पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२१०

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अतिर्सधित अतीत जोक अतिसार िनिकलेगी र का अतिसचित--वि•[स० अतिसन्धित 1 १ अतिक्रात । २ घोखा खाया से उत्पन्न होता है । वैद्यक के अनुसार इनके छह भेद हैं-१) हुआ। जिसके साथ विश्वासपान किया गया हो [को०] । वायुजन्य, (२) पित्तजन्य (३) कफजन्य (४) सनिपातजन्य, अतिसध्या--सज्ञा स्त्री॰ [स० अतिमव्या] सूर्योदय के कुछ पूर्व और (५) शोक जन्य और (६) अाम जन्य । सूर्यास्त के कुछ वाद का समय (को०] । मुहा०—अतिसार होकर निकलना= दस्त के रास्ते निकलना । अतिस--संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'यतसी' । उ०—पाँवरी स्वाम। किसी न किसी प्रकार नष्ट होना । जैसे---‘मारा जो कुछ मूरति सुबर अतिस पुहुप समान वर --पृ० रा०, २।३४७ । तुमने खाया है वह अतिसार होकर निकलेगा' (शब्द०)। अतिसक्ति सच्चा ली० [सं०] अत्यधिक अनुरक्ति । विशेप अशक्ति [को०] अतिसारकी--वि० [न० अतिसारकिन] अतिसार से पीड़ित । अतिसय –वि० [सं० अतिशय] दे० 'अतिशय' । उ०--रहे मो नबी । अतिसार का रोगी (को॰] । साहव जहाँ के अतिशय सज्जन ।—प्रमघन, पृ० २०; । अतिसारी-वि० [सं० अतिसारिन् ] दे० 'अतिसारकी' को ।। अतिसर-वि० [म० 1 अतिक्रमण करनेवाला । मवसे आगे बढ़ जाने- अतिसी —सञ्चा, ली० [ म० अतसी] तीसी । अलसी । उ०—- अतिसी बाला । नेना [को०] । - , कुसुम तन, दीर्घ च चल नैन, मानौ रिस भरि के लरति जुग अतिसर---संज्ञा पु० प्रयास । चेच्टा । प्रयत्न [को॰] । | झखियाँ --सूर०, १०।१३८५।। अतिसर्ग-सञ्ज्ञा पु० [सं०] अभिलाषा पूर्ण करना । देना । २ इच्छा अतिसृष्टि—राशा स्त्री० [सं०] उत्कृष्ट रचना [को॰] । | नुसार काम करने की आज्ञा देना। ३ पृथक् करना [को०] । अतिसै--वि० [हिं०] दे० 'अतिशय' । उ०—कयौ हुरि के भय अतिमर्ग–दि ० १ स्थायी । नित्य । २ मुक्त कौ] । | रबि ससि फिरे । वायु वेग अनिस नहि कर —सूर० ३।१३। अतिसर्जनसशा पु० [सं०] १ अधिक दान । दान् । २ उदारता । अतिसौरभ-वि० [सं०] अत्यधिक मुगधित [को० । । त्याग (को०) । ३ , धोखा। वचना (को०)। ४ पार्थक्य । विल- अतिसौरभ--संज्ञा पु० १ अत्यधिक सुगध । २ ग्राम (को॰) । गाव (को०) । ५ वध (को॰) । अतिसीहित्य--संज्ञा पुं० [सं०] अधिक मात्रा में भोजन करना [को०)। अतिसर्पण- संज्ञा पुं० [म० ] १ तीव्र गति । वहुत तेज चलना । २ । अतिस्थूल---वि० [सं०] १ वहुत मोटा । २ मोटीवुद्धिवान । मूर्खः। गभशिय में बच्चे का इधर उधर हिलना डुलना [को०] । अतिस्थूल-संज्ञा पुं० मेद रोग का एक भेद जिसमे चरबी के बढ़ने अतिसर्व-वि० [सं०] दे० 'अतिश्रेष्ठ' [को०] । " से शरीर अत्यत मोटा हो