र=नहीं +त्रपा] निर्लज्ज । उदड [को०] । प्रत्यय-सज्ञा पुं० [सं०1१ सीमा का उल्लघन । मयदा का अति अत्रभवान् ---वि० [सं०][स्त्री० अत्रभवती] माननीय, । पूज्य । क्रमण ! अधिक आमदनी या लाभ को०] ।। अत्यायु--सी पुं० [सं०] यज्ञ का पात्र विशेष (को०] । अत्रय - सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'अत्रि' 1 उ०----निरभू किना अत्यारूढ-वि० [सं०] बहुत ऊँचे पद पर पहुंचा हुआ । अत्यंत वासर पाय । अत्रय तणो अाश्रम अाय ।----रघु० ०, पृ० प्रसिद्ध [को॰] । । । १२२ । अत्यारू ढि--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ अत्यत ऊँचा पद ।।२ प्रतिप्रसिद्धि अत्रस्त- वि० [सं०.नि कि । भयरहिन । निडर [को०] । । [को॰] । अग्रस्थ----वि० [सं०] यहाँ रहनेवाला । इस स्थान का । यहाँअत्याल—सझा पुं० [सं०] रक्तचित्रक नामक वृक्ष [को०] । | वाला । यहाँ उपस्थित रहनेवाला । यहाँ का । प्रत्यवाय—सज्ञा पु० [सं०] राजद्रोहियो की अधिकता [को०] । अत्रस्नु---वि० [सं०] १० 'अत्रस्त' [को०। अत्याहित-वि० [सं०] असहमति के योग्य । अस्वीकार्य [को०] । यात्रा अत्रास---वि० [सं०] १० 'अग्रस्नु' [को॰) । अत्याहित_सज्ञा पुं० १ अरुचि । अप्रियता । २ सकट । ३ । भय । अत्रि--सज्ञा पुं० [अ० १ मप्तपियो में से एक । अत्रि-सा पं० [म० ४ दुःसाहस [को०] । विशेष ---ये ब्रह्मा के पुत्र माने जाते हैं । इनकी स्त्री अनुसूया अत्याहितकर्मा–वि० [स० अत्याहि न+कर्मन् दुष्ट । नीच । दुराचारी [को०] । थी । दत्तात्रेय, दुर्वासा और सोम इनके पुत्र थे । इनका अत्युक्त–वि० [सं०] बहुत वढा चढ़ाकर कहा हुआ । अत्युक्ति नाम दस प्रजापतियों में भी है । | पूर्ण,।. .. ' २ एक तारी जो सप्तपमडल मे है । ३ सात की संख्या (को०)।अत्युक्ता-सज्ञा स्त्री० [सं०] १० 'अत्युक्या' [को०] । अत्युक्ति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १* बढ़ा चढ़ाकर वर्णन करने की त्रिगुण --वि० [सं० अ + त्रिगुण] त्रिगुणातीत । सत्व, रज, तम गी। मुखानिगा । वढावा । -२” एक अलकार जिसमें शूरता, नामक नीनो गुणो से पृथक् । उदारता आदि गुणो का अद्भुत और अतथ्य वर्णन होता अत्रिज--- संज्ञा पुं० [म०] अत्रि के पुत्र---१ चद्रमा २. दत्तात्रेय । है । जैसे-जावक तेरे दान ते 'मए कल्पतरु भूप (शब्द०,।। कल्पतरु भूप (शब्द०, ३ दुर्वासा । अत्युक्था--सझा मी० [सं०] दो वर्गों के वृत्तो की संज्ञा ।- अत्रिजाति--संज्ञा पुं॰ [म०] १ ० 'अत्रिज' । २ प्रथम तीन वर्षों | मे से किसी एक से मवधित मनुष्य । द्विज [को०] । विशेष- इसके चार भेद कहे गए हैं । कामी, मही, मार | अत्रिग्ज----सज्ञा पुं० [म०] १ अत्रि के नेत्र में उत्पन्न चद्रमा | प्रौर मधु । " ऋदि । २ गणित में एक की सपा के०] । अत्युग्र–वि० [सं०] अति प्रचड । अतिशय भयानक [को०] । अत्रिनेत्रज-सज्ञा पुं० [म०] दे॰ 'अरिदृग्ज' । । अत्युग्न’---संज्ञा पु० हीग [को०] । अत्रिनेत्रप्रभव --संज्ञा पुं० [सं०] 'अग्रिनेत्र ज [को०] । अत्युग्रगवी-भज्ञा स्त्री० [सं०] अजमोदा । अत्रिनेत्रभू- --संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अत्रिने प्रमाव' को । अत्युत्तम-- वि० [सं०] मवमे श्रेष्ठ । अधिक उत्कृष्ट [को॰] । अत्रिनेत्रसूत----सज्ञा पुं० [सं०] २०' अभिनेत्रभू' [को०] । अत्युपध- -वि० [सं०] १ परीक्षित । अदाजा हुआ । २ विश्वः । अत्रिप्रिया--सज्ञा स्त्री० [सं०] कर्दम मुनि की कन्या अनसूया नो म्त [को॰] । अग्नि दृपि यो दयाही थी । उ०—त्रिप्रिया निज तपवन अत्युमि----वि० [सं०] सीमा का अतिक्रमण कर वहुनेवाला को०] । अनी --मानस, २५१३२ ।। अत्युह---सज्ञा पुं० सं०] १ बहुत अधिक ऊहापोह । तर्क वितर्क अत्रिसहिता-सा री० [मु.] अग्नि ऋषि द्वारा प्रणीत घमंशाम्प | २ अधिक जोर से बोलनेवाली पक्षी । मोर [को०] । [को०) । अत्यूहा--संज्ञा स्त्री० [सं०] नीनिका या निगडी नामक पौधा अत्रिस्मृति--सँशा ग्री० [स०] १० 'अनिहिता' [को॰] । [को॰] । अत्री-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] ३ ‘अग्रिप्रिया' (को०] २० अत्री-संज्ञा पुं० [सं० अप्रिन्] राक्षस [को०] ।