जाता है । । अतिसर्व-सज्ञा पु० ईश्वर [को०] । अतिस्पर्श --वि० [सं०] १ कजूस । २ नीच प्रवृत्ति का अतिसातपन कृच्छ-सज्ञी पु० [सं० अतिसान्तपनकृच्छ] प्रायश्चित के । अनुदार [को०] ।। निमित्त एक व्रत । प्रतिस्पर्श-सज्ञा पु० [म०] व्याकरण मे उच्चारण करते समय विशेष—इसमे दो दिन गोमूत्र, दो दिन गोवर, दो दिन दूध, दो जीभ और तालु की अत्यल्प स्पर्श [को॰] । न का 'का जल पीकर अतिस्वप्नसज्ञा पुं० [सं०] १ बहुत अधिक स्वप्न देखना । २ तीन दिन तक उपवास करने का विधान है। । अत्यधिक निद्रा (को०)। श्रतिसावत्सर-वि० [सं०] एक वर्ष से अधिक का [को॰] । अतिहत-वि० [सं०] १ पूर्णतया नष्ट किया है । अतिसामान्य-सच्चा पु० [सं०] जो वात वक्ता के अभिप्रेत अर्थ का स्थिर [को॰] । अतिक्रमण या उल्लघन करे । अतिहसित--सज्ञा पुं० [सं०] हास के छह भेदो मे से एक जिसमे हँसने • बाला ताली पोटे, बीच बीच मे अष्पष्ट वचन बोले, उसका विशेप--न्याय के अनुसार यह ऐसे स्थलों पर प्रयुक्त होता है, जैसे—किसी ने कहा कि 'व्राह्मणत्व विद्याचरण सपत्' । पर | शरीर काँपे और उसकी आँखों से आंसू निक न पडे । विद्याचरण सपत्ति कही भ्राह्मण में मिलती है और कही नहीं। अतीद्रिय–वि० [सं० अतीन्द्रिय] जो इद्वियज्ञान के दो इस प्रकार यह वाक्य वक्ता के अभिप्रेत अर्थ का उल्लघन । , जिसका अनुमव इद्रियो द्वारा नै हो ।, अगोचर । अप्रत्यक्ष । करनेवाला है। अत अतिसामान्य । । अव्यक्त । उ०—एक अतीद्रिय स्वप्नलोक का मधुर रहस्य अतिसामान्य_-वि० अत्यत साधारण । मामूली । सहज । । उलझता था । ---कामायनी, पृ० ३५ ।। अतीद्रिय, सज्ञा पुं० १ अात्मा । २ प्रकृति । ३ मन [को॰] । अतिसाम्या सज्ञा स्त्री० [म०] मघृयष्टि नामक पौधा [को॰] । अती--वि० [सं०] दे॰ 'अति' । [को० । अतिसार--सज्ञा पुं० [सं०] अधिक दस्त होने का एक रोग । विशेप-इसमें मल बढकर उदराग्नि को मद करके शरीर के प्रतीचार-सज्ञा पुं० [4] ६० अतिचार' (यो । रसो को लेता हुआ वार वीर निकलता है। इसमें आमाशय की प्रतीत—वि० [सं०] १ गत। व्यतीत । बीता हग्रा।। भीतरी झिल्लियों में शोय हो जाने के कारण लोया हुआ भूत । उ०—चिंता करत हूँ मैं जितनी उस अतीत की, उस पदार्थ नहीं ठहरता और अंतडियो में से पतले दस्त के रूप में ‘सुख की।---कामायनी, पृ० ६ । २ निर्लेप । असग । विरक्त । निकल जाता है। यह भारी, चिकनी, रूखी, गर्म पतली चीजों ।। पृथक् । गुदा । अलग । न्यारा । उ०---धनि धनि साँई तू बड़ा, के खाने से, एक भोजन के पचे विना फिर भोजन करने से, तेरी अनुपम रीत । सकन्न भुवनपति साइयाँ ह्व केर है अतीत । विप से, भय और शोक से, अत्यत' मद्यपान से तथा कृमिदोष –कुवीर (शब्द॰) । ३ मृत । मरा हुआ । " ।'